(यह ऐक छोटी सी कहानी है जो बहुत वर्षों पहले मेरे ऐक दोस्त ने मुझे सुनाई थी । वर्षों तक ज़ेहन मे रहने के बाद इस कहानी को आप सभी तक पहुँचा रहा हूँ । उम्मीद करूँगा की इसका असर आपको इसे और आगे पहुँचाने को मजबूर करेगा )
राम ऐक छोटे से क़सबे में रहता था जो कि देहरादून से लगभग 200km दूर यमुना घाटी के की तलहटी में बसा है । चारों और सुन्दर पर्वत और इसकी घाटी मे बहती निरन्तर दो नदियों कि जलधारा और स्वर्ग सा बसा ये बेहतरीन क़स्बा ।
यहॉ के लोग तेज़ तर्रार किन्तु सुविधाओं से वंचित है फिर भी हिम्मत ना हारने वाले मेहनती है । राम ऐक 12 वर्ष का मेधावी ऐवम जिज्ञासु लड़का है जो अपने मासूमियत से भरपूर उड़दंगो से ना केवल अपने माता पिता अपितु गली मोहल्लों को तक को ख़ूब परेशान रखता था ।
ये क़स्बा टौंस नदि की तलहटी मे बसा है तथा राष्ट्रीय राजमार्ग इसको हिमाचल ऐवम उत्तराखण्ड से जोड़ता है । वाहनों की आवाजाही लगी रहती है जिसके चलते छोटी सी मार्केट मे काफ़ी लोगों को रोज़गार भी मिलता है ।
इसी रास्ते के चलते वन गुर्जर अपने मवेशियों के साथ गर्मीयो के शुरू होते ही मैदानों से ऊँचे पहाड़ों की ओर चलते है तथा बर्फ़बारी से पहले ही फिर इसी रास्ते मैदानों की ओर पलायन करते है ।
इनके पशुओं की संख्या काफ़ी होती है तथा इसमें गाय , भैंसे , बकरियाँ और घोड़े प्रमुख होते है । अभी गर्मियाँ शुरू हो चली थी स्कूल अब बन्द थे और राम प्रत्येक दिन अपने मित्रों के साथ नदी मे नहाने चला जाता था । वन गुर्जरों का आना शुरू हो चला था और राम और उसके साथी छोटी नदी मे इन पशुओं को ख़ूब परेशान करते थे । वो कभी बकरियों के बच्चों के पीछे भागते तो कभी पानी मे नहा रही भैंसों को नहलाते । हर दिन इसी तरह मौज मस्ती मे बीत जाता ।
4-5 दिनों के बाद एक वन गुर्जर का झुण्ड आया जिसमें बकरियाँ और घोड़ों की संख्या ज़्यादा थी । राम, मृनल , सत्यानंद और उसके कुछ साथी आज भी घर से खाना खाकर खड़ी धूप मे नदी किनारे पड़ी पानी की छाबर बना कर उसमे लोटपोट आराम फ़रमा रहे थे तभी इस झुण्ड ने उनकी इस अय्याशी मे बाधा डाली । इन गुर्जरों से यहॉ के मूल बाशिन्दें कभी गाय ,भैंस , बकरीयॉ और घोड़े इत्यादि उचित दामों मे ख़रीद लिया करते थे । इस घोड़ों के झुण्ड मे तो ऐक से बड़कर ऐक घोड़े थे और इनमें से सबसे ख़ूबसूरत था ऐक सफ़ेद जवान घोड़ा जो अभी भरपूर जवान भी नहीं हुआ था लेकिन उसके सफ़ेद मखमली बाल उसकी गर्दन से ऐसे लहराते मानो परियों ने मोतियों की मालाओं को ऐक साथ जोड़ दिया हो , उसके खुर्रो मे भी लम्बे बालों का ऐक गुच्छा था तथा इस घोड़े को देखकर राम और उसके साथी मानो ख़ुशियों कि चौकड़ी भर रहे थे ।
