ना रूक कही तू चलता जा
ना रूक कही तू चलता जा
जैसे सूरज की रौशनी
जैसे कल कल बहता पानी
भड़के तूफ़ानों को घेरा
जैसे वन मे जलती ज्वाला
ना रूक कही तू चलता जा ।
उड़ते पंछी को देख कहीं
जो जी लेता जी भर के आज
कहता फिरता , तू कर लेना जो करना है
जी लिया जी भर के आज ।
ना रूक कही तू चलता जा
ना रूक कही तू चलता जा

कितना सच बिखरा है आज
जो सामने है अनमोल है
मिट्टी तो मिट्टी मे मिलती है
कर्मों का सुख हो या सुन्दरता का आकर्षण
ना रूक कही तू चलता जा
यहॉ आज ही बस है जीवन ।
ना रूक कही तू चलता जा
ना रूक कही तू चलता जा ।