छोटी सी जगह से ताल्लुक़ रखना अपने आप में बड़ी बात है । वो पोष की कड़कड़ाती ठंड और अंगीठी में जलते कोयले , साथ में मिट्टी के तेल (कैरोसिन) से जलने वाली चिमनी । अगले दिन स्कूल का इम्तिहान और रात भर पड़ाईं करने का जज़्बा । वो भी क्या दिन थे , ऐसा लगता है कि शायद अस्सी के दशक की बात कर रहा हूँ लेकिन ये आज से चौदह पंद्रह साल पुरानी बात है ।
पिछले दस सालों में दुनिया जितनी तेज़ी से बदली है उतनी पिछले 2000 सालों में नहीं बदली । ख़ैर वापस ले चलते हैं इम्तिहान के दिनों में । क्या आपने कभी मोमबत्ती के उजाले में पढ़ाई की है?
यदि हॉ तो आपको लगेगा आप अतीत की सैर करने लगे हो । ऐक रूपये वाली मोमबत्ती और पॉच रूपये वाली मोमबत्ती । पॉच रूपये वाली जो थोड़ी सी मोटी होती थी । अपनी हिसाब किताब बिठाकर , दो चार कॉपियाँ सजाकर और सामने किताबों का ढेर लगाकर जो इम्तिहान के लिये पढ़ाई का मज़ा था वह शायद ही किसी चीज़ में होगा ।
ये वो दौर था जो आप बाल्यावस्था के उफ़ानों के मध्य में जीते हैं , खुली ऑखो से सपने देखते है और यहॉ सपने बुनना इतना सस्ता होता है कि रगों में दौड़ता खून उन हर सपनों को पूरा करने की उम्मीद करना सिखा देता है । ये इम्तिहान न सिर्फ़ आने वाले कल की उम्मीद जगाते है बल्कि वर्तमान और पूर्व की स्थितियों को परिवर्तित करने की सोच विकसित करता है । अब बात आती है कि इम्तिहान क्या है ?
ये स्कूल की ऐक छोटी सी किताब का इम्तिहान है लेकिन इसके परिदृश्य में मायने व्यापक है । अब यह किताबों से निकलकर सामने आएगा और तुम्हारी उम्र के साथ साथ परिपक्व होकर एक मज़बूत खिलाड़ी की तरह तुम्हें फेल करने के लिये सदैव लालायित रहेगा ।
रे इम्तिहान! कब पीछा छूटेगा ?
चलो इस तरह से देखते है । स्कूल में होश सँभाला तो हर क्लास का इम्तिहान जीवन का सबसे बड़ा दौर था जहॉ हर लड़कपन यह सोचता है की बैंचों (bc) जिस दिन बड़ा होऊँगा **** फाड़ दूगॉ । लेकिन आप बड़े भी हो गये और ****** का बाल तक न उखाड़ पाये । ये किसे पता होता है कि ये तो उस सॉप सीढ़ी के गेम जैसा जैसा है कि जो हर साल दर साल बड़ा होता ही जाता है । दसवीं के बाद कोर्स चूज करने का इम्तिहान जीवन का सबसे बड़ा मार्गदर्शक है क्योंकि इसके बाद यहीं तय होता है आप किस दिशा में जा रहे हो । साठ प्रतिशत लोग यहीं से अपनी दशा और दिशा तय कर चुके होते हैं और बाकि कुछ सालों के बाद तय करते है । फिर बारही के बाद कोर्स का इम्तिहान । यहॉ से तो जीवन निर्माण होता है । आप इंजीनियर, डाक्टर और अकाउण्टैण्ट या मॉडल कुछ भी बन सकते हो लेकिन ये इम्तिहान पास करना ज़रूरी है । अब ये धीरे धीरे लेवल बड़ते जाते है । कोर्स में जाने के बाद का इम्तिहान तो बस इम्तिहान ही रह जाता है ।
अब कॉलेज में हर सेमेस्टरों के इम्तिहान, फ़ाइनल के इम्तिहान और फिर कोर्स पास करने के बाद प्लेसमेंट के इम्तिहान । नौकरी लगी तो रोज़ रोज़ बॉस के इम्तिहान और न लगी तो हर रोज़ जीवन यापन के इम्तिहान । अब इस मामले में जो पीछे छूट गया वह है मोहब्बत । अब आशिक़ी तो खुद में ही सबसे बड़ा इम्तिहान है ।
आपको याद होगा की
“ये इश्क नहीं आसान,
मौत का दरिया है , डूब के जाने “
