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A White Horse (story of a time)

(यह ऐक छोटी सी कहानी है जो बहुत वर्षों पहले मेरे ऐक दोस्त ने मुझे सुनाई थी । वर्षों तक ज़ेहन मे रहने के बाद इस कहानी को आप सभी तक पहुँचा रहा हूँ । उम्मीद करूँगा की इसका असर आपको इसे और आगे पहुँचाने को मजबूर करेगा )

राम ऐक छोटे से क़सबे में रहता था जो कि देहरादून से लगभग 200km दूर यमुना घाटी के की तलहटी में बसा है । चारों और सुन्दर पर्वत और इसकी घाटी मे बहती निरन्तर दो नदियों कि जलधारा और स्वर्ग सा बसा ये बेहतरीन क़स्बा ।

यहॉ के लोग तेज़ तर्रार किन्तु सुविधाओं से वंचित है फिर भी हिम्मत ना हारने वाले मेहनती है । राम ऐक 12 वर्ष का मेधावी ऐवम जिज्ञासु लड़का है जो अपने मासूमियत से भरपूर उड़दंगो से ना केवल अपने माता पिता अपितु गली मोहल्लों को तक को ख़ूब परेशान रखता था ।

ये क़स्बा टौंस नदि की तलहटी मे बसा है तथा राष्ट्रीय राजमार्ग इसको हिमाचल ऐवम उत्तराखण्ड से जोड़ता है । वाहनों की आवाजाही लगी रहती है जिसके चलते छोटी सी मार्केट मे काफ़ी लोगों को रोज़गार भी मिलता है ।

इसी रास्ते के चलते वन गुर्जर अपने मवेशियों के साथ गर्मीयो के शुरू होते ही मैदानों से ऊँचे पहाड़ों की ओर चलते है तथा बर्फ़बारी से पहले ही फिर इसी रास्ते मैदानों की ओर पलायन करते है ।

इनके पशुओं की संख्या काफ़ी होती है तथा इसमें गाय , भैंसे , बकरियाँ और घोड़े प्रमुख होते है । अभी गर्मियाँ शुरू हो चली थी स्कूल अब बन्द थे और राम प्रत्येक दिन अपने मित्रों के साथ नदी मे नहाने चला जाता था । वन गुर्जरों का आना शुरू हो चला था और राम और उसके साथी छोटी नदी मे इन पशुओं को ख़ूब परेशान करते थे । वो कभी बकरियों के बच्चों के पीछे भागते तो कभी पानी मे नहा रही भैंसों को नहलाते । हर दिन इसी तरह मौज मस्ती मे बीत जाता ।

4-5 दिनों के बाद एक वन गुर्जर का झुण्ड आया जिसमें बकरियाँ और घोड़ों की संख्या ज़्यादा थी । राम, मृनल , सत्यानंद और उसके कुछ साथी आज भी घर से खाना खाकर खड़ी धूप मे नदी किनारे पड़ी पानी की छाबर बना कर उसमे लोटपोट आराम फ़रमा रहे थे तभी इस झुण्ड ने उनकी इस अय्याशी मे बाधा डाली । इन गुर्जरों से यहॉ के मूल बाशिन्दें कभी गाय ,भैंस , बकरीयॉ और घोड़े इत्यादि उचित दामों मे ख़रीद लिया करते थे । इस घोड़ों के झुण्ड मे तो ऐक से बड़कर ऐक घोड़े थे और इनमें से सबसे ख़ूबसूरत था ऐक सफ़ेद जवान घोड़ा जो अभी भरपूर जवान भी नहीं हुआ था लेकिन उसके सफ़ेद मखमली बाल उसकी गर्दन से ऐसे लहराते मानो परियों ने मोतियों की मालाओं को ऐक साथ जोड़ दिया हो , उसके खुर्रो मे भी लम्बे बालों का ऐक गुच्छा था तथा इस घोड़े को देखकर राम और उसके साथी मानो ख़ुशियों कि चौकड़ी भर रहे थे ।

सत्यानंद ऐवम मृणाल क़स्बे के काफ़ी अमीर परिवारों से आते थे ऐवम इनके परिवारों मे पहले से घोड़े मौजूद थे ।उन दिनों पशुधन सम्पदा परिवार की शान थी और परिवार की हैसियत दूध-दही-घृत माखन मेवा से ही की जाती थी ।राम तो ऐक ग़रीब परिवार से था हालाँकि राम अपने मित्रों मे सर्वाधिक बुद्धिमान ऐवम तेजस्वी था लेकिन जब भी वो लोग अपने घोड़ों के बारे मे बात करते तो वो चुप हो जाता ।उसकी भी जिज्ञासा जाग जाती की मेरे पास भी ऐक घोड़ा होता तो मैं भी कुछ हेकड़ी दिखा पाता और इतना ख़ूबसूरत घोड़ा तो किसी ने पहले कभी देखा ही नहीं । दिन भर इन लोगों ने नदी के किनारे ख़ूब मस्ती की और दिन भर घोड़ों के नामो पर चर्चा की । कोई चेतक कहता तो कोई कुछ ।

