“छोटा सा सपना “
वो आकाश उड़ता जहाज़
और तुम्हारा पायलट बनने का सपना
बडे होकर फ़िज़िक्स की उन थ्योरिज
और ज़िन्दगी की कॉम्पलीकेटेड उलझनों मे
कहीं खो सा गया और तुम आगे निकल गये ।
होश आने पर जब सिस्टम समझ आया
तो मन चंचल , कोमल हृदय को बरगलाता गया
कि ज़िन्दगी की रफ्तार तो बस
कलेक्ट्री के काले चमचमाते कोट मे ठहरती है
जहॉ वो सब है जिसकी तुम्हारी ऑत्मा को
तुम्हारे शरीर से ज़्यादा तलाश है ….।
समय बीतता गया , उम्र बड़ती गयी
हाथ मे अब बन्दूक़ की जगह थर्मामीटर
मार्क्सवाद की जगह गॉधीवाद
पेन्टिग्स की जगह संगीत और
साहित्य की जगह इंजीनियरिंग
ऐसे थमा दी गयी और बताया गया
E-mc2 का असल ज़िन्दगी में कोई सरोकार नहीं ।
फिर उम्र के साथ साथ समझ भी बड़ती गयी
की ज़िन्दा रहने के लिये
वो पायलट , वो काले कोट या वो पेन्टिगंस
ज़्यादा ज़रूरी नहीं है क्योंकि
तुम्हारी शिक्षा तुम्हारी ज़रूरतों के हिसाब से है ।
तुम्हारे सपने अब तुम्हारी वरीयताएँ नहीं है ।
क्योंकि तुम्हारे कंधों की चौड़ाई
अब तुम्हारे पिता के बराबर है ।।
समय बीतता गया , और उम्र बड़ते गयी
किताबों की जगह अब ज़िन्दगी सिखाती गयी
कितनी अजीब सी बात है ना ,
हाथ की 20 हज़ार की घड़ी उतनाअच्छा समय नहीं बता पाती ,
जितना वो 20 रूपये वाली घड़ी स्कूल की घण्टी का बताती थी
कितनी तृष्णा थी बड़ा होने की ,
आज पता चला कि छोटा होना हमेशा से बेहतरीन था !
ये शान और शौक़त की पॉलिश
जितनी चमकदार बाहर से है
उतनी ही फीकी भीतर से है ।
अगर तुम बदल सकोगे तो ख़ुद को ज़रूर बदलना
क्योंकि तुम्हारे बाद भी कोई ना कोई
आकाश में उड़ता जहाज़ देखता होगा ।
फीजिक्स ना सही , कैमेस्ट्री पढ़ता होगा ।
वो कोई तो भगतसिंह होगा
कोई तो बारूद होगा
कोई तो फिर लौ होगी
और कोई तो इंक़लाब होगा ।
सपने देखना तो किताबें सिखा देगी
और बाकि सब ज़िन्दगी सिखा देगी ।