पहले लड़की पटाने के इम्तिहान जो सबसे कठिन है क्योंकि आप जैसे बीस बेरोज़गार लन्डूरे पहले से ही कॉम्पटीशन में है । अब कोई सफल भी हुआ तो उसका अलग ही लेवल का इम्तिहान शुरू हो जाता है जैसे मेकअप रखरखाव से लेकर भावनाओं के ख़्याल तक । फिर रिश्ते निभाने का इम्तिहान, ज़्यादा सफल हुऐ तो हमसफ़र बनाने का इम्तिहान जिसमें जाति धर्म , रंग रूप , चाचा ताऊ , मामी फूफी , सबको समझाने का इम्तिहान । फिर ये इम्तिहान ऐसे ही चलता रहता है ।शादी का इम्तिहान, बच्चे पैदा करने का इम्तिहान, पैदा हो गये तो उनको टॉप का लौण्डा बनाने का इम्तिहान, पालने का इम्तिहान और भी इम्तिहान जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आते रहते है ।फिर ये सिलसिला जारी रहता है , दिन ढलते जाते हैं और हम इम्तिहान पे इम्तिहान देते जाते है । दिन महीनों में , महीने सालों में बदल जाते हैं और पता भी नहीं चलता कि हम बीस साल पुरानी बात कर रहे हैं ।
रे ! ज़िन्दगी तू ही सबसे बड़ा इम्तिहान है और जी लिये को फिर ऐक दिन मरने का इम्तिहान । मुझे पता है , आपको पता है कि ऐक न ऐक दिन ये इम्तिहान देना पड़ेगा और इस इम्तिहान में कोई पास नहीं होता तो फिर बाकि इम्तिहान में फैल होने से इतना क्यों डरते हैं हम ?
है ना सोचने वाली बात ।
अरे ये फेल हो गया तो क्या हुआ ?
उसका डिवोर्स हो गया तो क्या हुआ ?
उसका ब्रेकअप हो गया तो क्या हुआ ?
उसकी नौकरी चली गयी तो क्या हुआ ?
क्या तुम ये अपेक्षा रखते हो कि हम साला हर रोज़ इतने इम्तिहान देते हैं और कभी भी फेल न हो !
अरे हो जाता है , रोज़ इतने दौर से गुजरने के बाद ग़लतियों की गुंजाइश रहती है और फिर ऐक दिन तो सबको फेल होना है । मैं आप और सब , सब के सब ऐक दिन लूजर होंगे बस वक़्त का फ़र्क़ होगा कि कोई थोड़ा सा पहले और कोई थोड़ा सा बाद में । तो फिर हम क्यों बाकि सब चीजों को इतनी तवज्जो देते है ?
यह बात सबको पता है लेकिन हम हर दिन इतने इम्तिहान में पास होते रहते है ना कि हमको लगने लगता है कि सफल होना तो हक है हमारा । फिर ग़लतियाँ शुरू होती है , मैं नहीं समझ सका तो फिर ऐक गलती के बाद दूसरी गलती और फिर हर रोज़ के इम्तिहान में फेल होने का स्तर बड़ जाता है । हम फिर भूल जाते हैं कि सब कुछ सतत नहीं हो सकता । आज का वक़्त फिर वापस नहीं लाया जा सकता , रीसेट नहीं किया जा सकता और पास्ट को बदला नहीं जा सकता । तुम्हारे फ़ेलियर तुम्हारे तमग़े है जो कभी बदल नहीं सकते और तुम्हें स्वीकार करना ही होगा । दिन प्रतिदिन के इम्तिहान हमें बहुत चीजो के प्रति केजूअल कर देते है लेकिन यह हमारे जीवन का वो हिस्सा है जिससे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है ।
आओ , आज हर इम्तिहान का सामना मुस्कराकर करे और हर फेलियर को गले लगाये । हर दिन को ऐसे जिये जैसे कि आख़िरी इम्तिहान हो और अंतिम बार फेल होना है । आपको ऐक कविता समर्पित कर रहा हूँ जो आपको सदैव प्रेरणा देगी
“The greatest pleasure in life is being alive-Lalit Hinrek”
As a photographer you must understand the intensity of light, scenic background and emotions as well. Hey guys, I hope you all are alive and doing just fine. Its a long time I haven’t used my pen & paper to broadcast my emotions. Lets begin with this fairy tale travel diary. I won’t explain much information about the place since you just got google baba for that. So let us make it simple and talk about real stuff that is what I have create as a memories of this place. I will show you photo journal and some travel fun we had done there in Ladakh.