राम ने मन ही मन सोचा की क्यों ना इस घोड़े को ख़रीदा जाये । राम जिज्ञासापूर्ण घोड़े के मालिक के लड़के सलीम के पास गया जिसने उस वक़्त घोड़े को पकड़ रखा था । राम ने सलीम को पूछा “भाई कितने का है ये घोड़ा “

सलीम – चार हज़ार का ।

चार हज़ार उन दिनों बड़ी रक़म मानी जाती थी और राम ने चार हज़ार कभी सोचे भी नहीं थे देखना तो बहुत दूर की बात थी और वह हक़ीक़त जानता था यहॉ तक कि राम कभी कभी स्कूल तक नहीं जाता था क्योंकि उसके पिता स्कूल की फ़ीस भी कई बार टाईम से नहीं दे पाते थे जो कि मात्र पचास रूपया प्रति माह होती थी । राम मन ही मन बेहद निराश था लेकिन उसने इस शिकन को चेहरे पर प्रतीत नहीं होने दिया । सब मित्र बेहद ख़ुशी ख़ुशी घर चले गये ।

घर पंहचते ही राम ने अपने पिता से पूछा –

“बाबा घोड़ा घिनी ला , होद्द एसो

बाठकुणा “

(बाबा क्या आप मेरे लिये घोड़ा ख़रीदेंगे बेहद ख़ूबसूरत है )

इस पर पिता मुस्कराहट के साथ पुछते है ।

“कैथा ओसो ऐ , आमारे कैथुके रोआ लागी घोड़ा “

(कहॉ है , और हमारे किस काम का है घोड़ा )

“गुजरो केंई ओसो है , ला बाबा इनी केईं बाद्दे केईं है घोड़ा , आमे भी उण्डा घीनु ले “

(गुर्जर के पास है बाबा , इन सब लोगों के पास घोड़ा है हम भी ख़रीदते है ना बाबा )

“बाबा – केतरे का लाई देई “

(कितने का दे रहे है ?)

राम – चोऊ हजारो का

(चार हज़ार का )

बाबा – बेटा रूपये ने बेटा रूपये ने ओथी ।

(बेटा पैसे नहीं है )

राम – उण्डा घिनुले ला बाबा हद्द ओसो बोडिया घोड़ा ।

(बाबा ख़रीद लो ना बहुत अच्छा घोड़ा है )

बाबा – रूपये ने ओथी बेटा हेभी , हेभी ने घिनीओन्दा ।

(पैसे नहीं है बेटा अभी , अभी हम नहीं ख़रीद पायेंगे )

राम – तुमे बोलो ऐश्नो ही , तुमे ने कोदी ने घिन्दे ।

(आप तो हमेशा ऐसे ही बोलते हो , कभी नहीं ख़रीदते हो )

इन्हीं शब्दों के साथ मानो उसके सपने चूर हो गये हो , ऑसुओ की जलधारा प्रवाहित हो चली लेकिन पिता तो असहाय है कर भी क्या सकते थे सिवाय इसके कि वो बोलते है कि जब पैसे होगे तो ले लेंगे । वह फूट फूट कर रोने लगा जैसे उसके सारे सपने यहीं ख़त्म हो गये हों , जैसे उसका जीवन ही व्यर्थ चला गया हो कि वो आख़िर पैदा ही क्यों हुआ !

लेकिन पिता ने उसे रोने दिया वो जानते थे कि दर्द क्या है क्योंकि उनके संघर्षों ने , जीवन के कटु अनुभवो ने उन्हें ज़ख़्मों के अलावा कभी कुछ दिया ही नहीं ।

ऐक नयी सुबह होती है लेकिन राम अभी भी नाराज़ है रात का खाना भी नहीं खाया है हालाँकि सलीम और उसका जादुई खुर्रो वाला घोड़ा भोर कि पहली पहर मे ही कूच कर गये है ऊचें पहाड़ों की ओर जहॉ उसको अपने मवेशियों के लिये हरी हरी घास पर्याप्त मात्रा मे मिलेगी । राम बहुत नाराज़ है उसके बाबा उसको मनाने का प्रयत्न करते रहते है । 1-2 दिन बाद फिर उसकी बंदमाशियो भरी ज़िन्दगी होती है अब वह सब कुछ भूल गया है। मानो कोई घोड़ा उसकी ज़िन्दगी मे था ही नहीं ।

इस साल राम मेधावी होने के चलते नवोदय विद्यालय के प्रवेश परिक्षा मे सलेक्ट हो जाता है और अब वह 6-12 तक की पडाई वही करेगा ।उसके साथ साथ सत्यानंद व मृणाल भी चयनित होते है ।सब के सब गॉव से बेहद दूर उत्तरकाशी चले जाते है ।

