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दुविधा

दुविधा — “lalit Hinrek”

किसान गर्व से कहता था कि मैं अन्न दाता हूं ,

इस राष्ट्र की ताकत हूं , और भविष्य निर्माता हूं ।

पर किसान अपने पुत्रों को अब , ‘किसान’ देखना नही चाहता
अपने खेतो की खुशबूओं को ,
लूटते देखना नही चाहता ।

वो बैलों की जोड़ी तो बस ,
छुटपन मे देखी थी ।

जब बकरियॉ थी, गायें थी ,
और लहराती खेती थी ।

ना पशुओं के झुण्ड है ,
ना वो बकरी वाले है ।

खण्डहर जैसे महल बचे है ,
और जंग लगे ताले है ।

WhatsApp Image 2018-09-20 at 1.15.43 PM

पड़ लिखकर बेटा , बाबू बन जाये
पैसा नाम कमाकर , बस इज्जत दे पाये
खेती को यहॉ मजबूरी माना जाता है ,
दीन हीन की गाथा , मजदूरी माना जाता है ।

नौकरी को सफलता का मानक मोल बैठे है ,
खुशियों को पैसो के तराजू से तौल बैठे है ।

पर ऐक दिन ऐसा होगा , दुविधा ऐसी होगी
ना गेंहू की बलियॉ होगी , भूख आटे की तरसेगी ।

ना गॉव बचे होंगे , ना कोई खेती होगी
मशीन बने मानव की , क्या खूब तरक्की होगी ।

दुविधा मे हूं , फिर क्या सीख दूंगा
ये संस्कृति भी मेरी पीढ़ी तक सीमित है ।

बेटा तू भी पड़ ले , और बाबू बन जा
जब ये भाषा भी इसी जीवन तक जीवित है ।

क्या यही तरक्की की परिभाषा है ,
बस दुविधा मे हूं ।

क्या यही जीवन की अभिलाषा है ,
बस दुविधा मे हूं !!!!

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कुछ तो बदला है !

वो बचपन पहाड़ों का

बाघों की दहाड़ो का

वो बारिश मे काग़ज़ की नावों का

मिट्टी लगाये हर घावों का

वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की

गॉव मे हर जर्जर माले की

याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है ?

जो हर ऑगन सूना सूना है ।

वो लकड़ी के बण्डल , घासों की जोटी

वो छाछ नूण , मक्के की रोटी

बकरी के मेमने की उछल कूद

वो ककड़ी के बेलें , कद्दू के फूल

ऊन कातती चरखों की सॉचे

बॉस की टोकरीयॉ , रस्सी के फॉके

वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की

गॉव मे हर जर्जर माले की

याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है ?

जो हर ऑगन सूना सूना है !!

वो झबरू कुत्ते काले काले

खेतो खलिहानों के रखवाले

वो बैलों की जोड़ी अब

खेत नही जोतती है

और गौशालायें मेरी

बस गायें ही खोजती है

वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की

याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है !

जो हर ऑगन सूना सूना है ।

मशाले जलती थी

तो अंधेरा कम था

बिजली तो आ गयी

बस उजाला कम था ।

मकई , बाजरा , मण्डुआ , चौलाई

कुछ भी देता ना दिखाई

दूध , दही ना , घृत -माखन मेवा

ना पनघट की घाघर सेवा

हर घर है बस ख़ाली ख़ाली

सब तो है बस शहर निवासी ।

वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की

याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है

जो हर ऑगन सूना सूना है !!!!!

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क्या चाहता हूँ ?

मेरी कहानियों में डूबा हुआ

बस बेसुध सा होना चाहता हूँ ।

छू ले जो दिल के ज़ख़्मों को

कोई वो शायर होना चाहता हूँ ।

ईश्क में इस क़दर खोना चाहता हूँ

कि जैसे बस रोना चाहता हूँ ।

मिलती नहीं मंज़िल तो क्या हुआ !

