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भक्ति,प्रेम और मंदिर

Whole life Budhha said there is no God , when he died people made him God

तो शुरू इस प्रकार करता हूँ ! मेरे गॉव मे मंदिर निर्माण के लिये चंदा इकट्ठा किया जा रहा है । पिछली दफ़ा भी किया गया जिसमें शायद इक्कीस लाख रूपये ऐकत्रित हुऐ । ऐक समीती का निर्माण हुआ और पुराने मंदिर को तोड़ दिया गया । तोड़ने से पहले शायद ऐसेटीमेट नहीं बनाया गया कि नये मंदिर की लागत कितनी होगी । ना शायद कोई ऐक्शन प्लान बनाया गया । फिर कार्य प्रारम्भ हुआ और कार्य चल पड़ा लेकिन इक्कीस लाख खर्च हो गये और मंदिर की चारदीवारी भी नहीं बन पायी । कुछ लोगों का आरोप है कि पैसों का दुरूपयोग हुआ और फिर पुरानी समीती को भंग कर दिया गया और फिर नयी समीती का गठन हो गया । अब फिर से चंदा उगाही का कार्य किया जा रहा है क्योंकि निर्माण अधूरा है लेकिन अभी भी कोई ऐसेटीमेटेड वेल्यू नहीं प्लान की गई कि कितना खर्च और आयेगा ना कोई ऐक्शन प्लान है । मैं इस बात पर नहीं जाता हूँ क्योंकि यह मेरा विषय नहीं है । मेरा विषय तो आस्था है जो की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर निर्भर करती है । मैं किसी भी व्यक्ति को नहीं कहता हूँ कि वह पूजा करें या भक्ति करे क्योंकि यह उसका बेहद ही व्यक्तिगत विषय है जिसका मैं सम्मान करता हूँ । मैं अपने विचारों को यहॉ लिख रहा हूँ जो सदियों तक यहॉ रहेंगे । मेरे आने वाली पीढ़ी इस बात की गवाही देगी की मैंने कभी भी बुलन्द आवाज़ को चापलूसी के दामन में नहीं लिपटने दिया और जिज्ञासा भरे हृदय में विद्रोह की सारी संभावनाओं की हमेशा जिन्दा रखा ।

स्कूल के दिनों में कबीर को पढ़ा तो कबीर से मोहब्बत हो गई , ऐसा समझता था कि यह व्यक्ति कितना यथार्थवादी है , उनकी कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ

“कॉकर पाथर जौरी के, मस्जिद लिये बनाय

ता चडी मुल्ला बॉक दे , क्या बहरा हुआ खुदाय

पाहन पूजे हरी मिले , तो मैं पूजूँ पहाड़

ताँते ये चाकि भली , पीस खाय संसार”

यह सबने पढ़ा होगा लेकिन प्रभु , मैं इस बात से आश्चर्यचकित हूँ और प्रश्नों के भंवरलाल में डूबा हुआ हूँ कि कैसे समाज पढ़ लिख कर भी आवाज़ नहीं उठा सकता और दोहरे चरित्र में डूबा रहता है जहॉ ऐक और आडम्बर और रूढ़िवादीता का समर्थन और दूसरी और विकासशील प्रगतिशील सोच का समर्थन और मैं इस बात से भी वाक़िफ़ हूँ कि यदि मैंने इनकी धारा के विपरीत चलने का प्रयत्न किया तो मुझे “लाल सलाम” या “सेल्फ़ सेन्टर्ड” जैसे शब्दों से नवाज़ा जायेगा और यदि मैं ज़्यादा कुछ कहूँ तो मुझे हो सकता है कि “मानसिक विकलांगता” की उपाधि तक दी जायेगी लेकिन प्रभु ! मैं आवरण के मुखौटों में नहीं जीना चाहता हूँ और अपनी भावनाओं को कतरा कतरा महसूस करना चाहता हूँ तब तक , जब तक मैं स्वयं को जिन्दा महसूस कर सकू । मैं प्रेम को जीना चाहता हूँ , भक्ति को महसूस करना चाहता हूँ, मैं तो भटका हुआ ऐक जिज्ञासु हूँ बस लीन होकर यूँ ही कहीं खोना चाहता हूँ , लेकिन उससे पहले ऐक संवाद स्थापित करना चाहता हूँ ।