चार साल बाद उसकी दसवीं की परिक्षाऐ सम्पन्न होती है उसके परिणाम आने तक वह अपने मित्रों के साथ गॉव वापस आया है । दसवीं का परिणाम आता है वह प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण हुआ है और उसके सब मित्रों मे सबसे अधिक अंक है ।

मई माह का प्रथम सप्ताह है वन गुर्जरो का आना जाना फिर से शुरू हो चला है । बचपन की भॉती अभी भी सब दोस्त दिन मे खाना खाने के बाद नदी मे नहाने चले जाते है । और वो लोग देखते है सलीम और उसके मवेशियों का झुण्ड फिर से आया है । वही घोड़ा जो चार साल पहले उन्होंने देखा था आज भी है लेकिन ज़्यादा मज़बूत , ज़्यादा जवान और ज़्यादा ख़ूबसूरत । किसी दोस्त को ये नहीं मालूम था की राम उस घोड़े को कितना चाहता था । सलीम भी अब काफ़ी जवान दिख रहा था लेकिन सलीम के दो बच्चे भी हो गये थे हालाँकि वह राम से 3-4 साल ही बड़ा होगा । राम जिज्ञासा से पुछता है कि क्या उसने उसे पहचाना ।

सलीम मना करता है और कहता है कि उसे याद नहीं है । राम फिर भी उसको सारी बात बताता है और कहता है कि चार साल पहले तुमने इस घोड़े की किन्तु चार हज़ार बोली थी ।

राम फिर क़ीमत पुछता है ?

सलीम जो पहले से ही थका हारा है थोड़ा झल्लाकर अब क़ीमत चालीस हज़ार कहता है । ख़ैर सायंकाल होते ही सब वापस घर की ओर चल देते है । घूमफिर कर रात को घर मे खाना खाते वह पिता को कहता है |

राम – जुणजा सैजा घोड़ा ओसो था ने मुऐ तोदी ला था बोली ! ऐबे ओसो चालीश हज़ारों का और तोदी ओसो था चोऊ हज़ारों का ।

(बाबा जो मैं वो घोड़ा कह रहा था ना , वो अब चालीस हज़ार का है और उस वक़्त चार हज़ार का था )

बाबा ने कुछ नहीं कहा । राम की आवाज़ मे वो मर्म सुनाई पड़ा जो इतने वर्षों तक भी उसके हृदय मे कही ना कही दफ़्न था । कुछ देर तक ख़ामोशी छायी रही

उसके बाबा रात को खाना खाने के बाद ही सलीम से मिलने चले गये और उनको बोल दिया कि सुबह थोड़ा रूक कर जाना ।

राम ख़ुशी से उठता है और बाबा चालीस हज़ार रूपये उसके हाथ मे थमा देते है और दोनों घोड़ा लेने बाज़ार जाते है । लोगों की भीड़ जमा होती है सब लोग घोड़े की तारीफ़ कर रहे है । राम बेहद ख़ुश था । उसके बाबा चाहते तो कुछ पैसे कम भी करवा सकते थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा ।

इसकी मन मे सदैव जिज्ञासा बनी रहेगी कि बाबा ने ऐसा क्यों किया ?

लेकिन राम तो इतना ख़ुश पहले कभी नहीं था शायद ये उसकी ज़िन्दगी का सबसे बेहतरीन पल था मानो ज़िन्दगी ने उसके आगे हार मान ली हो और वह उसे सब कुछ देना चाहती हो । राम की ख़ुशी की कल्पना शब्दों मे ब्यॉन नहीं की जा सकेगी कि वह कैसा महसूस कर रहा था लेकिन उसके सपनों का सफ़ेद घोड़ा उसे मिल गया था ।

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उड़ान

उड़ान – ललित हिनरेक

तुम equality कि बात करते हो

तुम revolution कि बात करते हो

तुम देशभक्ति कि बात करते हो

और तुम बदलाव कि बात करते हो

यहॉ तक कि तुम विकास की बात करते हो

वो भी तब जब तुम सब सुविधा से संचित हो ।

मैंने क्या देखा कि तुमने तो बस पाले बदले ,

कपड़े बदले , खोल बदला और बस घोटाले बदले ।

ये वो है जो जिनके मॉ बाप ने दिहाडी मज़दूरी की है ,

ये वो है चन्द पैसों नो जिनकी सारी ख़्वाहिश पूरी की है ।

तुम देखना जब ये बदलेंगे तो वो revolution होगी ,

जिसकी तुमने कपट इरादों से कभी पुरजोर वकालत की थी ।

तुम देखना इनके सपनों से ही ख़ुशहाली आयेगी ,

जो तुम्हारी उस equality की लढियॉ लगाएगी ।

जिसकी रोशनी से जगमग ना सिर्फ़ ऐक घर होगा बल्कि

वो भी होगें जिनके सपनों मे घनघोर अंधेरे नज़र आते है ।

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दोस्ती (A little story of friendship )