We started our journey from Delhi. All those guys in the pictures are Govt officials working in different different organizations. Due to lack of time we decided to travel via flight from Delhi to Leh to reduce travel journey time. However if you can manage to travel by road, you must try it because it is once in a life time experience. The beauty of the road trip its scenic beauty can not be explain in the words because it can only be felt by experience. Having said that, I had clicked some beautiful photographs from flight. This is overview of Ladakh form the window.
Laddakh is like a heaven on earth.
After landing at Leh airport. We clicked some photographs.
Since Leh is at 10000 Ft elevation so it is good to get acclimatize with condition by staying 1-2 night in Leh. You might feel some difficulties in breathing or some kind of nausea but nothing will happen just be brave and I will personally advice not to drink on first day. We booked our hotel Namgyal Palace which were nearby and stayed for a night in Leh. The beauty of this city will took your heart away. Such a wonderful terrain. For photography enthusiasts it is no less than a heaven. You can bring your lenses and start exploring the cold dessert.
Hotel at Leh
We had a party at night and we got some friends who are posted in Leh. I have my senior who is SDM in Leh and some colleague also. So it was easy to do some research work to find out some good places. We made lot of new friends as well. I would suggest you not to drink at night otherwise you might get motion sickness in next day while traveling in hilly roads. Next morning we headed towards Khadungla Pass which is highest altitude road in the world almost at 18000 ft. I have clicked some photographs there.
Khadungla Pass 18000 FtPurpose of the life is to be happythe world is beautiful, start your journey today. the beauty of Pengong Lake.The beauty lies in the eyes of beholders.
For this Photo journal it is enough. Next journal will be more exotic and full of fun. Be in touch guys and thanks for your love and support.
ये कहानी कुछ अपने बारे मे लिख रहा हूँ । हॉलाकि यह कठिन है लेकिन यादों के झरोखों से तिनको को पिरोना और ताना बाना बुनकर उस हक़ीक़त को कहानी मे जिन्दा करना किसी भी रोमांच से कम नही । यह तुम्हारी स्मृति मे कहीं ना कहीं ताउम्र जिन्दा रहती है । इसलिये भी लिख रहा हूँ कि शायद इन परिस्थितियों मे लिखने से बेहतर अवसर हो ही नही सकता । कुछ और कारण भी है जैसे मेरे जीवन के बहुत पहलुओं से जो ना रूबरू हो सके , उन्हें भी अपनी उस कहानी तक पहुँचाना । जिससे न सिर्फ़ मे आने वाले वक़्त मे आपके ज़ेहन मे जिन्दा रहूँ बल्कि विचारों मे भी निरन्तर प्रवाहित होता रहूँ ।
