पहाड़ों का बचपन
रात भर मीठी बारिश हो रखी है , आज खेतों की जुताई के लिये बडि़या दिन है , सुबह – सुबह राम के पिता ने राग अलापा । राम और श्याम दोनों भाई सुबह जल्दी उठना पसन्द नहीं करते थे लेकिन उनकी मॉ भोर तले ही गाय दुहने चली जाती थी । गाय दूह कर वापस आकर कुछ दूध को बाल्टी मे डाल देती थी जिसकी दही जमाई जाती थी बाकि दिनचर्या मे आने वाले चायपान इत्यादि के लिये अलग रख देती थी । सुबह के चार साढ़े चार बजे रोज़ मॉ का यही काम था । पॉच बजे के क़रीब पिता जी भी उठ जाया करते थे और चाय बनाने मे लग जाते थे । पिता चाय बनाते थे तथा इतने मे मॉ जमाई गयी दही को लकड़ी की बनी ऐक हाण्डी मे डालकर मठ्ठा बनाने की तैय्यारी शुरू कर देती थी ।
दोनों लोग फिर चाय पीते और पता नहीं सुबह सुबह क्या बातचीत करते रहते , शायद उनके पास हज़ारों बातें थी जो वो हमेशा ऐक दूसरे से कहते रहते थे । इतना प्रेम था दोनों मे । फिर 6 बजे के क़रीब मॉ मठ्ठा बनाना शुरू कर देती , घिघरी की रस्सी बँधीं हुयी और फिर शुरू ….घर्र घर्र घर्र घर्र !
राम को इस आवाज़ से नफ़रत थी क्योंकि उसकी वो सपनों मे खोई हुयी नींद ख़राब हो जाती थी । लेकिन वो बिस्तर मे पड़ा ही रहता था उठता नहीं था और उसे देर तक सोना पंसद था । उसका भाई श्याम भी उतना ही आलसी था । लेकिन 6 बजे के क़रीब सुबह सुबह पिता आवाज़ लगाते है ,
“ओऐ ! उठ जाओ दोनों आज तीन दिन के बाद आसमान साफ़ हुआ है “
श्याम ने तुरन्त आवाज़ लगाई
“पापा जी आज मे डंगर (पशु) छोड़ने जंगल नहीं जाऊँगा , कल भी मैं ही गया था , आज भाई जी जायेगा “
और फिर क्या ! इसी बात पर दोनों भाइयों की लड़ाई शुरू ।
“क्यों मैंने नी छोड़े क्या दो दिन लगातार “ मैं नहीं जा रहा – राम बोला ।
पिता ने उसे चुप कराते हुये बोला अरे बेटा तू बड़ा है यहीं तो जाना है छोड़ दे फिर दोपहर तप जायेगी । गाय भूखे मर जायेगी अन्दर । श्याम तब तक बैलों को खेतों मे ले आयेगा आज मौसम अच्छा है ।
राम ने मुँह बनाया और उठकर रसोई मे घुस गया जहॉ उसकी माँ मठ्ठा बना रही थी । राम मुँह सिकोड़ कर बोला
“आमा जी , मैं नहीं जा रहा ….”
मॉ ने दुलारा और बोला कि
“बेटा चला जा , देख तेरे लिये मे ताज़ा मक्खन भी रखूँगी फिर “
बस राम यही तो चाहता था की उसको कुछ काम के बदले कुछ खास मिले ।वह भागा गोशाला की ओर , किवाड़ों को खोला और फिर 3-4 गाय 3-4 बछड़े , 2-4 जवान बैल जो अभी हल चलाने को तैयार नहीं थे । ऐक बैल की जोड़ी उसने नहीं खोली जो आज खेतों की जुताई करने वाली थी । श्याम और उसके पिता भी पहुँचे और दोनों बैलों को खोला खेतों की ओर ।
पिता बोले
“जल्दी जा बेटा और वापस आजा जल्दी , देखो लोगों ने तो दो दो बार खेतों की जुताई कर भी ली “
आज मौसम अच्छा था , स्वच्छ नीला गगन ऐवम पहाड़ों की चोटियों मे बर्फ़बारी पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी ऐकदम स्वर्णिम ! बेहद खुबसूरत दृश्य !