प्रभु मेरे प्रश्न है कि आज लाख लोग इस बात से नहीं प्रेम करते कि वास्तव में उनके हृदय में भक्ति या प्रेम है बल्कि इस बात से करते हैं कि उनमें भय है । मैंने भगवत गीता पढ़ी है जिसमें आपने लिखा है कि “अभयंसत्वसशुद्दि” जिसका मतलब है कि भय से दूर रहो । यदि प्रेम होता तो वह सर्वप्रथम अपने सबसे करीबी लोगों को धोखा नहीं देते । चाहे मित्र हो या परिवार सब निश्छल प्रेम के लायक़ है । प्रेम और भक्ति का खोखलापन अगर बिसरा पड़ा है खोलों में आपकी चरणबन्दना है तो प्रेम और भक्ति की गहराई समझना बेहद मुश्किल है । प्रभु ! आप तो सर्वश्रेष्ठ है , सर्वव्यापी है और आप स्वयं कहते हैं कि प्रेम तो समरस है , सरल है ,अटूट है और अविभाजित है ।

Be free from fear ………Bhagwat Geeta

प्रभु ! ग़रीबी में पला बड़ा हूँ , 2006-07 की डायरी उठाता हूँ तो ऐसा कोई सा दिन नहीं होगा जिस दिन आपसे संवाद स्थापित नहीं किया है । अब जिज्ञासु हूँ , सवाल उठाना मेरा कर्म है । मैं उस बात को मानता हूँ जिस बात को महसूस कर सकता हूँ और जी सकता हूँ । प्रभु ! मेरा प्रश्न है कि मेरा बडा सा परिवार है जिसमें सभी परिवार के सदस्यों ने तरक़्क़ी की है । आज मेरे 3 चाचा देश की फ़ौज में है , ऐक चाचा FCI में है , मेरा भाई इंजीनीयर है लेकिन हमारे परिवार की तीसरी पीढ़ी के बच्चे ऐक दूसरे को नहीं जानते है यह बिड्मबना है क्योंकि आपके नाम पर ढोंग ढकोसलों और भय से उत्पन्न कारोबार करने वाले आपके पण्डे पुजारियों ने ये कहा है कि हम लोग ऐक दूसरे से बात नहीं कर सकते हैं और न ही छू सकते है , घर जा सकते हैं । प्रभु क्या यह प्रेम है ? मैं ये नहीं कहता कि मैंने विज्ञान ज्यादा पढ़ ली है , मैं ये भी नहीं कहता कि मैंने ज़्यादा पढ़ाई कर ली । यह मैंने जीया है और मेरा हक़ है कि मैं आपके अस्तित्व पर सवाल उठाऊँ क्योंकि मैं भी तो आपका बालक हूँ ! क्या यह उचित है कि ऐक ही परिवार के सदस्य बिखर जाये और उनके आने वाली पीढ़ी ऐक दूसरो को पहचानें तक नहीं । यदि यह भक्ति है और यह ईश्वर है तो मैं आडम्बर के सभी स्त्रोतों का खण्डन करता हूँ ।

प्रश्न करना नास्तिकता नहीं है , जिज्ञासा मानसिक विकलांगता नहीं है , यह यथार्थ को स्वीकारना है । मैं इस छोटे से जीवन को आडम्बर में नहीं जीना चाहता ना मुझे किसी की किसी बात से फ़र्क़ पड़ता है कि कौन मेरे बारे में क्या राय रखता है । मैं गौतम बुद्ध के जीवन से बेहद प्रभावित हूँ । ज्ञान कि प्राप्ति के बाद ताउम्र उन्होंने यह बताया कि ईश्वर नहीं है और उनके मरने के बाद उनको ही ईश्वर बना दिया गया । भगवद्गीता में कृष्ण स्वयं कहते हैं कि “मैं सर्वव्यापी हूँ , कण कण में समाया हूँ” तो दिखावे की आवश्यकता क्यों ? मैंने बहुत से लोग देखे हैं जो श्रद्धा सबूरी सबका मालिक एक कहने वाले फ़क़ीर साईं बाबा को भगवान मानते हैं लेकिन जिस व्यक्ति ने जीवन भर चप्पल तक नहीं पहनी आज उनका ताज ही हीरो से जड़ा है , क्या ज़रूरत पड़ गयी , उन्होंने तो जीवन भर सम्पत्ति अर्जित नहीं की ।