मैं बचपन से ही जिझासु प्रवृति का व्यक्ति रहा हूँ । मेरे जीवन के उतार चढ़ाव किसी roller coasters (तीव्र गती से बहती लहरे) से कम नही रहे । स्कूल मे पढ़ाई मे बहुत अच्छा रहा लेकिन फिर कॉलेज आते ही नयी परिस्थितियों के अनुरूप ढल न सका और परिणाम स्वरूप B.Sc और Engineering Entrance मे फ़ेल हो गया । यह वास्तव मे झकझोर देने वाली घटना थी जिसने मुझे अन्दर से तोड़ दिया और आत्मग्लानि के अनुभव ने शायद निराशा के नये दामन को जन्म दिया । मेरे पिता जिन्होंने मुझे पढ़ाने के लिये ज़मीन तक बेच दी थी वह मुझसे कितनी उम्मीद करते थे यह बात मुझे अन्दर ही अन्दर खोखला कर रही थी । उस वक़्त शायद मुझे समझ नही थी की मैंटल हेल्थ क्या होती है लेकिन यह वास्तव मे nervous breakdown था लेकिन हम लोग ऐसे माहौल से आते है जहॉ इस बारे मे कोई बात नही की जाती । कितने ऐसे बच्चे है जो कठिन दौर से गुजरते है फिर हार मान जाते है । मुझे भी समझाने वाला कोई नही था और मैं किसी से भी अपनी भावनाऐं साझा नही कर सकता था । ऐक बार ऐसा लगा की कैसे लोगों का सामना किया जायेगा । यह सब कुछ ऐक अलग अनुभव था । जो कल तक समझते थे कि मैं अपने गॉव का सबसे होनहार लड़कों मे ऐक था वो लोग बातें बनाने लग गये थे कि मैं बर्बाद हो चुका हूँ ।
फिर गॉव वापस गया , घर परिवार का सामना करना किसी जंग से कम नही था । जब आप निराश होते हो तो आपको वास्तव मे चाहने वाले लोग भी दुखी होते है । यह इस प्रकार का जुड़ाव होता है जो सभी लोगों को प्रभावित करता है । सभी को मालूम था कि मैं निराश हूँ इसलिये मुझे किसी ने कुछ नही कहा लेकिन मुझे मालूम था कि सब कितने दुखी है । कई दफ़ा जीवन मे कुछ समझने और समझाने के लिये शब्दों की ज़रूरत नही होती । आपकी नम ऑंखें , आपकी शक्ल और सूरत सब ब्यॉ करती है ।फैल होना वास्तव मे बेहद निराशाजनक है । यह अनुभव जीवन के कटु अनुभवों मे से ऐक था ।
जुलाई 2007 की बात है मैं शाम के वक़्त छत पर बैठा था । मेरे पिता मेरे पास आये और उन्होंने कुछ ऐसे कहा कि जिसने मुझे हौसला दिया और मुझे वापस बदलाव की प्रेरणा दी
मेरे पिता बोले, “ बेटा ऐक बात समझनी चाहिये कि जैसे जैसे हमारी उम्र बड़ रही है हमारी काम करने की क्षमता कम हो रही है लेकिन जैसे जैसे तुम्हारी उम्र बढ़ रही है तुम्हारी काम करने की ताक़त बड़ रही है तो तुमको इतनी मेहनत करनी चाहिये की तुम्हें कभी असफलता का सामना ही न करना पड़े । बाकि हम बिल्कुल दुखी नही है यह सब तुम्हारे लिये ही तो है चाहे सारी ज़मीन बेचनी पड़ेगी लेकिन तुम लोगों की पढ़ाई मे कोई कमी नही होगी”
मैं वास्तव मे निःशब्द था , ऑखो मे ऑसू थे और हृदय मे आत्मग्लानि , लेकिन फिर उस रात सोया नही और पिता जी के शब्द ब शब्द डायरी मे लिख डाले । ऐक बात पहले से मैं समझता था कि आप जीवन मे अच्छा करेंगे तो भी समाज मे बहुत लोग आपको नापसन्द करेगें और अगर जीवन मे असफल रहोगे तो भी समाज मे काफ़ी लोग आपकी निन्दा करेंगे । इसलिये समाज मे लोगों के नज़रिये को उस उम्र मे छोड़ दिया था । मैं यह बात समझता था की जीवन मे Self motivated (आत्म प्रोत्साहन) और Ambitious (महत्वाकांक्षी) होना बेहद आवश्यक है । मैने निर्णय लिया कि अब साल भर घर नही आऊँगा । फिर देहरादून आ गया और पूरे ऐक साल तक घर नही गया । हमारा परिवार आर्थिक परिस्थितियों से जूझ रहा था यह वो समय था जिसे शायद शब्दों मे ब्यॉ करना मुश्किल है ।