राही हूँ , बस दीवाना होना चाहता हूँ ।

कोई तो आरज़ू करे मेरे मुखौटे को जीने की ,

कोई ऐसा किरदार होना चाहता हूँ ।

मेरे काम को याद कर ले मेरे आने वाले ,

कोई ऐसा गुमनाम होना चाहता हूँ ।

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धारा

मेरा नाम धारा है और ये मेरी कहानी है ।मैं ऐक मध्यम परिवार की लड़की हूँ । मेरा घर छोटे से शहर देहरादून मे है ।मेरे पिता बैंक मे नौकरी करते है और मॉ गृहिणी है । मेरा ऐक छोटा भाई है ।बचपन से परिवार मे लाड़ली रही हूँ । मेरे चचेरे भाईयों की भी मैं इकलौती बहन हूँ । पिता की ट्रान्सफर की वजह से बचपन से ही नयी नयी जगहों पर जाने का मौक़ा मिला । स्कूल के दिनों मे मैं पडाई मे उतनी इण्टेलीजेन्ट नही थी लेकिन मेरा छोटा भाई सोनू बहुत इण्टेलीजेण्ट था । वह हमेशा 90+ स्कोर करता था लेकिन मेरे मार्क्स 70 के आस पास ही अटक जाते थे । मुझे ऐक बार मे समझ ही नही आता था , चार चार बार पड़ती थी तब जाकर कहीं समझ आता था । 12th के बाद bio नही लेना चाहती थी लेकिन पिता का सपना था मे डाक्टर बनू और बेटा इंजीनीयर । हर भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार का बस यही सपना होता है । ख़ैर उनकी आरजूओ के सामने खुद को असहाय पाया और कोचिगं ज्वाइन कर ली । लेकिन फ़ीजिक्स और कैमिस्ट्री सर के ऊपर जाती थी लेकिन मैं फ़ेल होने से इतना डरती थी कि मेरे मन मे ये ख़्याल आते थे कि कही मेरे और सोनू के बीच कोई तुलना ना करे । मैं मॉ बाप को ये बोलते नही सुनना चाहती थी कि उनकी बेटी नालायक है । मैने बहुत मेहनत की और रिज़ल्ट मेरे मुताबिक़ आया । मेरा चयन दिल्ली के ऐक मेडिकल कॉलेज मे हो गया । कॉलेज ज्वाइन करने के बाद भी मुझे दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा । कॉलेज मे भी मुझे समझ नही आता था , घर मे नही बोल सकती थी , कुछ बच्चे शुरूवात के ही दिनों मे कॉलेज छोड़ कर जा चुके थे ।फ़र्स्ट ट्रम ऐग्जाम हुये तो ऐनाटॉमी मे 50 मे से मात्र 2 मार्क्स आये तो घर आकर बहुत रोयी । घर पर नही बता सकती थी कि मुझे समझ नही आता है , डर लगता था कही पापा ये न कहे कि मैं नालायक हूँ , कहीं उनके सपने न टूट जाये , कही उनका दिल न दुखे । या फिर ये न कहे कि तेरा भाई इतना इण्टेलीजेन्ट है और तू कॉलेज छोड़ के आ गयी ।मैने और मेहनत करना शुरू किया , सब कुछ छोड़ के मैने बस पडाई मे ध्यान लगाया । मैं देखने मे ठीक ठाक हूँ तो मुझे हमेशा से अंटेन्शन मिलता रहता था । स्कूल के दिनों से ही मेरे चाहने वालों की लम्बी लाइन थी लेकिन मैने कभी इस चीज़ को सीरीयसली नही लिया । कभी कभी ये देखकर खुश भी होती थी आख़िर मुझे भी सजना ,संवरना अच्छा लगता था , मैं भी लड़की हूँ हर लड़की की तरह मेरे भी सपने थे किसी राजकुमार के । लेकिन मेडिकल की पडाई का बोझ इतना हावी हो गया कि मैं बस किताबो मे ही गुम हो गयी । इनको ही अपनी आशिक़ी बना डाली और कॉलेज मे कौन मुझे देख रहा है इस बात का कभी अहसास तक नही किया बस पडाई की ,मेहनत की । फ़र्स्ट ईयर के ऐग्जाम तक आने तक इतनी पडाई की ,कि मुझे ये भी याद हो गया कि कौन सा शब्द किस पेज पर है ।मेहनत करने से , लगातार प्रयास करने से परिणाम कितने अलग आते है उसका एहसास तब हुआ जब रिज़ल्ट आया । जिस ऐनाटॉमी मे मात्र 2 मार्क्स आये उसमे 84% आये जो पूरी यूनिवर्सिटी मे सबसे ज़्यादा थे। मैं खुश थी और मेरा स्कोर भी अच्छा था । मैं क्लास की चुनिन्दा उन लड़कियों शामिल थी जो अच्छी लड़कियों मे गिनी जाती थी । मैने अपनी कुछ हॉबीज भी डिवलेप की जैसे मैने ख़ाली समय मे ब्लाग लिखना शुरू किया । मैने स्केटिंग करना शुरू किया और गिटार सिखना भी शुरू किया । मैने बिना किसी कोचिंग से काफ़ी अच्छे स्कैचिगं सीख ली और थोडा बहुत गिटार बजाना भी सीख लिया । अब मेरे सपनों की ये छोटी सी दुनिया थी जहॉ मेरे सपनों का राजकुमार बहुत पीछे छूट गया । मैं अपनी पडाई और हॉबीज मे इतना रम गयी की पता ही मही चला की समय कैसे व्यतीत होता चला गया ।फिर धीरे धीरे मेरा रुझान और बढ़ गया पडाई को लेकर ।पॉच साल कैसे बीत गये पता ही नही चला । डिग्री पूरी हुई तो मेरी रैंक पूरी यूनीवर्सीटी मे चौथी थी । ऐक साधारण से दिमाग़ वाली लड़की अब बिल्कुल बदल गयी थी । मेरे माता पिता को मेरी उपलब्धि पर गर्व था । मैं कालेज के बाद आगे की पडाई जारी रखना चाहती थी लेकिन इसी बीच मेरे दूर के रिश्तेदार ने ऐक लड़के का रिश्ता भेजा । लड़के का नाम राहुल था वह आई० आई० टी से इंजीनीयर और आई० आई० ऐम अहमदाबाद से ऐम०बी०ऐ० था । घर मे बात पहुँची तो इतना बड़ा रिश्ता होने की वजह से ऐक मध्यम वर्गीय परिवार कभी नही गवाऐंगा और ऊपर से उसकी अच्छी नौकरी भी थी , अच्छा ख़ासा कमाने वाला था । पिता ने मुझसे जाने वग़ैर हॉ कर दी । मेरे ऊपर दबाब बनाया गया कि इतना बड़ा ख़ानदान है , लड़का इतना कमाता है और ऐसा रिश्ता कभी नही मिलेगा वग़ैरह वग़ैरह ।

