तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ
कभी फूलो की ख़ुशबू बनकर आ
कभी अन्न की मिठास बनकर आ
कभी अंबर में मेघ गर्जना होकर
मेरी ऑखो की बारिश बनकर आ
तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ
मेरे नयनों मे तो प्रेम गुलज़ार है
तू किसी पुष्प का जीवन बनकर आ
ना चाहूँ प्राणों की जुगलबंदी
तू चाहे तो विरह वेदना बन कर आ
अगर तू चाहें उत्कर्ष मेरे जीवन का
तू कोई प्रेरक प्रसंग बन कर के आ
तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ

इस लोभ मैं न जिऊँ जन्म जन्मांतर
तू कोई सहज विचार बन कर के आ
मैं रहूँ परिलक्षित वसुधा से व्योम तक
तू कोई पुलकित स्पर्श बन कर के आ
तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ
तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