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दोस्ती (A little story of friendship )

मैंने इंजीनियरिंग में कुछ नहीं सीखा जिसका मुझे ताउम्र मलाल रहेगा । मैं और मेरे कुछ मित्र अपनी ब्रांच में सबसे कम मार्क्स लाने वालों में से थे और उनमें भी मैं लगभग सबसे पीछे था , ऐक आध ही मुझसे पीछे रहता होगा ।
मेरे दोस्तों में कई बेहद प्रतिभाशाली थे लेकिन उनके मार्क्स नहीं आते थे क्योंकि वो भी कोई दिलचस्पी नहीं लेते थे पढ़ाई लिखाई में ।

मुझे पास कराने में तो मेरे दोस्तों का ख़ासा रोल रहा है । वो रात भर ऐक ऐक यूनिट पड़ते थे फिर प्रत्येक दो घण्टे में मुझे भी पढ़ाते थे । इसमें मेरी ब्रांच के मोहित, रितेश , किशन , गैरी और सूरज थे । इन सभी से परे मेरे बेस्ट फ़्रेण्ड निशान्त का रोल सबसे अधिक रहा । मुझे लगता है उसको इलेक्ट्रानिक्स से ज़्यादा शायद इलेक्ट्रिकल का नॉलेज हो गया होगा । ये सब के सब बैक बैंकर्स विद बैक थे और मैं शायद इनमें टाप था । हालत ये थी कि कभी कभी ऐसा लगता था कि बमुश्किल है कि चार साल में ही डिग्री मिल जायेगी ।
हज़ारों वाक्ये है जो मेरी दोस्ती की कहानियों
में शुमार है ।
मैं कॉलेज ऐक्टाविटीज में बहुत कम इन्वालव रहता था जिसके कारण मुझे प्रत्येक सेमेस्टर में ऐक आध सब्जेक्ट में डिबार्ड होना पड़ता था । यहॉ तक कि 3rd सेमेस्टर से 6th सेमेस्टर तक टोटल बैक सात हो गयी थी । 6th सेमेस्टर के मध्य में यूनिवर्सिटी ने नया रूल लागू किया कि जिसकी भी चार से ज़्यादा बैक है वो सातवें सेमेस्टर नहीं भेजा जायेगा और उसकी ईयर बैक लग जायेगी । अब मेरे जैसे सैकड़ों की तो हालत ख़राब थी । दोस्त इतने कमीने थे सब जिनकी चार से कम बैक थी वो आ आ कर बोलते थे कोई नहीं भाई तू जूनियर मत समझना अपने को , भाई है तू अपना ।
मेरे सारे इंजीनियरिंग का लेखाजोखा या तो निशान्त देखता था या फिर मेरी ब्रांच के दोस्त । सितम्बर में डेट आ गयी थी । एग्ज़ाम पौड़ी गडवाल में होने थे । मेरे दोस्तों ने मुझे भी इन्फ़ॉर्म कर दिया कि तेरा पहला पेपर EMMI का है 15 सितम्बर को । मैंने नोट्स बनाना शुरू किया और थोड़ा पड़ना भी । पौड़ी  160 किलोमीटर दूर है देहरादून से !
सुबह चार बजे उठकर रिस्पना पुल जाना पड़ता था और वहाँ से टैक्सी पकड़कर पौड़ी जाना पड़ता था । निशान्त मुझे सुबह चार बजे उठकर लेने आता था और फिर बाईक में रिस्पना छोड़ता था ।
अब पहले पेपर का दिन भी आ गया । 15 सितम्बर को पौड़ी पहुँचकर अपने दोस्त कुमार सौरव के यहाँ रूका वह वहॉ के कॉलेज से ही इंजीनियरिंग कर रहा था । पेपर सेकेण्ड शिफ़्ट में था तो लन्च करके ,नहा धोकर और विशेषकर प्रार्थना कर एग्ज़ाम देने पंहुचा । टाईम हो गया था सब स्टूडेण्ट्स अन्दर चले गये और मैं अभी भी अपना नाम और पेपर का शेड्यूल ढूँढ रहा था । जब सब अन्दर चले गये तो और प्रोफ़ेसर ने मुझे देखा और पुछा कि कौन सा सब्जेक्ट है ?
मैंने दबी आवाज़ में कहा कि EMMI सर ।
उनने थोड़ा खिझते हुये कहा कि EMMI का तो पेपर ही नहीं है आज । क्या करते हो देख के नहीं आते , जाओ यहॉ से ! प्रोफ़ेसर चिल्लाये ।
मैं दबे पॉव खिसका मन ही मन सब दोस्तों को गाली दे रहा था वापस आते ही सबसे पहले डेट शीट देखी तो पता चला मेरा एग्ज़ाम 15 अक्टूबर को था और इन दोस्तों ने मुझे ऐक महीना पहले भेज रखा था ।
अब बहुत हँसता हू इन सब बातों को लेकर क्या दिन थे वो भी । हॉ ! मेरा वो एग्ज़ाम क्लीयर हो गया था , वो ही नहीं बल्की सभी सातों बैक उसी एक सेमेस्टर में । ये लेवल था मेरा और मेरे बैकबैंचर्स दोस्तों का ।
नेक्स्ट ईयर फ़ाइनल ईयर था । आठवें सेमेस्टर में तो सिर्फ़ एक महीना ही क्लास चली और सात फ़रवरी को लाल्टू दिन था । अब डायरेक्टर प्रैक्टीकल देने आना था । सात फ़रवरी शाम को फ़ेसबुक पर निशान्त का और मैसेज आया जो इस प्रकार था I

