वो बचपन पहाड़ों का
बाघों की दहाड़ो का
वो बारिश मे काग़ज़ की नावों का
मिट्टी लगाये हर घावों का
वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की
गॉव मे हर जर्जर माले की
याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है ?
जो हर ऑगन सूना सूना है ।
वो लकड़ी के बण्डल , घासों की जोटी
वो छाछ नूण , मक्के की रोटी
बकरी के मेमने की उछल कूद
वो ककड़ी के बेलें , कद्दू के फूल
ऊन कातती चरखों की सॉचे
बॉस की टोकरीयॉ , रस्सी के फॉके
वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की
गॉव मे हर जर्जर माले की
याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है ?
जो हर ऑगन सूना सूना है !!
वो झबरू कुत्ते काले काले
खेतो खलिहानों के रखवाले
वो बैलों की जोड़ी अब
खेत नही जोतती है
और गौशालायें मेरी
बस गायें ही खोजती है
वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की
याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है !
जो हर ऑगन सूना सूना है ।
मशाले जलती थी
तो अंधेरा कम था
बिजली तो आ गयी
बस उजाला कम था ।
मकई , बाजरा , मण्डुआ , चौलाई
कुछ भी देता ना दिखाई
दूध , दही ना , घृत -माखन मेवा
ना पनघट की घाघर सेवा
हर घर है बस ख़ाली ख़ाली
सब तो है बस शहर निवासी ।
वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की
याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है
जो हर ऑगन सूना सूना है !!!!!