मेरा नाम धारा है और ये मेरी कहानी है ।मैं ऐक मध्यम परिवार की लड़की हूँ । मेरा घर छोटे से शहर देहरादून मे है ।मेरे पिता बैंक मे नौकरी करते है और मॉ गृहिणी है । मेरा ऐक छोटा भाई है ।बचपन से परिवार मे लाड़ली रही हूँ । मेरे चचेरे भाईयों की भी मैं इकलौती बहन हूँ । पिता की ट्रान्सफर की वजह से बचपन से ही नयी नयी जगहों पर जाने का मौक़ा मिला । स्कूल के दिनों मे मैं पडाई मे उतनी इण्टेलीजेन्ट नही थी लेकिन मेरा छोटा भाई सोनू बहुत इण्टेलीजेण्ट था । वह हमेशा 90+ स्कोर करता था लेकिन मेरे मार्क्स 70 के आस पास ही अटक जाते थे । मुझे ऐक बार मे समझ ही नही आता था , चार चार बार पड़ती थी तब जाकर कहीं समझ आता था । 12th के बाद bio नही लेना चाहती थी लेकिन पिता का सपना था मे डाक्टर बनू और बेटा इंजीनीयर । हर भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार का बस यही सपना होता है । ख़ैर उनकी आरजूओ के सामने खुद को असहाय पाया और कोचिगं ज्वाइन कर ली । लेकिन फ़ीजिक्स और कैमिस्ट्री सर के ऊपर जाती थी लेकिन मैं फ़ेल होने से इतना डरती थी कि मेरे मन मे ये ख़्याल आते थे कि कही मेरे और सोनू के बीच कोई तुलना ना करे । मैं मॉ बाप को ये बोलते नही सुनना चाहती थी कि उनकी बेटी नालायक है । मैने बहुत मेहनत की और रिज़ल्ट मेरे मुताबिक़ आया । मेरा चयन दिल्ली के ऐक मेडिकल कॉलेज मे हो गया । कॉलेज ज्वाइन करने के बाद भी मुझे दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा । कॉलेज मे भी मुझे समझ नही आता था , घर मे नही बोल सकती थी , कुछ बच्चे शुरूवात के ही दिनों मे कॉलेज छोड़ कर जा चुके थे ।फ़र्स्ट ट्रम ऐग्जाम हुये तो ऐनाटॉमी मे 50 मे से मात्र 2 मार्क्स आये तो घर आकर बहुत रोयी । घर पर नही बता सकती थी कि मुझे समझ नही आता है , डर लगता था कही पापा ये न कहे कि मैं नालायक हूँ , कहीं उनके सपने न टूट जाये , कही उनका दिल न दुखे । या फिर ये न कहे कि तेरा भाई इतना इण्टेलीजेन्ट है और तू कॉलेज छोड़ के आ गयी ।मैने और मेहनत करना शुरू किया , सब कुछ छोड़ के मैने बस पडाई मे ध्यान लगाया । मैं देखने मे ठीक ठाक हूँ तो मुझे हमेशा से अंटेन्शन मिलता रहता था । स्कूल के दिनों से ही मेरे चाहने वालों की लम्बी लाइन थी लेकिन मैने कभी इस चीज़ को सीरीयसली नही लिया । कभी कभी ये देखकर खुश भी होती थी आख़िर मुझे भी सजना ,संवरना अच्छा लगता था , मैं भी लड़की हूँ हर लड़की की तरह मेरे भी सपने थे किसी राजकुमार के । लेकिन मेडिकल की पडाई का बोझ इतना हावी हो गया कि मैं बस किताबो मे ही गुम हो गयी । इनको ही अपनी आशिक़ी बना डाली और कॉलेज मे कौन मुझे देख रहा है इस बात का कभी अहसास तक नही किया बस पडाई की ,मेहनत की । फ़र्स्ट ईयर के ऐग्जाम तक आने तक इतनी पडाई की ,कि मुझे ये भी याद हो गया कि कौन सा शब्द किस पेज पर है ।मेहनत करने से , लगातार प्रयास करने से परिणाम कितने अलग आते है उसका एहसास तब हुआ जब रिज़ल्ट आया । जिस ऐनाटॉमी मे मात्र 2 मार्क्स आये उसमे 84% आये जो पूरी यूनिवर्सिटी मे सबसे ज़्यादा थे। मैं खुश थी और मेरा स्कोर भी अच्छा था । मैं क्लास की चुनिन्दा उन लड़कियों शामिल थी जो अच्छी लड़कियों मे गिनी जाती थी । मैने अपनी कुछ हॉबीज भी डिवलेप की जैसे मैने ख़ाली समय मे ब्लाग लिखना शुरू किया । मैने स्केटिंग करना शुरू किया और गिटार सिखना भी शुरू किया । मैने बिना किसी कोचिंग से काफ़ी अच्छे स्कैचिगं सीख ली और थोडा बहुत गिटार बजाना भी सीख लिया । अब मेरे सपनों की ये छोटी सी दुनिया थी जहॉ मेरे सपनों का राजकुमार बहुत पीछे छूट गया । मैं अपनी पडाई और हॉबीज मे इतना रम गयी की पता ही मही चला की समय कैसे व्यतीत होता चला गया ।