यह सब मैं संजोये रखना चाहता हूँ इसलिये ताकि सनद रहे कि वक़्त की फ़ेहरिस्तों ने कई जमाने बदल डाले है ।बहुत से ऐसे युवा साथी भी होगे जो जीवन मे अभी कठिन दौर से गुजर रहे है लेकिन मैं आपको यक़ीन दिलाता हूँ यह सब कठिन दौर आपके जीवन के सबसे क़ीमती वक्त मे से ऐक होगा । इस दौर से जो से जो व्यक्तित्व निर्माण होगा वह शायद बेशक़ीमती है । मैं जीवन के उस दौर का ऐक वाक्या साझा कर रहा हूँ । यह वाक्या है आस्था का , मोहब्बत का , परिवार का और प्रेरणा का । कभी किसी के साथ साझा करने का अवसर नही मिला या ये कहूँ कोई इतना सौभाग्यशाली नही रहा शायद लेकिन यह आपको समर्पित करना चाहता हूँ ताकि जब तक ये ब्लॉग रहे तब तक यह कहानी मे जिन्दा रहे , हमेशा हमेशा के लिये ।
हमारी पढ़ाई मे जीतना योगदान हमारी दीदी का है उतना शायद किसी का भी नही है । उसने 1000 रूपये मे स्कूल मे नौकरी की है और हर महीने रूपया रूपया जोड़कर हमारी पढ़ाई को खर्चा भेजा । यह कल्पना भी करना मुश्किल है कि हम कैसा महसूस करते थे । बहुत कम ही लोग जानते है कि इस ख़ुशनुमा हृदय के अन्दर कितना मर्म दफ़्न है । मैं इसे अपने जीवन के बेशक़ीमती चीजो मे शुमार करता हूँ ।
देहरादून आने के बाद मैं , मेरा छोटा भाई ऐवम मेरा मित्र संजय हम साथ रहते थे । हम बहुत मेहनत करते थे और शायद यह वो साल था जब हमने हर दिन 8-10 घण्टे पढ़ाई की होगी । मेरे पास 2007 की डायरी लिखी है जिसमें मैं सोने से पहले रोज अपनी दिनचर्याओं का ब्योरा लिखता था । आज जब उसे खोलकर देखता हूँ तो वास्तव मे यक़ीन नही होता की हमने कितनी मेहनत की थी ।
Diary of 2007
इसके अलावा दीदी हर महीने लैटर लिखती थी जब भी किसी के पास पैसे भिजवाया करती तो साथ मे ऐक लैटर भी भेजती थी । यह बेहद पर्सनल है लेकिन मैं इसे अपने ब्लॉग मे साझा कर रहा हूँ ताकि जब भी मैं इसे देखूँ उन लम्हो को फिर से जी सकूँ । मेरे बाद भी सालो सालो तक यह कहानी जिन्दा रहे । ज़िन्दगी के उन पहलुओं को लिखना जिसे सिर्फ़ आपने जीया है वास्तव मे कठिन है । बहुत सी कहानियाँ होती है जो प्रेरणा देती है , जीने की उम्मीद देती है और सपने देखना सिखाती है । यह भी कुछ इस प्रकार से है जिसने उम्मीदों मे जीना सिखाया, आने वाले वक़्त के लिये प्रेरणा दी ।
सितम्बर 2007 मे दीदी का ऐक लैटर आया जिसमें लिखा था
“प्रिय भैय्या ललित
सदा खुश रहो । आशा करती हूँ कि तुम उस शुभ स्थान पर भगवान ऐवम् महासू देवता की कृपा से ठीक होगें । हम सब भी ठीक है । आगे समाचार इस प्रकार से है कि विक्की घर आ गया है और तुम्हारी चिट्टी भी मिल गयी है , मैने उसे पढ़ भी लिया है ।
भैय्या , चिट्टी भिजवाते रहना ।मुझे तो ऐसा लगता है कि हमारे पास कुछ भी नही है । मुझे मणी तो मिली थी लेकिन जब विक्की घर आया तो पापा और ने देखा कि उस डिब्बी मे तो कुछ भी नही था । जब मैं स्कूल से 3 बजे घर आयी तो विक्की को देखा तो ख़ुशी हुई लेकिन विक्की खुश नही था कह रहा था कि तुम झूठ बोल रहे हो तुम्हें कुछ नही मिला था ।
भैय्या कभी कभी तो मर जाने का मन करता है कि लगता है अब हम दुख नही झेल सकते , सारी ताक़त ख़त्म हो चुकी है । उस डिब्बी मे चॉदी के दो सिक्के भी थे जब देखा तो वो भी नही थे । भैय्या भगवान ने जो भी दिया था वह भी छीन लिया ।
पापा मम्मी और विक्की तुम्हें यह सच नही बताना चाह रहे थे लेकिन भैय्या मैं तुम्हें कभी भी झूठ नही बोलना चाहती हूँ । हमारे पास ख़ाली विश्वास बचा है ।