मैंने इंजीनियरिंग में कुछ नहीं सीखा जिसका मुझे ताउम्र मलाल रहेगा । मैं और मेरे कुछ मित्र अपनी ब्रांच में सबसे कम मार्क्स लाने वालों में से थे और उनमें भी मैं लगभग सबसे पीछे था , ऐक आध ही मुझसे पीछे रहता होगा ।
मेरे दोस्तों में कई बेहद प्रतिभाशाली थे लेकिन उनके मार्क्स नहीं आते थे क्योंकि वो भी कोई दिलचस्पी नहीं लेते थे पढ़ाई लिखाई में ।

मुझे पास कराने में तो मेरे दोस्तों का ख़ासा रोल रहा है । वो रात भर ऐक ऐक यूनिट पड़ते थे फिर प्रत्येक दो घण्टे में मुझे भी पढ़ाते थे । इसमें मेरी ब्रांच के मोहित, रितेश , किशन , गैरी और सूरज थे । इन सभी से परे मेरे बेस्ट फ़्रेण्ड निशान्त का रोल सबसे अधिक रहा । मुझे लगता है उसको इलेक्ट्रानिक्स से ज़्यादा शायद इलेक्ट्रिकल का नॉलेज हो गया होगा । ये सब के सब बैक बैंकर्स विद बैक थे और मैं शायद इनमें टाप था । हालत ये थी कि कभी कभी ऐसा लगता था कि बमुश्किल है कि चार साल में ही डिग्री मिल जायेगी ।
हज़ारों वाक्ये है जो मेरी दोस्ती की कहानियों
में शुमार है ।
मैं कॉलेज ऐक्टाविटीज में बहुत कम इन्वालव रहता था जिसके कारण मुझे प्रत्येक सेमेस्टर में ऐक आध सब्जेक्ट में डिबार्ड होना पड़ता था । यहॉ तक कि 3rd सेमेस्टर से 6th सेमेस्टर तक टोटल बैक सात हो गयी थी । 6th सेमेस्टर के मध्य में यूनिवर्सिटी ने नया रूल लागू किया कि जिसकी भी चार से ज़्यादा बैक है वो सातवें सेमेस्टर नहीं भेजा जायेगा और उसकी ईयर बैक लग जायेगी । अब मेरे जैसे सैकड़ों की तो हालत ख़राब थी । दोस्त इतने कमीने थे सब जिनकी चार से कम बैक थी वो आ आ कर बोलते थे कोई नहीं भाई तू जूनियर मत समझना अपने को , भाई है तू अपना ।
मेरे सारे इंजीनियरिंग का लेखाजोखा या तो निशान्त देखता था या फिर मेरी ब्रांच के दोस्त । सितम्बर में डेट आ गयी थी । एग्ज़ाम पौड़ी गडवाल में होने थे । मेरे दोस्तों ने मुझे भी इन्फ़ॉर्म कर दिया कि तेरा पहला पेपर EMMI का है 15 सितम्बर को । मैंने नोट्स बनाना शुरू किया और थोड़ा पड़ना भी । पौड़ी  160 किलोमीटर दूर है देहरादून से !
सुबह चार बजे उठकर रिस्पना पुल जाना पड़ता था और वहाँ से टैक्सी पकड़कर पौड़ी जाना पड़ता था । निशान्त मुझे सुबह चार बजे उठकर लेने आता था और फिर बाईक में रिस्पना छोड़ता था ।
अब पहले पेपर का दिन भी आ गया । 15 सितम्बर को पौड़ी पहुँचकर अपने दोस्त कुमार सौरव के यहाँ रूका वह वहॉ के कॉलेज से ही इंजीनियरिंग कर रहा था । पेपर सेकेण्ड शिफ़्ट में था तो लन्च करके ,नहा धोकर और विशेषकर प्रार्थना कर एग्ज़ाम देने पंहुचा । टाईम हो गया था सब स्टूडेण्ट्स अन्दर चले गये और मैं अभी भी अपना नाम और पेपर का शेड्यूल ढूँढ रहा था । जब सब अन्दर चले गये तो और प्रोफ़ेसर ने मुझे देखा और पुछा कि कौन सा सब्जेक्ट है ?
मैंने दबी आवाज़ में कहा कि EMMI सर ।
उनने थोड़ा खिझते हुये कहा कि EMMI का तो पेपर ही नहीं है आज । क्या करते हो देख के नहीं आते , जाओ यहॉ से ! प्रोफ़ेसर चिल्लाये ।
मैं दबे पॉव खिसका मन ही मन सब दोस्तों को गाली दे रहा था वापस आते ही सबसे पहले डेट शीट देखी तो पता चला मेरा एग्ज़ाम 15 अक्टूबर को था और इन दोस्तों ने मुझे ऐक महीना पहले भेज रखा था ।
अब बहुत हँसता हू इन सब बातों को लेकर क्या दिन थे वो भी । हॉ ! मेरा वो एग्ज़ाम क्लीयर हो गया था , वो ही नहीं बल्की सभी सातों बैक उसी एक सेमेस्टर में । ये लेवल था मेरा और मेरे बैकबैंचर्स दोस्तों का ।
नेक्स्ट ईयर फ़ाइनल ईयर था । आठवें सेमेस्टर में तो सिर्फ़ एक महीना ही क्लास चली और सात फ़रवरी को लाल्टू दिन था । अब डायरेक्टर प्रैक्टीकल देने आना था । सात फ़रवरी शाम को फ़ेसबुक पर निशान्त का और मैसेज आया जो इस प्रकार था I

