कॉमनवेल्थ आया , टू जी आया
हर दिन आते छोटे वाले
त्रिण त्रिण टूटा कोयला देखा
और सबके देखे हाथ काले
तू कितना अभागा रे ‘भारत’
मिल गई आज़ादी मगर इंक़लाब जारी है
हो संसद पर हमला
हो मुम्बई पर हमला
तू हर दिन कायर बनता है
हालत तेरी आज देखकर
वो हर दिन हमला करता है
सैनिक हर दिन लड़ता है
हक़ दिन जान लुटाता है
तू मौन लिये बैठा है
तू हर दिन कायर बनता है
तू कितना अभागा रे भारत
मिल गई आज़ादी मगर इंक़लाब जारी है ।
त्राहि त्राहि , बिलखी जनता
ढूँढे न्याय , ढूँढे हक़ अपना
आज सिहर गया फिर से
देखकर बर्बाद घर मे
टूटी जैसे हर उम्मीद की किरण
हर राह , हर सफ़र मे
गुमनाम हो रहा , आज फिर तू
तू कितना अभागा रे भारत
मिल गई आज़ादी मगर इंक़लाब जारी है
नयी तरंगों सी , नयी उमंगों सी
आज ऐक आवाज़ देखी
ये इंक़लाब की आवाज़ें है
तू कब तक भागेगा ?
इस कुम्भी निन्द्रा से कब जागेगा ?
आज़ादी की तड़पन से
लहूलूहान जीवन से
संजोये क़तरा क़तरा , बूँद बूँद
वो इंक़लाब आया

वो इंक़लाब आया
तू कितना अभागा रे भारत
मिल गई आज़ादी मगर इंक़लाब जारी है ।