सत्यानंद ऐवम मृणाल क़स्बे के काफ़ी अमीर परिवारों से आते थे ऐवम इनके परिवारों मे पहले से घोड़े मौजूद थे ।उन दिनों पशुधन सम्पदा परिवार की शान थी और परिवार की हैसियत दूध-दही-घृत माखन मेवा से ही की जाती थी ।राम तो ऐक ग़रीब परिवार से था हालाँकि राम अपने मित्रों मे सर्वाधिक बुद्धिमान ऐवम तेजस्वी था लेकिन जब भी वो लोग अपने घोड़ों के बारे मे बात करते तो वो चुप हो जाता ।उसकी भी जिज्ञासा जाग जाती की मेरे पास भी ऐक घोड़ा होता तो मैं भी कुछ हेकड़ी दिखा पाता और इतना ख़ूबसूरत घोड़ा तो किसी ने पहले कभी देखा ही नहीं । दिन भर इन लोगों ने नदी के किनारे ख़ूब मस्ती की और दिन भर घोड़ों के नामो पर चर्चा की । कोई चेतक कहता तो कोई कुछ ।
राम ने मन ही मन सोचा की क्यों ना इस घोड़े को ख़रीदा जाये । राम जिज्ञासापूर्ण घोड़े के मालिक के लड़के सलीम के पास गया जिसने उस वक़्त घोड़े को पकड़ रखा था । राम ने सलीम को पूछा “भाई कितने का है ये घोड़ा “
सलीम – चार हज़ार का ।
चार हज़ार उन दिनों बड़ी रक़म मानी जाती थी और राम ने चार हज़ार कभी सोचे भी नहीं थे देखना तो बहुत दूर की बात थी और वह हक़ीक़त जानता था यहॉ तक कि राम कभी कभी स्कूल तक नहीं जाता था क्योंकि उसके पिता स्कूल की फ़ीस भी कई बार टाईम से नहीं दे पाते थे जो कि मात्र पचास रूपया प्रति माह होती थी । राम मन ही मन बेहद निराश था लेकिन उसने इस शिकन को चेहरे पर प्रतीत नहीं होने दिया । सब मित्र बेहद ख़ुशी ख़ुशी घर चले गये ।
घर पंहचते ही राम ने अपने पिता से पूछा –
“बाबा घोड़ा घिनी ला , होद्द एसो
बाठकुणा “
(बाबा क्या आप मेरे लिये घोड़ा ख़रीदेंगे बेहद ख़ूबसूरत है )
इस पर पिता मुस्कराहट के साथ पुछते है ।
“कैथा ओसो ऐ , आमारे कैथुके रोआ लागी घोड़ा “
(कहॉ है , और हमारे किस काम का है घोड़ा )
“गुजरो केंई ओसो है , ला बाबा इनी केईं बाद्दे केईं है घोड़ा , आमे भी उण्डा घीनु ले “
(गुर्जर के पास है बाबा , इन सब लोगों के पास घोड़ा है हम भी ख़रीदते है ना बाबा )
“बाबा – केतरे का लाई देई “
(कितने का दे रहे है ?)
राम – चोऊ हजारो का
(चार हज़ार का )
बाबा – बेटा रूपये ने बेटा रूपये ने ओथी ।
(बेटा पैसे नहीं है )
राम – उण्डा घिनुले ला बाबा हद्द ओसो बोडिया घोड़ा ।
(बाबा ख़रीद लो ना बहुत अच्छा घोड़ा है )
बाबा – रूपये ने ओथी बेटा हेभी , हेभी ने घिनीओन्दा ।
(पैसे नहीं है बेटा अभी , अभी हम नहीं ख़रीद पायेंगे )
राम – तुमे बोलो ऐश्नो ही , तुमे ने कोदी ने घिन्दे ।
(आप तो हमेशा ऐसे ही बोलते हो , कभी नहीं ख़रीदते हो )
इन्हीं शब्दों के साथ मानो उसके सपने चूर हो गये हो , ऑसुओ की जलधारा प्रवाहित हो चली लेकिन पिता तो असहाय है कर भी क्या सकते थे सिवाय इसके कि वो बोलते है कि जब पैसे होगे तो ले लेंगे । वह फूट फूट कर रोने लगा जैसे उसके सारे सपने यहीं ख़त्म हो गये हों , जैसे उसका जीवन ही व्यर्थ चला गया हो कि वो आख़िर पैदा ही क्यों हुआ !