प्रभु ! मुझे नहीं पता कि बीते समय में क्या हुआ और कैसे हुआ । लेकिन आज से चालिस साल पूर्व दिवाली के दिन मेरे ही परिवार के दादा जी की मेरे ही गॉव के ही कुछ ब्राह्मणों और अन्य परिवार के राजपूतों द्वारा हत्या कर दी गयी । उसके बाद राजपूतों और ब्राह्मणों में रंजिश स्थापित हो गई । क़ानूनी कार्यवाही हुई और साथ में देवताओं के फ़ैसले भी लिये गये । फ़ैसलों में यह तय हुआ की राजपूत और ब्राह्मण के आपस में छूत लग गई और जो राजपूत परिवार हत्या में शामिल था उस परिवार पर भी छूत लग गई जिससे राजपूत अब ब्राह्मणों के घर नहीं जाते है ना खाते है ना उठते बैठते है और वह राजपूत परिवार भी समस्त राजपूत परिवार से अलग थलग है । अब चालिस साल से ज़्यादा वक्त हो गया गॉव मे तब से दिवाली नही होती है ना उसके बाद की पीढ़ी ऐक दूसरो को जानती है । हमारी पीढ़ी की क्या गलती है और किस बात की सजा उनको दी जा रही है । कुछ लोगों की गलती से पूरी पीढीयो को सजा दी गई और अभी तक दी जा रही है लेकिन भय इतना है कि कोई इस बारे में आवाज़ नहीं उठाता क्योंकि यही वो भय है प्रभु ! जिसकी मैं बात कर रहा हूँ । ये आडम्बरी , प्रेम नहीं करते है बल्कि भय से ग्रसित हैं । अगर न्याय की ये ही व्याख्या है प्रभु ! तो मेरा सवाल लाज़मी है । आपका भव्य मंदिर बने लेकिन पहले ढोंग ढकोसलों से ग्रसित सोच से नहीं बल्कि उस आधार पर जहॉ समरसतावादी हो जहॉ वास्तविक प्रेम हो ।

प्रभु ! मैं जानता हूँ कि मैं धारा के विपरीत आवाज़ उठाकर अपने लिये बुराई अर्जित कर रहा हूँ लेकिन मैं चाहता हूँ कि जब तक जीऊँ तब तक बुलन्द सोच और आवाज़ के साथ जीऊँ और इस बात पर नहीं की मुझे समाज में दिखावे के लिये चापलूसी करनी है या कोई ढोंग करना है । जिस मंदिर की नींव में प्रेम ही नही , भक्ति ही नहीं और ईमानदारी ही नहीं वहॉ देवता निवास कैसे कर सकते है ।प्रभु ! आप सर्वश्रेष्ठ है , सर्वव्यापी है सबके हृदय को रक्त से लेकर मानसिक स्तर तक जानते है तो इतनी व्यापक व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है ।

मैं यह इसलिये लिख रहा हूँ ताकि सनद रहे और भक्ति के वास्तविक स्वरूप को समझा जाये । आज ईश्वर के नाम पर लोग ठगी करते है , भय के नाम पर व्यापार करते है और राजनीती करते है । मंदिर तो बन जायेगा लेकिन प्रेम नहीं बना पाओगे , भक्ति नहीं ला पाओगे और ईश्वर भी नहीं ला पाओगे । आज स्वतंत्र रूप से ऐक विषाणु जो सबसे छोटी कोशिकाओं से भी छोटा है , वह सम्पूर्ण विश्व के परिदृश्य को बदल देता है । मैं ये नहीं कहता आप अपनी आस्थाओं को बदलिये बल्कि ये कहता हूँ जिस चीज़ से आपको सुकून मिलता है वह करिये । जिस चीज़ से आप ऐक बेहतर इंसान बनते हैं आप वह करिये यदि यह मंदिर है को दिल से भक्ति में लीन रहिये । बस आप ऐक आडम्बर रहित व्यक्ति बनिये जिसमें इतना तो सामर्थ्य हो की वह दोहरे चरित्र में न जीये चाहे वह स्वयं के लिये हो या परिवार के लिये या समाज के लिये या मित्रता के लिये हो ।

ऐसा नहीं है मुझमें सामर्थ्य नहीं है जिस दिन मन होगा सब कुछ न्योछावर कर सकता हूँ लेकिन तब तक कुछ सवालों के जबाब नहीं मिल जाते तब तक जिज्ञासु बनना ही बेहतर है । क्योंकि यह जानना दिलचस्प है कि

“ख़ुदा भी बेबस है , अमीरी की हिरासत में

उसके प्यादे ख़िलाफ़त में है

अपनों की इस अदालत में

सजा ऐ मौत दी , मगर संभाले रखा

निभाना किसी रिश्ते को फिर जाना हमने”

ईश्वर तो पता नहीं है या नहीं लेकिन हमने जो ईश्वर के नाम पर हमने खोया है उसकी भरपाई शायद ही पीढ़ियों तक हो पायेगी चाहे वह परिवार का प्रेम हो या फिर समाज में मेल मिलाप हो । मेरी बुराई कीजिये मुझे आपत्ति नहीं है । बस थोड़ा यथार्थवादी बनिये और प्रेम के वास्तविक स्वरूप को समझिये । यह समरस है , यथार्थ है , सरल है और अटूट है ।

Disclaimer- I do not spread any kind of negativity, this is my personal opinion and I don’t influence anyone to follow my ideology. I don’t restrict anyone to follow theirs as well. Faith is something very personal and I request you that this is individual freedom and let it be , Please. May this universe brings you happiness and strength. 💫💫🌸🌸

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By The Lost Monk

Writer || Poet || Explorer || Photographer || Engineer || Corporate Investigator || Motivator

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