तुम साथ दो मैं बुलन्द आवाज़ हूँ
तुम वक़्त दो मैं हसीन ख्वाब हूँ
कह गये जो अनसुनी कहानियाँ
मैं उस चॉदनी रात की ही कोई बात हूँ
रूह से जिस्म हो रहा निलाम हर गली में
वो कह गया साहिब कि “मैं सरकार हूँ”
नोच कर लोथड़े खाने वाले “साहिबज़ादे”
और मैं वो गरीब गिरा हुआ “शिकार हूँ”
वो मुर्दाखोरो की फ़ौज के मसीहा

तू ही शहंशाह, तू ही परवर्दीगार
लेकिन वक़्त की फ़ेहरिस्त समझ
कि मैं हक़ीक़त हूँ , कि मैं इंकलाब हूँ
और मैं बुलन्द आवाज़ हूँ
आज ये सहर है , कल सवेरा होगा
आज का मूक हूँ और कल की आवाज़ हूँ
कि मैं हक़ीक़त हूँ , कि मैं इंकलाब हूँ
और मैं बुलन्द आवाज़ हूँ …..!!!