लेकिन पिता ने उसे रोने दिया वो जानते थे कि दर्द क्या है क्योंकि उनके संघर्षों ने , जीवन के कटु अनुभवो ने उन्हें ज़ख़्मों के अलावा कभी कुछ दिया ही नहीं ।
ऐक नयी सुबह होती है लेकिन राम अभी भी नाराज़ है रात का खाना भी नहीं खाया है हालाँकि सलीम और उसका जादुई खुर्रो वाला घोड़ा भोर कि पहली पहर मे ही कूच कर गये है ऊचें पहाड़ों की ओर जहॉ उसको अपने मवेशियों के लिये हरी हरी घास पर्याप्त मात्रा मे मिलेगी । राम बहुत नाराज़ है उसके बाबा उसको मनाने का प्रयत्न करते रहते है । 1-2 दिन बाद फिर उसकी बंदमाशियो भरी ज़िन्दगी होती है अब वह सब कुछ भूल गया है। मानो कोई घोड़ा उसकी ज़िन्दगी मे था ही नहीं ।
इस साल राम मेधावी होने के चलते नवोदय विद्यालय के प्रवेश परिक्षा मे सलेक्ट हो जाता है और अब वह 6-12 तक की पडाई वही करेगा ।उसके साथ साथ सत्यानंद व मृणाल भी चयनित होते है ।सब के सब गॉव से बेहद दूर उत्तरकाशी चले जाते है ।
चार साल बाद उसकी दसवीं की परिक्षाऐ सम्पन्न होती है उसके परिणाम आने तक वह अपने मित्रों के साथ गॉव वापस आया है । दसवीं का परिणाम आता है वह प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण हुआ है और उसके सब मित्रों मे सबसे अधिक अंक है ।
मई माह का प्रथम सप्ताह है वन गुर्जरो का आना जाना फिर से शुरू हो चला है । बचपन की भॉती अभी भी सब दोस्त दिन मे खाना खाने के बाद नदी मे नहाने चले जाते है । और वो लोग देखते है सलीम और उसके मवेशियों का झुण्ड फिर से आया है । वही घोड़ा जो चार साल पहले उन्होंने देखा था आज भी है लेकिन ज़्यादा मज़बूत , ज़्यादा जवान और ज़्यादा ख़ूबसूरत । किसी दोस्त को ये नहीं मालूम था की राम उस घोड़े को कितना चाहता था । सलीम भी अब काफ़ी जवान दिख रहा था लेकिन सलीम के दो बच्चे भी हो गये थे हालाँकि वह राम से 3-4 साल ही बड़ा होगा । राम जिज्ञासा से पुछता है कि क्या उसने उसे पहचाना ।
सलीम मना करता है और कहता है कि उसे याद नहीं है । राम फिर भी उसको सारी बात बताता है और कहता है कि चार साल पहले तुमने इस घोड़े की किन्तु चार हज़ार बोली थी ।
राम फिर क़ीमत पुछता है ?
सलीम जो पहले से ही थका हारा है थोड़ा झल्लाकर
अब क़ीमत चालीस हज़ार कहता है । ख़ैर सायंकाल होते ही सब वापस घर की ओर चल देते है । घूमफिर कर रात को घर मे खाना खाते वह पिता को कहता है |
राम – जुणजा सैजा घोड़ा ओसो था ने मुऐ तोदी ला था बोली ! ऐबे ओसो चालीश हज़ारों का और तोदी ओसो था चोऊ हज़ारों का ।
(बाबा जो मैं वो घोड़ा कह रहा था ना , वो अब चालीस हज़ार का है और उस वक़्त चार हज़ार का था )
बाबा ने कुछ नहीं कहा । राम की आवाज़ मे वो मर्म सुनाई पड़ा जो इतने वर्षों तक भी उसके हृदय मे कही ना कही दफ़्न था । कुछ देर तक ख़ामोशी छायी रही
उसके बाबा रात को खाना खाने के बाद ही सलीम से मिलने चले गये और उनको बोल दिया कि सुबह थोड़ा रूक कर जाना ।
राम ख़ुशी से उठता है और बाबा चालीस हज़ार रूपये उसके हाथ मे थमा देते है और दोनों घोड़ा लेने बाज़ार जाते है । लोगों की भीड़ जमा होती है सब लोग घोड़े की तारीफ़ कर रहे है । राम बेहद ख़ुश था । उसके बाबा चाहते तो कुछ पैसे कम भी करवा सकते थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा ।
इसकी मन मे सदैव जिज्ञासा बनी रहेगी कि बाबा ने ऐसा क्यों किया ?
लेकिन राम तो इतना ख़ुश पहले कभी नहीं था शायद ये उसकी ज़िन्दगी का सबसे बेहतरीन पल था मानो ज़िन्दगी ने उसके आगे हार मान ली हो और वह उसे सब कुछ देना चाहती हो । राम की ख़ुशी की कल्पना शब्दों मे ब्यॉन नहीं की जा सकेगी कि वह कैसा महसूस कर रहा था लेकिन उसके सपनों का सफ़ेद घोड़ा उसे मिल गया था ।