गॉव के सभी लोगों ने सुबह सुबह अपने बैलों की जोड़ियाँ खेतों मे पहुँचा दी थी और लाल , काले , सफ़ेद मज़बूत कन्धों वाले बैलों ने ऐक अलग समा बॉध दिया था ।
उधर राम अपने डंगर (पशु) लेकर चल पड़ा उनको जंगल की ओर छोड़ने । 7 बजे का वक़्त हो गया होगा , राम वापस आ गया आज वो पशुओं को ज़्यादा दूर नहीं छोड़कर गया बल्की नज़दीक ही छोड़कर भाग आया था । पशुओं को उनको रास्ते याद थे वो रोज़ एक ही रास्ते से जाते और शाम तक स्वयं ही वापस भी आ जाते थे बस कभी कभार नहीं आते थे तो उनको लेने भी जाना पड़ता था । फिर कई बार वो जल्दी भी वापस आ जाते थे और फिर दूसरों की फ़सलो को नुक़सान भी पहुँचाते थे , इसका भी ध्यान रखना पड़ता था । कई बार पशुओं के नुक़सान की बजे से लड़ाइयाँ तक हो जाती थी ।राम भागा भागा वापस आया , श्याम और उसके पिता ने तब तक बैलों को जोत के लिये तैयार कर रखा था । जैसे ही राम पहुँचा मॉ ने आवाज़ लगाई
“आजा बेटा ! पहले रोटी खा ले ठण्डी हो गयी फिर चले जाना “
श्याम और उसके पिता खा चुके थे । राम भागकर जल्दी से वापस आया क्योंकि उसे अपनी रिश्वत मक्खन का भी इंतज़ार था । वो रसोई मे घुसा मॉ ने कटोरी मे उसके लिये ताज़ा मक्खन रखा था और मक्का की रोटी बनी थी । ऐक दूध का गिलास और मक्खन लगी मक्के की रोटी ! वाह !
राम ख़ुश था उसे लगा की सिर्फ़ उसकी ख़ातिरदारी हो रही है लेकिन मॉ तो मॉ है , उसने श्याम के लिये भी उतना ही मक्खन रखा था लेकिन श्याम को बोला था कि वो राम को ना बताये वरना राम रूठ जायेगा ।जल्दी से खाना खा कर फिर राम भी खेतों की ओर भाग गया । पिता ने ऐक खेत मे हल चला दिया था अब खरपतवार वग़ैरह के लिये वह जोल लगवाने के लिये तैयार थे । जोड़ लकड़ी का बना (सरावन /सरण जुते हुए खेत की मिट्टी बराबर करने का पाटा) ऐक यंत्र है जिसमे ऐक पकड़ने के लिये हैण्डल रहता है जो बीचों बीच रहता है । राम और श्याम दोनों बेहद ख़ुश थे की उनको मौक़ा मिलेगा बैठने का , जोल के ऊपर । यह किसी झूले झूलने से कम नहीं था ! हीरा और मोती बैलों की वो जोड़ी और जोल को खींचते हुये आगे बड़ते जाते , उस पर पिता ने अचानक उनको रोक दिया और बोले
“आ जाओ जल्दी ! बैठो “
राम व श्याम भागे और ऐक बॉयी ओर और ऐक दिया ओर । दोनों ने बैलों की पूँछ पकड़ी ओर बैल दनादन आगे बड़ते चले गये । राम और श्याम दोनों ख़ुशी से चिल्ला रहे थे , दोनों ज़ोर ज़ोर से हँस रहे थे और जब तक पूरा खेत समतल नंही हुआ दोनों ने ख़ूब मज़े किये । 8:30 बज गये थे , धूप लग चुकी थी और मॉ ने आवाज़ लगायी ।
“ओऐ ! आ जाओ अब , स्कूल के लिये देर हो जायेगी , पानी गरम कर रखा है नहा लो “
राम भागकर आया , नहाने चला गया । बहुत ख़ुश था क्योंकि आज उसने ख़ूब मस्ती की । 9:00 बज गयी , स्कूल की पहली घण्टी बज गयी । दोनों जल्दी से तैयार हो गये ताकि दूसरी घण्टी 9:30 से पहले स्कूल पहुँच जाये ।
कुछ ऐसा था वो पहाड़ों का बचपन , मैंने भी जिया है !जहॉ खिलौने रोबोट नहीं हमारे जीवन से जुड़े पहलू थे । खेतों की हरियाली और मिट्टी की सुगन्ध । जीवन मे सच्चाई , निर्मलता और बचपन का भोलापन सब बेहद हृदय स्पर्शी है । आज भी कभी ऑंखें बन्द करता हूँ तो याद आती है कि कैसे जीवन ज़्यादा सरल ऐवम खुबसूरत था जहॉ सॉसो को शुद्ध हवा , पीने को स्वच्छ जल मुफ़्त मे मिलता था । आज तो हवा भी पैसों से प्यूरीफाई कर रहे है , आरों से पानी ताकि जीवन का क्रम कुछ ज़्यादा दिनों तक बना रहे ! समय का चक्र है और यादों का सहारा , जो लिये जा रहा है ।
वो घाटी का बचपन और वो घाटी के वासी , दोनों मेरे हृदय के सबसे क़रीब पहलू है ।