फिर धीरे धीरे मेरा रुझान और बढ़ गया पडाई को लेकर ।पॉच साल कैसे बीत गये पता ही नही चला । डिग्री पूरी हुई तो मेरी रैंक पूरी यूनीवर्सीटी मे चौथी थी । ऐक साधारण से दिमाग़ वाली लड़की अब बिल्कुल बदल गयी थी । मेरे माता पिता को मेरी उपलब्धि पर गर्व था । मैं कालेज के बाद आगे की पडाई जारी रखना चाहती थी लेकिन इसी बीच मेरे दूर के रिश्तेदार ने ऐक लड़के का रिश्ता भेजा । लड़के का नाम राहुल था वह आई० आई० टी से इंजीनीयर और आई० आई० ऐम अहमदाबाद से ऐम०बी०ऐ० था । घर मे बात पहुँची तो इतना बड़ा रिश्ता होने की वजह से ऐक मध्यम वर्गीय परिवार कभी नही गवाऐंगा और ऊपर से उसकी अच्छी नौकरी भी थी , अच्छा ख़ासा कमाने वाला था । पिता ने मुझसे जाने वग़ैर हॉ कर दी । मेरे ऊपर दबाब बनाया गया कि इतना बड़ा ख़ानदान है , लड़का इतना कमाता है और ऐसा रिश्ता कभी नही मिलेगा वग़ैरह वग़ैरह ।
ऐक बार फिर मेरे सामने माता पिता के सपने आ गये । वो इतने खुश थे कि मुझे हॉ करनी पड़ी । सुकून की बात ये थी कि राहुल बहुत हैण्डसम लड़का था । मेरे सपने जो बचपन के राजकुमार के कहीं खो से गये थे मैं उनको राहुल मे तलाशने की उम्मीद करने लगी । ख़ैर मैने सपने बुनना शुरू कर दिया । मैं खुश थी क्योंकि सब लोग बोलते थे की राहुल और धारा की जोड़ी दुनिया की बेस्ट जोड़ी होगी ।
(धारा की ऐक स्कैचिंग जो 2014 मे बनायी )
ख़ुशी ख़ुशी 2014 मे हमारी शादी हो गयी । मैं बहुत खुश थी । पापा ने हमे कुछ पैसे भी दिये थे ताकि मुझे कभी कोई दिक़्क़त महसूस ना हो । मैं देहरादून मे ही थी , राहुल इंदौर मे था । शादी के कुछ दिनों बाद मैं राहुल के साथ इंदौर चली गयी । बस कुछ ही दिन हुये थे राहुल छोटी छोटी बातों पर डाँटना शुरू कर देता था । हर पती पत्नी मे लड़ाईयॉ होती है लेकिन हम छोटी छोटी बातो को लेकर ही लड़ने लग जाते थे ।2-3 महीने ऐसे ही चलता रहा , मैं राहुल को बदलते व्यवहार को समझ नही पा रही थी । फिर उसने मुझे सास ससुर के पास देहरादून छोड़ दिया । मैं नौकरी करना चाहती थी लेकिन राहुल नही चाहता था की मैं नौकरी करूँ । ख़ैर मैं सास ससुर के पास रही और मुझे तो खाना बनाना भी नही आता था , धीरे धीरे सब काम सीखा और उनकी सेवा की ।मैं चुप रहती थी और सोचती अगर राहुल मुझसे दूर रहकर खुश है तो ऐसा ही सही । 2-3 महीने हो गये लेकिन राहुल ने कोई सुध नही ली लेकिन जब घर वालों का प्रेशर पड़ा तो राहुल मुझे लेने आ गया । मुझे लगा की अब राहुल थोडा सा बदल गया होगा । लेकिन वह शायद खुश नही दिख रहा था । हमने ज़्यादा बातचीत नही की और इंदौर आ गये लेकिन फिर वही सब शुरू हो गया । वह छोटी छोटी बातो मे मुझे डिमोरिलाइज कर देता था । फिर वही हुआ उसने मुझे फिर देहरादून छोड़ दिया । मैं अंदर से टूट गयी थी , मैं घर वालों को नही बताया मैं नही चाहती थी की उनको कोई टेनंशन हो जाये । मैने अपने लिये जॉब तलाशना शुरू कर दिया । इसी बीच राहुल गुड़गाँव शिफ़्ट हो गया । मैने भी अपने लिये गुड़गाँव मे नौकरी ढूँढ ली और राहुल से पूछा कि मुझे आना चाहिये ?
