ओ घाटी के वासी ,
यहॉ नदियॉ बहती है , कोयल गाती है
हवाऐं स्वच्छ प्राणवायु लाती है
रंगीन ऑसमा है , रवि की किरणें ऊर्जा देती है
किन्तु ,
यह मानवता कि दुर्बलता है कि वह मजबूर हुआ है ,
समझा ना प्रकृति को उसने व सुख से दूर हुआ है ।
फिर छोड़ दिया नदि नालों को ,
गॉव और तालाबों को
और पहुँच गया फिर शहरों तक ,
खोजता वह भोजन को ।
यहॉ भागदौड़ जीवनशैली को भरपूर जीया उसने ,
पॉचसितारा रौनक मे भी फीकापन महसूस किया उसने ।
मानवता , हमदर्दी को यहॉ सिमटते देखा है ,
मतलब व चालबाजी को यहॉ साथ लिपटते देखा है ।
वाहनों की धूं धूं ने प्राणवायु को विरल किया ,
बिल्डिंग के जालो ने पेड़ो से महरूम किया ।
ना रवि कि किरणे , ना स्वच्छ गगन
कभी विकराल धुंध , कभी धुंऑ धुऑ ।
किन्तु ,
ओ घाटी के वासी ,

यहॉ तो नदियॉ बहती है , कोयल गाती है ,
हवाऐं स्वच्छ प्राणवायु लाती है ,
रंगीन ऑसमा है , रवि की किरऩे ऊर्जा देती है ।
ओ घाटी के वासी ,
यहॉ नदियॉ बहती है ,कोयल गाती है ।