7.2.2012 9:46pm
भाई कितनी बातें ऐसी होती है जो मैं किसी को कह नहीं पाता और ना कभी कह पॉऊगॉ पर उसके लिये हम कुछ कर नहीं सकते हमें वो जैसा बनाता है वैसे बन जाते है मगर मैं जैसा था और जैसा हूं उसमें सबसे ज़्यादा क्न्ट्रीब्यूशन तेरा है मैं अपनी लाईफ़ में कुछ भी करूँ या ना कर पाऊँ पर तूने मेरे लिये जितना किया है शायद ही कोई किसी के लिये करेगा मैं हमेशा यही सोचता हूँ कि पता नहीं कौन से कर्म होगे मेरे ,जो मुझे तेरे जैसा दोस्त मिला अगर तू ना होता तो मैं शायद लाईफ़ का मतलब ही नहीं समझ पाता ,कुत्ते जैसी ज़िन्दगी तो कोई भी जी ले पर जो हमें अलग बनाते है वो होते है हमारे दोस्त , जो हम पर जान छिड़कते है
बस इतना कहना है कि चाहे तू जहाँ भी जाये कभी भी अपने आप को अकेले मत समझना कोई हो ना हो पर ऐसा दिन नहीं आएगा जिस दिन मैं तेरे साथ नहीं होऊँगा अभी भी ऐसा दिन नहीं कि तेरे बारे में ना सोचूँ और वैसे भी तू दुनिया मे अकेले है जो मुझे सबसे ज़्यादा जानता है हम सब के पास कुछ ना कुछ होता है लेकिन ऊपर वाले ने तुझे कुछ ज़्यादा ही टेलेण्ट दे के भेजा है और चाहे तुझे अपने आप पर इतना यक़ीन हो ना हो मगर जो भी तुझे अच्छे से जानता है उसे पता है कि तू क्या करने का जज़्बा रखता है
तो भाई तुझे कभी भी अपनी क़ाबिलियत पे थोड़ा सा भी शक हो तो मेरा ये मैसेज पड़ना और याद करना की मुझे तुझ पर कितना विश्वास है आगे हमें भी पता है कि हमारी लाईफ़ चेन्ज होने वाली है पर तू बिलकुल मत बदलना और इससे कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता कि तू आगे जा के कुछ करे ना करे बस कोशिश ज़रूर करना और किसी भी चीज़ की चीज़ की टेन्शन मत लेना मिल के दुनिया की मॉ चो* देगें

शायद ये पिछले दो दशकों से , जब से होश संभाला है किसी ने मेरे लिये सबसे बेहतरीन शब्द कहे है ।
जब भी कभी महसूस किया कि मैं क्या हूँ हमेशा इस मैसेज ने मुझे मेरे अच्छे होने का अहसास कराया है ।इंजीनियरिंग भले ही ना सीख पाये लेकिन दोस्ती सीख गये और मुझे हैरानी होती है कि मेरे सारे बैक बैंचर्स आज बेहतरीन जगहों पर है ।

आज के दौर पर जहाँ लोग अच्छे आवरण रूपी खोल धारण कर समाज में अपनी अच्छाई , दोस्तरूपी शुभचिन्तक के इरादे के ढोल पीटते है लेकिन अन्दर से उनका खोखलापन कभी ना कभी , किसी ना किसी रूप में जगज़ाहिर हो जाता है । मैं भाग्यशाली हूँ और मुझे अपने उन सभी लोगों पर गर्व है जिनका मेरे जीवन में कुछ ना कुछ सरोकार रहा है ।

आप भी उन लोगों को याद करिये जिनका आपके जीवन में अमूल्य योगदान है , ये वही लोग है जिनको आप धन दौलत से ख़रीद सकते ।

 

I have been so lucky to have great people in my life that had supported me in all the way. This was a small incident in my life but it delivers a great message. I hope you all will count all those people who have somehow contributed in your life directly or indirectly. Do not lose your good friends ever because they are rare. May be one day it is too late and your will realize that you had lost a diamond while you are busy with collecting stones.

Thank you.

