जहॉ भक्ति के प्रेम में मुखौटों का हिजाब है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ आज़ादी का दिखावा है और सोच ही गुलाम है
वहॉ तबियत ख़राब है
इंसानो से ज़्यादा जहॉ मंदिरों से प्यार है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ पण्डे पुजारी या मौलवी आबाद है
वहॉ तबियत ख़राब है
किताबों से ज़्यादा जहॉ धर्म का स्थान है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ लहू के रंग में जहॉ जाति का वास है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ समाज में तरक़्क़ी की व्याख्या निराधार है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ देवता भी अनिष्ठा के लिये ज़िम्मेदार है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ कर्म के स्वरूप का खोखला निर्माण है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ खोखली आवाज़ में बुलन्द इंकलाब है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ प्रगतिशील खोलों में रूढ़िवादी खाल है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ भक्ति रूपी पढ़ा लिखा अंधविश्वास है
वहॉ तबियत ख़राब है
जहॉ भक्ति के भाव में भय का प्रहार है
वहॉ तबियत ख़राब है
समतामय प्रेम हो , निश्चल विश्वास हो
भक्ति का स्वरूप हो या कर्म का स्वरूप हो
हृदय करूणामय हो , भाव नि:स्वार्थ हो
सोच प्रगतिशील हो , प्रयोगात्मक का ज्ञान हो
धर्म सिर्फ़ कर्म हो , प्राथमिकता इंसान हो
अंधविश्वास विनाश हो , साक्षर समाज हो
रूढ़िवादी नष्ट हो , अंधभक्ति नष्ट हो
तबियत सुधार हो , जनकल्याण हो 💫💫💫
PS- Dedicated to those so called educated people who wants to bring the change in society and are afraid to raise their voices against orthodoxies.
Regards
The Lost Monk