ऐक बार फिर मेरे सामने माता पिता के सपने आ गये । वो इतने खुश थे कि मुझे हॉ करनी पड़ी । सुकून की बात ये थी कि राहुल बहुत हैण्डसम लड़का था । मेरे सपने जो बचपन के राजकुमार के कहीं खो से गये थे मैं उनको राहुल मे तलाशने की उम्मीद करने लगी । ख़ैर मैने सपने बुनना शुरू कर दिया । मैं खुश थी क्योंकि सब लोग बोलते थे की राहुल और धारा की जोड़ी दुनिया की बेस्ट जोड़ी होगी ।

(धारा की ऐक स्कैचिंग जो 2014 मे बनायी )

ख़ुशी ख़ुशी 2014 मे हमारी शादी हो गयी । मैं बहुत खुश थी । पापा ने हमे कुछ पैसे भी दिये थे ताकि मुझे कभी कोई दिक़्क़त महसूस ना हो । मैं देहरादून मे ही थी , राहुल इंदौर मे था । शादी के कुछ दिनों बाद मैं राहुल के साथ इंदौर चली गयी । बस कुछ ही दिन हुये थे राहुल छोटी छोटी बातों पर डाँटना शुरू कर देता था । हर पती पत्नी मे लड़ाईयॉ होती है लेकिन हम छोटी छोटी बातो को लेकर ही लड़ने लग जाते थे ।2-3 महीने ऐसे ही चलता रहा , मैं राहुल को बदलते व्यवहार को समझ नही पा रही थी । फिर उसने मुझे सास ससुर के पास देहरादून छोड़ दिया । मैं नौकरी करना चाहती थी लेकिन राहुल नही चाहता था की मैं नौकरी करूँ । ख़ैर मैं सास ससुर के पास रही और मुझे तो खाना बनाना भी नही आता था , धीरे धीरे सब काम सीखा और उनकी सेवा की ।मैं चुप रहती थी और सोचती अगर राहुल मुझसे दूर रहकर खुश है तो ऐसा ही सही । 2-3 महीने हो गये लेकिन राहुल ने कोई सुध नही ली लेकिन जब घर वालों का प्रेशर पड़ा तो राहुल मुझे लेने आ गया । मुझे लगा की अब राहुल थोडा सा बदल गया होगा । लेकिन वह शायद खुश नही दिख रहा था । हमने ज़्यादा बातचीत नही की और इंदौर आ गये लेकिन फिर वही सब शुरू हो गया । वह छोटी छोटी बातो मे मुझे डिमोरिलाइज कर देता था । फिर वही हुआ उसने मुझे फिर देहरादून छोड़ दिया । मैं अंदर से टूट गयी थी , मैं घर वालों को नही बताया मैं नही चाहती थी की उनको कोई टेनंशन हो जाये । मैने अपने लिये जॉब तलाशना शुरू कर दिया । इसी बीच राहुल गुड़गाँव शिफ़्ट हो गया । मैने भी अपने लिये गुड़गाँव मे नौकरी ढूँढ ली और राहुल से पूछा कि मुझे आना चाहिये ?