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अन्तर्द्वन्द

नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठकर तथा पॉव पानी मे डूबोऐ हुऐ , उसकी कल-कल बहती जलधारा को निहारते हुये बालक शान्त भाव मे मानो आत्म-मंथन मे डूबा हुआ प्रकृति के सौन्दर्यमयी स्वरूप को महसूस करने का प्रयास कर रहा हो । नदी की धारा एक विशाल पत्थर से टकराकर ऐक तालाब का निर्माण करती है जहां जल का प्रवाह बिलकुल शान्त हो जाता है । बालक कुछ कंकड़ लिये लगातार शॉन्त जल मे फेंकता है तथा उनसे उठने वाली तंरगो की तीव्रता को अपने पॉव तक महसूस करके ऐक अलग अनुभूति प्राप्त करता है । प्रत्येक कंकड़ से प्रतिकर्षित होने वाली ये तंरगे अपने केन्द्र से परतो मे व्यक्ति तक पहुँचती है । प्रकृति मानो स्वयं एक संदेश प्रसारित करने का प्रयत्न कर रही हो कि जीवन भी ऐक केन्द्र से शुरू होकर आगे बढ़ता हो तथा इन्ही तंरगो की भॉती बाल्यावस्था की चंचलता , युवावस्था की ऊर्जा ऐवम् अन्तिम क्षणो मे अनुभवों से परिपूर्ण किन्तु बिना ऊर्जा के, बिना तीव्रता के धीरे धीरे स्वतः ही विलुप्त हो जाता है । इस यात्रा मे अनुभवों का आधार , अर्जित किया विस्तृत दायरा अन्तिम तंरग की उपलब्धियों की व्याख्या करता हो । व्यक्ति समझता है अनुभव सर्वश्रेष्ठ अध्यापक है किन्तु अंतर्मन के इस द्वंद्व को देखकर दुखी होता है क्योंकि उसे महसूस होता है की ये ऊर्जामयी तरंगे तो अल्पकालिक है । उसके मस्तिष्क मे मानो युद्ध चल पड़ा हो वह अपनी तंरगो को कैसे व्यवस्थित करे यह प्रश्न कदाचित उचित था । कुछ देर बाद यह बालक घर की ओर प्रस्थान करता है , घर पंहुचते ही पुछता है कि मॉ सर्वाधिक प्रेम किससे करती है । मॉ हँसकर कहती है कि “अरे पगले तू ही तो मेरा सबकुछ है , मेने अपने जीवन मूल्यो को तुम्हें प्रदान करके अगली पीढ़ी के लिये संरक्षित किया है , मुझे इससे अधिक जीवन से और क्या चाहिए “। बालक बहुत प्रभावित ऐवम प्रसन्न होता है । भावुक होकर विचारो मे डूब जाता है कि धन्य है वो मॉ जिनके संस्कारों से साधारण मनुष्य ईश्वर हो गये । वह खुश था कि उसकी मॉ सदैव उसे सर्वाधिक प्रेम करने का एहसास दिलाती रहती थी ।

रात का खाना खाने के बाद रोज की तरह वह छत पर सोने चला गया । आज आकाश बिलकुल नीला ऐवम स्वछन्द था तथा हजारों टिमटिमाते तारे साफ देखे जा सकते थे । वह लेट गया ऐवम सितारों को निहारने लगा । ये टिमटिमाते सितारे मानो उसे बैचेन करने लगे , उसे उसके अस्तित्व के वर्चस्व का पाठ पड़ाने लगे हो । सितारों की इस भीड़ मे मानो वह कहीं खो सा गया हो , वह जहॉ भी देखता उसे स्वरूप नजर आ रहा था । वह महसूस करने लगा की वह विलुप्त हो रहा है तथा अन्य सितारे प्रकाशमय हो रहे हो । वह बैचेन होने लगा तथा ऐसा महसूस करने लगा की इस भीड़ मे तो उसका अस्तित्व ही नही । यह बेहद कठिन समय था । वह उठता है तथा टहलने लगता है । कुछ देर बाद उसे नींद आ जाती है । आज का युद्ध मानो समाप्त हो चुका हो । अगले दिन सूर्य की प्रथम किरण के साथ वह जागता है । वह बेहद प्रसन्न है क्योंकि सारा अंधकार समाप्त हो चुका है और जीवन मानो प्रकाशमय हो चुका है । उसे मानो इस अन्तर्द्वन्द से पाठ मिला हो कि जीवन मे कभी ज्यादा घमण्ड होने लगे तो स्वच्छ आकाश के नीचे लेटकर उस भीड़ मे अपने अस्तित्व को ढूँढना , घमण्ड स्वत: दूर हो जायेगा । तंरगो ने मानो जीवन की निश्चित यात्रा का पाठ सिखाया हो जिसके आधार पर वह अपनी ऊर्जा को व्यवस्थित कर सकता है । वह बेहद प्रसन्न था तथा प्रकृति के रहस्यमय सौन्दर्य को और विस्तृत समझना चाहता था । उसकी सिखने की ललक मानो हजारो गुना बड़ गयी हो । वह शिक्षित होकर आगे बढ़ना चाहता था तथा स्कूल जाकर अब ज्ञान अर्जित करना चाहता था । वह खिलखिलाकर मॉ से कहता है वह स्कूल जाना चाहता है । मॉ खुश थी तथा स्वीकृति देने के बाद बालक बेहद प्रसन्न था । मैं भी उस बालक को देखकर बेहद प्रसन्न हुआ ।