उसने मना किया लेकिन मैं फिर भी गयी लेकिन उसने क्या किया कि वह गुड़गाँव से शिफ़्ट होकर अपनी चचेरी बहन के यहॉ दिल्ली मे विश्वविघालय शिफ़्ट हो गया ।दिसम्बर का महीना था मुझे भी दीदी के यहॉ आना पड़ा । मुझे ठण्ड बहुत लगती है और मैने जब आफिस जाना शुरू किया तो सुबह पॉच बजे उठकर तैयार होना पड़ता था । दिसम्बर मे दिल्ली की सर्दी मे सुबह पॉच बजे उठकर निकलना और रात को साढ़े नौ बजे घर पहुँचना । ये शब्दों मे ब्यॉ नही किया जा सकता। राहुल का मेरे साथ तो रिश्ता बदतर हो गया था अब वह रात भर कज़िन बातें करते रहते और मैं ठीक से सो भी नही पाती । वह जानबूझकर ऐसा करने लग गया ताकी मैं वापस चली जाऊँ , मैने छ: महीने तक ऐसी ही परिस्थितियों मे काम किया फिर मेरी जॉब छुड़वा दी । बाद मे मैने राहुल से पूछा कि मुझे ऐक डिप्लोमा करना है लेकिन राहुल ने साफ़ मना कर दिया ।यहॉ तक की उसने मेरी पडाई और स्टडीज़ , मेरे परिवार के बारे मे भी भला बुरा कहा । मैने अपना सामान उठाया , मैं पॉच बजे निकली थी , राहुल ने ऐक बार भी कॉल नही की ना कोई मैसेज किया ।मैं रात के 9 बजे तक इंतज़ार किया मुझे लगा कि शायद लेने आ जायेंगे ।लेकिन नही आये तो मैं घर वापस आ गयी ।बाद मे पापा ने मुझे डिप्लोमा करवाया ।चार महीनों तक अलग रही लेकिन राहुल ने कभी कोई कॉन्टैक्ट् नही किया ना उसकी फ़ैमिली ने । बाद मैं मुझे लगा कि मेरी ग़लती है शायद कुछ कमी रह गयी है । मैने सामान पैक किया और उसके पास वापस आ गयी ।मैं नयी उम्मीद के साथ उसका दिल जीतना चाहती थी ।लेकिन उस दिन के बाद राहुल ने मुझे मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना शुरू किया ताकि मैं कुछ ऐसा क़दम उठाऊँ कि वापस चली जाऊँ ।मैं ग़लती करने से भी डरने लग गयी पता नही कौन सी बात पर राहुल ग़ुस्सा कर दे ।अब वह छोटी छोटी बातो को भी अपनी मॉ और बहनों से शेयर करने लग गया और फिर वो मुझे डाँटते थे ।मुझे तो अपनी ग़लती का भी पता नही होता था । मैं जॉब ढूँढ रही थी तो वो साफ़ मना कर देते थे कि यहॉ पैसे कम है, यहॉ टाइमिग् सही नही है वग़ैरह वग़ैरह । अब महीने तक हो जाते थे कि हमारी बात नही होती थी । लेकिन मैं हारकर सॉरी बोल देती थी इतना गिरा (low) महसूस करती थी और आत्मविश्वास तो ग़ायब हो गया था ।मुझे अब खुद पर भी भरोसा नही था , क्योंकि राहुल मुझे कई बार ऐसा महसूस करवाते थे कि मुझे कुछ नही आता और मैं किसी लायक ही नही हूँ ।वह इस तरह से बात करते थे कि शक्ल देखी है अपनी कभी …..। इससे मेरे अन्दर का आत्मविश्वास डगमगा गया ।मेरी जो सैलेरी मिलती थी उसके ऐक ऐक पैसे का राहुल हिसाब मॉगता थे , और अपनी सैलेरी आज तक कभी बताई भी नही ।इतना सब होने के बाद भी मैं घर मे नही बता पायी और राहुल शक करते थे कि कहीं मैने कोई बात अपने घर तो नही बता दी ।
