“Failures are jewels in life”
छोटी सी जगह से ताल्लुक़ रखना अपने आप में बड़ी बात है । वो पोष की कड़कड़ाती ठंड और अंगीठी में जलते कोयले , साथ में मिट्टी के तेल (कैरोसिन) से जलने वाली चिमनी । अगले दिन स्कूल का इम्तिहान और रात भर पड़ाईं करने का जज़्बा । वो भी क्या दिन थे , ऐसा लगता है कि शायद अस्सी के दशक की बात कर रहा हूँ लेकिन ये आज से चौदह पंद्रह साल पुरानी बात है ।
पिछले दस सालों में दुनिया जितनी तेज़ी से बदली है उतनी पिछले 2000 सालों में नहीं बदली । ख़ैर वापस ले चलते हैं इम्तिहान के दिनों में । क्या आपने कभी मोमबत्ती के उजाले में पढ़ाई की है?
यदि हॉ तो आपको लगेगा आप अतीत की सैर करने लगे हो । ऐक रूपये वाली मोमबत्ती और पॉच रूपये वाली मोमबत्ती । पॉच रूपये वाली जो थोड़ी सी मोटी होती थी । अपनी हिसाब किताब बिठाकर , दो चार कॉपियाँ सजाकर और सामने किताबों का ढेर लगाकर जो इम्तिहान के लिये पढ़ाई का मज़ा था वह शायद ही किसी चीज़ में होगा ।
ये वो दौर था जो आप बाल्यावस्था के उफ़ानों के मध्य में जीते हैं , खुली ऑखो से सपने देखते है और यहॉ सपने बुनना इतना सस्ता होता है कि रगों में दौड़ता खून उन हर सपनों को पूरा करने की उम्मीद करना सिखा देता है । ये इम्तिहान न सिर्फ़ आने वाले कल की उम्मीद जगाते है बल्कि वर्तमान और पूर्व की स्थितियों को परिवर्तित करने की सोच विकसित करता है । अब बात आती है कि इम्तिहान क्या है ?
ये स्कूल की ऐक छोटी सी किताब का इम्तिहान है लेकिन इसके परिदृश्य में मायने व्यापक है । अब यह किताबों से निकलकर सामने आएगा और तुम्हारी उम्र के साथ साथ परिपक्व होकर एक मज़बूत खिलाड़ी की तरह तुम्हें फेल करने के लिये सदैव लालायित रहेगा ।
रे इम्तिहान! कब पीछा छूटेगा ?
चलो इस तरह से देखते है । स्कूल में होश सँभाला तो हर क्लास का इम्तिहान जीवन का सबसे बड़ा दौर था जहॉ हर लड़कपन यह सोचता है की बैंचों (bc) जिस दिन बड़ा होऊँगा **** फाड़ दूगॉ । लेकिन आप बड़े भी हो गये और ****** का बाल तक न उखाड़ पाये । ये किसे पता होता है कि ये तो उस सॉप सीढ़ी के गेम जैसा जैसा है कि जो हर साल दर साल बड़ा होता ही जाता है । दसवीं के बाद कोर्स चूज करने का इम्तिहान जीवन का सबसे बड़ा मार्गदर्शक है क्योंकि इसके बाद यहीं तय होता है आप किस दिशा में जा रहे हो । साठ प्रतिशत लोग यहीं से अपनी दशा और दिशा तय कर चुके होते हैं और बाकि कुछ सालों के बाद तय करते है । फिर बारही के बाद कोर्स का इम्तिहान । यहॉ से तो जीवन निर्माण होता है । आप इंजीनियर, डाक्टर और अकाउण्टैण्ट या मॉडल कुछ भी बन सकते हो लेकिन ये इम्तिहान पास करना ज़रूरी है । अब ये धीरे धीरे लेवल बड़ते जाते है । कोर्स में जाने के बाद का इम्तिहान तो बस इम्तिहान ही रह जाता है ।
अब कॉलेज में हर सेमेस्टरों के इम्तिहान, फ़ाइनल के इम्तिहान और फिर कोर्स पास करने के बाद प्लेसमेंट के इम्तिहान । नौकरी लगी तो रोज़ रोज़ बॉस के इम्तिहान और न लगी तो हर रोज़ जीवन यापन के इम्तिहान । अब इस मामले में जो पीछे छूट गया वह है मोहब्बत । अब आशिक़ी तो खुद में ही सबसे बड़ा इम्तिहान है ।
आपको याद होगा की
“ये इश्क नहीं आसान,
मौत का दरिया है , डूब के जाने “