भैय्या मुझे स्कूल से 1000 रूपये मिले मैं तुम्हें ये रूपये भिजवा रही हूँ पापा के पास ऐक भी रूपया नही है । तुम्हें पता है कि मैं कमज़ोर हो रखी हूँ । भैय्या घर का खर्चा भी चलाना होता है । मेरी दवाईयॉ भी ख़त्म हो चुकी है । मैं जानती हूँ कि तुम्हें बहुत कष्ट हो रहा होगा क्योंकि बिना पैसो के कुछ भी नही होता लेकिन क्या करूँ 100 रूपये से जमा करती हूँ कभी 500 हो जाते कि तब तक कोई न कोई मुसीबत आ जाती है । दीपावली आने वाली है हमने कुछ भी नही ख़रीदा है । सोच रही थी की इस बार रंग करवा दूँ लेकिन मेरी इच्छा कभी भी पूरी नही होगी ।
भैय्या अपना भी ख्याल रखना हमारी टेंशन मत लेना । मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ अब जैसा तुम सोचोगे हम वैसा ही करके दिखायेंगे । अरे भगवान कब तक हमारी परीक्षा लेंगे अब हम भी परीक्षा देने के लिये खड़े । मैं सनम की भूगोल की किताब , इतिहास उत्तरांचल की किताबे पढ़ रही हूँ । भैय्या तुम्हारे पास जितना भी समय है ख़ूब पढ़ाई करना और मुझे भी चिट्टी भिजवाते रहना थोडा हौसला बजता है । जब बहुत दुख होता है तो तुम्हारी चिट्टी पढ़ लेती हूँ ।
सनम के अर्धवार्षिक परीक्षा समाप्त हो गयी है रिज़ल्ट के बाद पता चलेगा कि इसने कितनी मेहनत की है । ख़ूब पढ़ाई करती है काम भी करती है । मम्मी सुबह घास के लिये जाती है उसके बाद कुछ काम नही करती है । मैं और सनम सारा काम करते है ।
महासू देवता तुम्हारी रक्षा करेंगे । विश्वास रखना ।
भैय्या चिट्टी भिजवाना हम इन्तज़ार करेंगे ।
…………..signature.
आज भी जब ये चिट्ठीया खोलता हूँ तो ऑंखें नम हो जाती है । कभी किसी के साथ साझा करने का अवसर नही मिला । मेरे लिये यह उस क़ीमती उपहार से कम नही है जिसने मुझे भावनात्मक रूप से संवेदनशील बनाया है । आपके साथ साझा कर रहा हूँ क्योंकि ये सिर्फ़ कहानी नही है यह उससे बढ़कर है । ये ज़िन्दगी है जिसे मैने जीया है और ये वक़्त है जिसने हमे सिखाया है । हमारी नींवों मज़बूत बनाया की कभी किसी के प्रति घृणा , द्वेष या ईर्ष्या उत्पन्न न हो । मैं शुक्रगुज़ार हूँ हर उन छोटी छोटी बातो का जिसने जीवन को अलग रूप दिया । जीवन मे बहुत से ऐसे पहलुओं से रूबरू होना मेरी ख़ुशनसीबी है और मैं तमाम उन व्यक्तियों से ज़्यादा भाग्यशाली हूँ जिन्होंने जीवन मे कठिन दौर का सामना नही किया है । हम कितने संवेदनशील हो जाते है कि हमारे संवाद हमारी लेखनी से स्थापित होते है । ये वो दौर था जब मैं न सिर्फ़ भावनात्मक रूप से बल्कि वैचारिक रूप से भी ईश्वर के क़रीब जाना चाहता था । मैने उस वक़्त के दौर मे कुछ कविताएँ लिखी है जो मेरी प्रगाढ़ आस्था को प्रदर्शित करती है ।जब हम भयभीत होते है तो हमे भावनात्मक संवेदनशीलता को स्थिर बनाये रखने के लिये सहारे की आवश्यकता होती है । हमारे पास ऐसा कुछ भी नही था जो हमारी मज़बूती बनता सिवाय उम्मीदों के । मैने प्रार्थनाएँ की , मैने तपस्याएँ की और भक्ति की ।
उस दौर मे मुझे लगता था कि मुझसे बड़ा भक्त शायद ही इस ब्रह्माण्ड मे कोई होगा । मैने ईश्वर के साथ संवाद स्थापित किये । मैने हज़ारों प्रार्थनाऐं की और मैने कविताएँ लिखी । ये मेरे लिये क़ीमती वक़्त था मैने उस दौर मे ऐक वैचारिक संवेदना स्थापित की जिसने ज़ेहन मे हमेशा के लिये गहरा प्रभाव डाला । उस दौर की यह कविता मेरी बेहतरीन कविताओं मे से ऐक है । यह कुछ इस प्रकार से से है ।
मालिक (A letter to God by Lalit Hinrek )
तू मालिक है मेरे मौला , इस बन्दे पे रहम कर
ना समझू कि तू काफ़िरों की हुकूमत से डर गया
वो बन्दा जो आवाज़ दे , उस बन्दे पे रहम कर
ना समझू की तू काफ़िरों की हुकूमत से डर गया
अर्ज क्या करूँ कि क्या ख्याल है !