हर दिन ऐसा ही चलता था मैं इतनी डिप्रेशन मे चली गयी की मुझे बुरे ख़्याल आने लग गये । मैं किसी से शेयर नही कर पाती थी । मुझे कई बार आत्महत्या के ख्याल आये । लेकिन खुद को रोक देती थी । ऐक दिन मैं इन सब चीज़ों से इतना परेशान हो गयी कि मैने हाथ काट दिया ।राहुल भागा भागा मुझे हॉस्पिटल ले गया । वह रोने लग गया और उसने कहा की मेरे वगैर कैसे जियेगा , उसने मेरा हाथ थामकर एहसास कराया कि वह मुझसे कितनी मोहब्बत करता है । रात भर प्यार से बात की । अगले दिन घर वापिस आ गये । राहुल का व्यवहार ऐक दम बदला हुआ था । उसने मुझे इतने प्यार से ट्रीट किया कि मुझे लगा कि अब सब ठीक हो जायेगा । फिर चार पॉच दिन बाद उसने कहा कि हम कुछ दिनों के लिये देहरादून चलते है । मैं 5 अगस्त 2017 को उसके साथ देहरादून आ गयी । उसने मुझे अपने घर की बजाय मेरे घर छेड़ा और खुद यह कहकर वापस आ गया कि वह 2-3 दिन मे वापस आ जायेगा । 7 अगस्त को मॉ ने राखी के दिन मेरे हाथो की पट्टीयॉ देख ली लेकिन मैने कहा गेट मे लग गयी ।
लेकिन उनको शक हुआ तो उन्होंने राहुल को कॉल किया , राहुल ने सब बताकर यह कह दिया की अब वापस मत भेजना । उसके मॉ बाप ने भी यही कहा ।
7-8 महीने बाद वह डिवोर्स पेपर के साथ आया । पापा ने उससे कारण जानना चाहा तो उसने मेरे चरित्र को लेकर सवाल उठाये वग़ैरह वग़ैरह ।मेरे पिता ने क़ानूनी कार्यवाही करनी चाही लेकिन मैने मना तर दिया ।मैं सिर्फ़ ऐक जोड़ी कपड़े के साथ वापस आयी । मैं अन्दर से इतना टूट गयी की मुझे कोई उम्मीद नज़र नही आती । आज मेरी उम्र 30 साल है और 5 अगस्त को हमे अलग हुये ऐक साल हो गया है । मैने इस ऐक साल मे अपनी आत्मग्लानि को महसूस किया कि मैं सब कुछ भूल कर ऐक कायरतापूर्ण क़दम उठा रही थी वो भी उस आदमी के लिये जो मुझे डिजर्व ही नही करता ।
मैने ऐक क्लीनिक मे काम करना शुरू किया और पडाई फिर से जारी करनी शुरू कर दी । मैने अपने आप को हील किया और मज़बूत बनाने का प्रयास किया ताकि मैं लड़ सकू अपनी बूरी यादों से ।
मैं ये कहानी इसलिये शेयर कर रही हूँ कि जब मैं इतना पड़ लिखकर इस दौर से गुजर चुकी हूँ तो सोचिये भारत मे रहने वाली उन दूरदराज़ की महिलाओं के साथ क्या क्या नही होता होगा ।मैं वापस अपनी दुनिया मे लौट गयी कितनी धारा ऐसी होगी जो कभी उबर नही पाती होगी !
यही सब बातें ज़ेहन मे बार बार मुझे झकझोर देती है । मैंने अभी ऐक दो गॉवर्नमेंट के ऐग्जाम निकाले है इंतज़ार कर रही हूँ कि इण्टरव्यू भी अच्छा हो जाये । शायद किसी की दुआ काम आ जाये और राहुल का फ़ैसला बाद मे डिसाइड करूँगी ।