7.2.2012 9:46pm
भाई कितनी बातें ऐसी होती है जो मैं किसी को कह नहीं पाता और ना कभी कह पॉऊगॉ पर उसके लिये हम कुछ कर नहीं सकते हमें वो जैसा बनाता है वैसे बन जाते है मगर मैं जैसा था और जैसा हूं उसमें सबसे ज़्यादा क्न्ट्रीब्यूशन तेरा है मैं अपनी लाईफ़ में कुछ भी करूँ या ना कर पाऊँ पर तूने मेरे लिये जितना किया है शायद ही कोई किसी के लिये करेगा मैं हमेशा यही सोचता हूँ कि पता नहीं कौन से कर्म होगे मेरे ,जो मुझे तेरे जैसा दोस्त मिला अगर तू ना होता तो मैं शायद लाईफ़ का मतलब ही नहीं समझ पाता ,कुत्ते जैसी ज़िन्दगी तो कोई भी जी ले पर जो हमें अलग बनाते है वो होते है हमारे दोस्त , जो हम पर जान छिड़कते है
बस इतना कहना है कि चाहे तू जहाँ भी जाये कभी भी अपने आप को अकेले मत समझना कोई हो ना हो पर ऐसा दिन नहीं आएगा जिस दिन मैं तेरे साथ नहीं होऊँगा अभी भी ऐसा दिन नहीं कि तेरे बारे में ना सोचूँ और वैसे भी तू दुनिया मे अकेले है जो मुझे सबसे ज़्यादा जानता है हम सब के पास कुछ ना कुछ होता है लेकिन ऊपर वाले ने तुझे कुछ ज़्यादा ही टेलेण्ट दे के भेजा है और चाहे तुझे अपने आप पर इतना यक़ीन हो ना हो मगर जो भी तुझे अच्छे से जानता है उसे पता है कि तू क्या करने का जज़्बा रखता है
तो भाई तुझे कभी भी अपनी क़ाबिलियत पे थोड़ा सा भी शक हो तो मेरा ये मैसेज पड़ना और याद करना की मुझे तुझ पर कितना विश्वास है आगे हमें भी पता है कि हमारी लाईफ़ चेन्ज होने वाली है पर तू बिलकुल मत बदलना और इससे कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता कि तू आगे जा के कुछ करे ना करे बस कोशिश ज़रूर करना और किसी भी चीज़ की चीज़ की टेन्शन मत लेना मिल के दुनिया की मॉ चो* देगें

शायद ये पिछले दो दशकों से , जब से होश संभाला है किसी ने मेरे लिये सबसे बेहतरीन शब्द कहे है ।
जब भी कभी महसूस किया कि मैं क्या हूँ हमेशा इस मैसेज ने मुझे मेरे अच्छे होने का अहसास कराया है ।इंजीनियरिंग भले ही ना सीख पाये लेकिन दोस्ती सीख गये और मुझे हैरानी होती है कि मेरे सारे बैक बैंचर्स आज बेहतरीन जगहों पर है ।

आज के दौर पर जहाँ लोग अच्छे आवरण रूपी खोल धारण कर समाज में अपनी अच्छाई , दोस्तरूपी शुभचिन्तक के इरादे के ढोल पीटते है लेकिन अन्दर से उनका खोखलापन कभी ना कभी , किसी ना किसी रूप में जगज़ाहिर हो जाता है । मैं भाग्यशाली हूँ और मुझे अपने उन सभी लोगों पर गर्व है जिनका मेरे जीवन में कुछ ना कुछ सरोकार रहा है ।

आप भी उन लोगों को याद करिये जिनका आपके जीवन में अमूल्य योगदान है , ये वही लोग है जिनको आप धन दौलत से ख़रीद सकते ।

 

I have been so lucky to have great people in my life that had supported me in all the way. This was a small incident in my life but it delivers a great message. I hope you all will count all those people who have somehow contributed in your life directly or indirectly. Do not lose your good friends ever because they are rare. May be one day it is too late and your will realize that you had lost a diamond while you are busy with collecting stones.

Thank you.

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By The Lost Monk

Writer || Poet || Explorer || Photographer || Engineer || Corporate Investigator || Motivator

5 replies on “दोस्ती (A little story of friendship )”

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