आज तक़दीर लिख दे कुछ ब्यॉ न करूँ
तू मालिक है मेरे मौला , इस बन्दे पे रहम कर
वो बन्दा !
वो बन्दा जो इस अंधेरे से डर गया
वो बन्दा !
वो बन्दा जो तेरी मोहब्बत पे लुट गया
राह देख तेरी वक़्त जाया कर गया ….वो बन्दा
उस बन्दे पे रहम कर ।
तू मालिक है मेरे मौला , इस बन्दे पे रहम कर ।
ना समझु की तू काफ़िरों की हुकूमत से डर गया ।
ना जाये इतना दूर कि तू तन्हा हो जाये
उस बन्दे की मोहब्बत को नज़रअंदाज़ न कर ।
वो बन्दा तेरा अपना है , कुछ ख्याल तो कर
यूँ काफ़िरों की हुकूमत को आबाद न कर
तू मालिक है मेरे मौला ।
अर्ज क्या करूँ कि तू क़रीब हो जाये
मिट जाये ये फ़ासले , तू नसीब हो जाये
आज तक़दीर लिख दे कुछ ब्यॉ न करूँ
तू मालिक है मेरे मौला , इस बन्दे पे रहम कर
तू मालिक है मेरे मौला , उस बन्दे पे रहम कर
ना समझु की तू काफ़िरों की हुकूमत से डर गया ।
दे हवा नम ऑखो को सुखाने मे
नफ़रत को , जलन को बुझाने मे
कर गया जो ग़लतियाँ अनजाने मे
ना दूर इतना जा मेरे मौला
कि लग जाये वक़्त लम्हा भुलाने मे
तू मालिक है मेरे मौला , इस बन्दे पे रहम कर
अर्ज क्या करूँ की तू परवाह न करे
हो गया तन्हा तो तेरा दर नज़र आया
ये मोहब्बत है मेरी , मुश्किल न समझ
यहॉ लुट गये हज़ारों तो तेरा दर नज़र आया
आज तक़दीर लिख दे , कुछ ब्यॉ न करूँ
तू मालिक है मेरे मौला , इस बन्दे पे रहम कर
ना ग़ुरूर है कोई वो बेज़ुबान है
ना शिकवा कोई वो वीरान है
ये कैसी वफ़ा का इम्तिहान है
वो बन्दा है तेरा इशारा तो कर
वो भड़के वो शाला , वो तूफ़ान है
तू मालिक है मेरे मौला , इस बन्दे पे रहम कर
ना समझू की तू काफ़िरों की हुकूमत से डर गया !!
