बर्फ़ से ढकी चादरों से सुसज्जित पहाड़
ग्लेशियरों से निकलती स्वच्छ नदियाँ
घनें जंगलों में गूंजती परिंदों की ध्वनियॉ
हरे हरे खेतों में झुकी हुयी धान की बालियॉ
गौशालों में छोटे छोटे बछड़े और मेमने की पुकार
तुम्हे बुला रही है
आ अब लौट चलें
ऐक कुल्हाड़ी और लकड़ियों के बंडल
पीठ पर बंधा घास और पत्तियों का बोझा
भेड़ बकरियों के चरते झुण्ड
पत्थर की स्लेटी छतें और गारे से लीपी दिवारे
घनघोर बादलों से ओझल होता सुरज
तुम्हे बुला रहा है
आ अब लौट चलें
उल्लास त्योहारों का और मृदु बोली
टोपी , बूट और ऊनों की चोली
कड़क ठंड में सुखाया मॉस और मदिरा
काली मडंवे की रोटी और लाल चावल
दूर दूर तक फैले देवदार की ख़ुशबू
विचरते काकढ और घोरल
खेतों में गिराये गये गोबरों के ढाँचें
घरों में भरे गये अनाजों के साँचे
तुम्हे बुला रहे हैं
आ अब लौट चलें

सूने ऑगन , सूने खेत खलियान
भड़कती जंगल की आग और विलाप करती प्रकृति
कहती मातृ भावना तन्हाई में
आ अब लौट चलें
जिन्दा कर दे उन सब गडरियों की उम्मीदें
जिन्होंने जंगल और ज़मीन को पूजा
और जिन्दा रखा हर आने वाली विपदा मे भी
तुम्हें बुला रही है
आ अब लौट चलें ।