 

ठण्डी सर्द रातें रूह को कंपकपा देती है लेकिन स्वप्न ज्योति आज भी उसे खुले आकाश को निहारने हेतु आकर्षित करती है । मॉ ने चुल्हा फूकॉ , गर्म रोटियॉ सेक कर उसे आवाज लगायी किन्तु वह रोज की भॉति आज भी आकाश मे रहस्यो को निहारते हुये कहीं खो सा गया था । आखिर यह ब्रह्मांड है क्या ? उसकी उत्पत्ति से लेकर अन्तिम अवस्था तक के विचारो की उथल पुथल ने उसे मानो गहन चिन्तन मे डाल दिया हो जैसे । विचारो की उम्र नही होती , ये तो शून्य से उत्पन्न होकर , शून्य मे विलीन होते है । वह महसूस करता कि कितनी विचित्र बात है , रहस्यो का ये भण्डार मानो उसकी जिज्ञासा को सहस्र गति प्रदान करता हो । मॉ ने फिर आवाज लगायी , वह वापस जाता है खाना तैयार है और मॉ से पुछता है कि वह वहॉ तक यात्रा करना चाहता है जहॉ उसे ब्रह्मांड की अन्तिम अवस्था की प्राप्ति हो । मॉ मुस्कराते हुये कहती है जहॉ शिव शम्भू रहते हैं वही से सब शुरू होता है और वहीं समाप्त । मॉ उसकी उत्सुकता देखकर मुस्कराती है । वह गर्म गर्म रोटियॉ , सब्जी खाता है तथा रहस्यो का वार्तालाप जारी रहता है । गॉव मे बिजली की समस्या है , खाकर वह चिमनी वाला लैम्प जला देता है और कमरे मे जाकर टेबल पर रख देता है । वह अब कला की कॉपी निकाल कर पेंसिल से कुछ उकेरने की कोशिश करता है । कुछ देर बाद उसे नींद आने लगती है तो आधा अधुरा चित्र छोड़कर लैम्प बुझा देता है और लेट जाता है । मस्तिष्क मे अभी रहस्यो का युद्ध छुड़ा हुआ है , ये कल्पनाऐं उसे ऐक अलग आन्नद प्रदान करती थी । एक हिंदू परिवार मे होने के कारण वह धार्मिक गतिविधियों से भी अक्सर रूबरू हो जाया करता था । वह आश्चर्यचकित रहता था कि कैसे आस्थाओं का जन्म होता है । वह देवी देवताओं के अस्तित्व से भी अत्यंत प्रभावित था तथा उनके रहस्य उसे सदैव उत्साहित रखते थे ।

उसको नींद आ जाती है , मानो ऐक युद्ध की समाप्ति का विगुल बजा दिया गया हो किन्तु ऐक अलग काल्पनिक संसार मे वह अपनी रहस्यमयी खोजे जारी रखता है ।

वह घर से निकल पड़ा है , गॉव से काफी दूर जाकर वापस देखता है , धुमिल होती तस्वीर अभी दिखाई दे रही है । फिर मुड़कर सफर की गति को बरकरार रखता है । अब यहॉ से दुसरा गॉव शुरू होता है , चलते चलते कुछ लोग मिलते है किन्तु वह बिना किसी वार्तालाप के आगे बड़ता जाता है । किसकी तलाश और कौन सी वो मंजिल , अभी भी अस्पष्ट है । दिन समाप्त होता है वह चॉदनी रात मे भी यात्रा बरकरार रखता है । इसी तरह कुछ और गॉव पार करता रहता है तथा 2-4 दिन बीत जाते है । चेहरे पर प्रखर तेजस्वी ओज , प्रचण्ड जोश उसकी ऊर्जा को सदैव ज्वलित करता है तथा आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रहती है ।