यह प्रगाढ़ आस्था परिस्थिति जनित होती है । मुझे यह बात समझ आ गयी की यदि ईश्वर कही भी होते तो मनुष्य जीवन मे कभी दुख नही होते । मेरी हज़ारों प्रार्थनाऐं शायद अनसुनी रह गयी । धीरे धीरे यह समझ आ गया कि कर्म सर्वोच्च है । फिर कर्म को अराध्य मानता चला गया और फिर वास्तविकता को समझने की कोशिश करता रहा । यह ऐक अलग विषय है इस पर कभी फिर चर्चा करूँगा ।
लिख बहुत कुछ सकता हूँ लेकिन फिर कभी किसी और कहानी के रूप मे कुछ बाते लिखूँगा ।वो वक़्त भी चला गया और उस साल हम तीनो रूम मेट सफल होकर अपनी अपनी मंज़िलों के लिये आगे बड़ गये ।
हमारा रूम मेट संजय दिल्ली पुलिस मे दारोग़ा (Sub Inspector) भर्ती हो गया । मैं इंजीनियरिंग कॉलेज चला गया हॉलाकि जिस प्रकार से मेहनत की थी उसका 10 % भी सफल नही हो पाया । मेरा छाँटा भाई सिविल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा करने श्रीनगर चला गया ।
आई० ऐ० ऐस० बनना चाहता था सोचा था कभी बनूँगा तो उस वक़्त की लिखी डायरी और उसमे लिखी उस दौर की बातें ऐक किताब के रूप मे लिखूँगा । लेकिन हम वक़्त की नज़ाकत को नही समझ पाते । वक्त फिर हमे उन दिशाओं मे ले जाता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नही की होती है । ये ऐक छोटी सी घटना है लेकिन कितनी तमाम ऐसी घटानाओ ने मेरे जीवन को पिरोया है ।
जब भी कभी लगता है कि आगे आ गया हूँ तो पीछे मुड़कर देखता हूँ , बार बार पड़ता हूँ और लिखता हूँ । जब भी लगता है कि हृदय मे नफ़रत भर रही है , पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मुझे बस मोहब्बत ही मोहब्बत दिखाई देती है । यह मेरे हृदय की सबसे कोमल पहलुओं मे से कुछ है जिसे आज आपके सामने समर्पित कर रहा हूँ । यक़ीन मानिये यह मेरी तरफ़ से दिया गया ऐक तोहफ़ा है जिससे आपके हृदय की भावनात्मक संवेदनाओं को जिन्दा करने का अवसर मिलेगा । मैं नही जानता आप कौन हो , क्या हो और कहॉ हो लेकिन यक़ीन मानिये यदि आप यह पढ़ रहे हो तो आप जो भी हो , जहॉ भी हो , मेरा हृदय आपसे बेइंतहा मोहब्बत करता है और हमेशा करता रहेगा ।
A lot of uncertainty in life. I have tried to put my heart on it. I hope you will like this poem
अनिश्चितताऐं (uncertainty) ~Lalit Hinrek
जिस दौर से गुजर रहा है ये ज़माना ज़िन्दगी ना मालूम तुझे हुआ क्या है ….!!
जहॉ मॉगी थी हज़ारों ख़्वाहिशें वहॉ बन्द कठघरों का सिलसिला है
कहीं रफ्तार थम सी गई है सन्नाटों मे कहीं चीखने चिल्लाने की बदहवा है
जिस दौर से गुजर रहा है ये ज़माना ज़िन्दगी ना मालूम तुझे हुआ क्या है
मेरे यार तुम्हारा जनाज़ा हॉ तुम्हारा जनाजा ……!! काफ़ी नही था मरहम लगाने को तभी हुक्मरान की दुकानों का ऑगन खुला है
और कितनी ख़ामोशी है मंदिरों मे , मस्जिदों मे लेकिन मैं ख़फ़ा नही तुम्हारे खुदा से , देवताओं से मेरे पास तो मोहब्बत है और क़लम की दुआ है
जिस दौर से गुजर रहा है ये ज़माना ज़िन्दगी ना मालूम तुझे हुआ क्या है ….!!!
Painting from whatsapp
ना देवताओं के बांशिदे , ना हुक्मरानो के नुमाइंदे ना धन दौलत , ना शान ओ शौक़त ना वक़्त महफ़ूज़ करता सीख सकता ललित अगर सीखता अनिश्चितताओं को बुरे दौर से गुजरे अनुभवों को ज़िन्दगी की कठिन राहों को हर दौर मे संभलने जाने को
जिस दौर से गुजर रहा है ज़माना ज़िन्दगी ना मालूम तुझे हुआ क्या है ….!!!
“Nobody knows where the hell we gonna land tomorrow. Live today like it’s your last day “