पहले लड़की पटाने के इम्तिहान जो सबसे कठिन है क्योंकि आप जैसे बीस बेरोज़गार लन्डूरे पहले से ही कॉम्पटीशन में है । अब कोई सफल भी हुआ तो उसका अलग ही लेवल का इम्तिहान शुरू हो जाता है जैसे मेकअप रखरखाव से लेकर भावनाओं के ख़्याल तक । फिर रिश्ते निभाने का इम्तिहान, ज़्यादा सफल हुऐ तो हमसफ़र बनाने का इम्तिहान जिसमें जाति धर्म , रंग रूप , चाचा ताऊ , मामी फूफी , सबको समझाने का इम्तिहान । फिर ये इम्तिहान ऐसे ही चलता रहता है ।शादी का इम्तिहान, बच्चे पैदा करने का इम्तिहान, पैदा हो गये तो उनको टॉप का लौण्डा बनाने का इम्तिहान, पालने का इम्तिहान और भी इम्तिहान जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आते रहते है ।फिर ये सिलसिला जारी रहता है , दिन ढलते जाते हैं और हम इम्तिहान पे इम्तिहान देते जाते है । दिन महीनों में , महीने सालों में बदल जाते हैं और पता भी नहीं चलता कि हम बीस साल पुरानी बात कर रहे हैं ।
रे ! ज़िन्दगी तू ही सबसे बड़ा इम्तिहान है और जी लिये को फिर ऐक दिन मरने का इम्तिहान । मुझे पता है , आपको पता है कि ऐक न ऐक दिन ये इम्तिहान देना पड़ेगा और इस इम्तिहान में कोई पास नहीं होता तो फिर बाकि इम्तिहान में फैल होने से इतना क्यों डरते हैं हम ?
है ना सोचने वाली बात ।
अरे ये फेल हो गया तो क्या हुआ ?
उसका डिवोर्स हो गया तो क्या हुआ ?
उसका ब्रेकअप हो गया तो क्या हुआ ?
उसकी नौकरी चली गयी तो क्या हुआ ?
क्या तुम ये अपेक्षा रखते हो कि हम साला हर रोज़ इतने इम्तिहान देते हैं और कभी भी फेल न हो !
अरे हो जाता है , रोज़ इतने दौर से गुजरने के बाद ग़लतियों की गुंजाइश रहती है और फिर ऐक दिन तो सबको फेल होना है । मैं आप और सब , सब के सब ऐक दिन लूजर होंगे बस वक़्त का फ़र्क़ होगा कि कोई थोड़ा सा पहले और कोई थोड़ा सा बाद में । तो फिर हम क्यों बाकि सब चीजों को इतनी तवज्जो देते है ?
यह बात सबको पता है लेकिन हम हर दिन इतने इम्तिहान में पास होते रहते है ना कि हमको लगने लगता है कि सफल होना तो हक है हमारा । फिर ग़लतियाँ शुरू होती है , मैं नहीं समझ सका तो फिर ऐक गलती के बाद दूसरी गलती और फिर हर रोज़ के इम्तिहान में फेल होने का स्तर बड़ जाता है । हम फिर भूल जाते हैं कि सब कुछ सतत नहीं हो सकता । आज का वक़्त फिर वापस नहीं लाया जा सकता , रीसेट नहीं किया जा सकता और पास्ट को बदला नहीं जा सकता । तुम्हारे फ़ेलियर तुम्हारे तमग़े है जो कभी बदल नहीं सकते और तुम्हें स्वीकार करना ही होगा । दिन प्रतिदिन के इम्तिहान हमें बहुत चीजो के प्रति केजूअल कर देते है लेकिन यह हमारे जीवन का वो हिस्सा है जिससे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है ।
आओ , आज हर इम्तिहान का सामना मुस्कराकर करे और हर फेलियर को गले लगाये । हर दिन को ऐसे जिये जैसे कि आख़िरी इम्तिहान हो और अंतिम बार फेल होना है । आपको ऐक कविता समर्पित कर रहा हूँ जो आपको सदैव प्रेरणा देगी

“आज” ~ Lalit Hinrek
ना रूक कही तू चलता जा
ना रूक कही तू चलता जा
जैसे सूरज की रौशनी
जैसे कल कल बहता पानी
भड़के तूफ़ानों को घेरा
जैसे वन मे जलती ज्वाला
ना रूक कही तू चलता जा ।
उड़ते पंछी को देख कहीं
जो जी लेता जी भर के आज
कहता फिरता , तू कर लेना जो करना है
जी लिया जी भर के आज ।
ना रूक कही तू चलता जा
ना रूक कही तू चलता जा
कितना सच बिखरा है आज
जो सामने है अनमोल है
मिट्टी तो मिट्टी मे मिलती है
कर्मों का सुख हो या सुन्दरता का आकर्षण
ना रूक कही तू चलता जा
यहॉ आज ही बस है जीवन ।
ना रूक कही तू चलता जा
ना रूक कही तू चलता जा ।