अब ऐक धार्मिक स्थल आता है जहॉ कुछेक श्रद्धालु दिखाई पड़ते है । ऐक साधू उसे बताते है यह रास्ता सीधेे कैलाश जाता है जहॉ स्वयं शिव शम्भू विराजमान है किन्तु इस राह पर कोई गया नही कभी । इतने दिनो के कठिन यात्रा उसे डगमगा नही पायी , अब तो मानो उसे शिव शम्भू की तलाश हो जैसे । उसकी राहे कितनी अलग है , वह किसी की परवाह किये वगैर आगे की ओर चल पड़ता है । इतने दिनो से कन्दमूल, फल फूलों जैसे प्राकृतिक स्रोतों से यापन करता रहा । कठिन मार्गों, नल नालो , नदि , जंगलों को पार करता रहा और अब बर्फ की चोटियों से रूबरू होता है । ये राह कितनी कठिन है किन्तु जिज्ञासा की हठ हार मानने से इनकार करती है । अब ये डगर और कठिन होने वाली थी वह इस बात से अनभिज्ञ था । ये बर्फ ढकी चोटियॉ और उनसे बहने वाली सर्द हवाऐं मानो तीखी तलवार सरिखे वार करती है । उसका जुनून आगे बढ़ने का हौसला देता है , रफ्तार थमती नही और वह बड़ता चला गया । वह ऐक चोटी पर पहुँच गया किन्तु उसे अब और ऊंची चोटियॉ दिखाई दे रही है , वह फिर आगे बड़ता है शिव शम्भू की तलाश मे ।

ऐक स्थान उसे महसूस होता है कि अब उसका शरीर साथ नही दे रहा , रुककर और ऊँची चोटियों को देखता है । उसकी ऑखो के सामने अब अंधेरा छा रहा है , वह घुटनो के बल बैठ जाता है । उसका शरीर ठण्डा पड़ने लगा , सॉसे थम सी रही थी । उसे प्रतीत होने लगा कि ये अन्तिम क्षण है , निराशा ने जकड़ सा लिया हो जैसे । उसे दुख है कि बिना दर्शन के छोड़कर जाना पड़ेगा । अचानक अंधेरा छा जाता है , वह गिर पड़ता है । शरीर गिरा पड़ा है , वह अंधकार मे विलीन हो गया । यही सत्य है , यह अंधकार है और इसके आगे कुछ नही है , यही शून्य है । वह कभी नही उठेगा ।

कुछ क्षण पश्चात ऐक तीव्र ज्योति प्रकट होती है , उसकी ऑखे खुलती है तो वह स्वयं को किसी की बॉहो मे पाता है । ये क्या ! साक्षात शिव शम्भू उसे उठाये हुये है । उनके तेज से मानो संसार प्रकाशित हो रहा हो जैसे । उनकी रहस्यमयी मुस्कान मानो सहस्र रहस्यों को जन्म दे रही हो जैसै । भोले बाबा मुस्कराये , वह कुछ नही बोल पाया । बाबा ने सिर पर हाथ फेरा , उसे ऐक झटका लगा उसने ऑखे खोल कर देखा मॉ सिर पर हाथ फेर रही थी । दूध का गिलास मेज पर रखा था , सुबह हो चुकी थी । वह मॉ से लिपट जाता है किन्तु कुछ कहता नही । मॉ हाथ फरती है और मुस्कराती है । ये रहस्यो के खजाने मे ऐक और हीरा इकट्ठा हो गया । मॉ तथा बालक दोनो बेहद प्रसन्न थे । मैं भी उन्हे देखकर बेहद प्रसन्न था ।

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मैं जाति हूँ (Castiesm )

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मैं जाति हूँ (Castiesm )

मैं ब्राह्मण हूँ , सर्वोच्च ज्ञानी हूँ वेदों का
भिक्षु हूँ लेकिन मालिक हू ईश्वर के निर्देशों का ।

कालान्तर में तुम सब मानव में , सर्वोच्च कहलाऊँगा
देवताओं से सीधे बात बस मैं ही कर पाऊँगा ।

तुम सब बलवानो को राजपाट का , सौभाग्य दिलवाऊँगा
कमज़ोरों से पूर्व जन्म के पापों को धुलवाऊंगा ।

मैं राजपूत हूँ , बस राजयोग ही पॉऊगा
राजा का बेटा हूँ तो बस राजा ही कहलाऊँगा ।

बुद्धी ना भी हो तो , ब्राह्मण मेरे दरबारी होगे
सेना होगी , नौकर होगे और मेरे व्यापारी होगे ।

कालान्तर मैं सदैव , यूं ही बलवान रहूँगा ,
बाहूबली व बलशाली वो राजपूत रहूँगा ।

मैं दलित हूँ , मैं ग़ुलाम हूँ जजमानो का
भोग रहा मैं दण्ड विधी का और पूर्व जन्म के पापों का ।

मैं अछूत हूँ , छाया का अभीशापी हूँ
मैं दलित हूँ , मैं नीच हूँ और सामाजिक पापी हूँ ।

मैं छू लू पत्थर के देवों को तो ,ये उनकी निन्दा है ।
क्योंकि मैं तो मृत हूँ और मेरे देव अभी भी ज़िन्दा है ।

कालान्तर मे मैं सदैव हक़ से वंचित हो जाऊँगा ,
हेय दृष्टि भावना लेकर सदैव अछूत कहलाऊँगॉ ।

 

 

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The Journey Begins

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Good company in a journey makes the way seem shorter. — Izaak Walton

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