उसने मना किया लेकिन मैं फिर भी गयी लेकिन उसने क्या किया कि वह गुड़गाँव से शिफ़्ट होकर अपनी चचेरी बहन के यहॉ दिल्ली मे विश्वविघालय शिफ़्ट हो गया ।दिसम्बर का महीना था मुझे भी दीदी के यहॉ आना पड़ा । मुझे ठण्ड बहुत लगती है और मैने जब आफिस जाना शुरू किया तो सुबह पॉच बजे उठकर तैयार होना पड़ता था । दिसम्बर मे दिल्ली की सर्दी मे सुबह पॉच बजे उठकर निकलना और रात को साढ़े नौ बजे घर पहुँचना । ये शब्दों मे ब्यॉ नही किया जा सकता। राहुल का मेरे साथ तो रिश्ता बदतर हो गया था अब वह रात भर कज़िन बातें करते रहते और मैं ठीक से सो भी नही पाती । वह जानबूझकर ऐसा करने लग गया ताकी मैं वापस चली जाऊँ , मैने छ: महीने तक ऐसी ही परिस्थितियों मे काम किया फिर मेरी जॉब छुड़वा दी । बाद मे मैने राहुल से पूछा कि मुझे ऐक डिप्लोमा करना है लेकिन राहुल ने साफ़ मना कर दिया ।यहॉ तक की उसने मेरी पडाई और स्टडीज़ , मेरे परिवार के बारे मे भी भला बुरा कहा । मैने अपना सामान उठाया , मैं पॉच बजे निकली थी , राहुल ने ऐक बार भी कॉल नही की ना कोई मैसेज किया ।मैं रात के 9 बजे तक इंतज़ार किया मुझे लगा कि शायद लेने आ जायेंगे ।लेकिन नही आये तो मैं घर वापस आ गयी ।बाद मे पापा ने मुझे डिप्लोमा करवाया ।चार महीनों तक अलग रही लेकिन राहुल ने कभी कोई कॉन्टैक्ट् नही किया ना उसकी फ़ैमिली ने । बाद मैं मुझे लगा कि मेरी ग़लती है शायद कुछ कमी रह गयी है । मैने सामान पैक किया और उसके पास वापस आ गयी ।मैं नयी उम्मीद के साथ उसका दिल जीतना चाहती थी ।लेकिन उस दिन के बाद राहुल ने मुझे मानसिक तौर पर प्रताड़ित करना शुरू किया ताकि मैं कुछ ऐसा क़दम उठाऊँ कि वापस चली जाऊँ ।मैं ग़लती करने से भी डरने लग गयी पता नही कौन सी बात पर राहुल ग़ुस्सा कर दे ।अब वह छोटी छोटी बातो को भी अपनी मॉ और बहनों से शेयर करने लग गया और फिर वो मुझे डाँटते थे ।मुझे तो अपनी ग़लती का भी पता नही होता था । मैं जॉब ढूँढ रही थी तो वो साफ़ मना कर देते थे कि यहॉ पैसे कम है, यहॉ टाइमिग् सही नही है वग़ैरह वग़ैरह । अब महीने तक हो जाते थे कि हमारी बात नही होती थी । लेकिन मैं हारकर सॉरी बोल देती थी इतना गिरा (low) महसूस करती थी और आत्मविश्वास तो ग़ायब हो गया था ।मुझे अब खुद पर भी भरोसा नही था , क्योंकि राहुल मुझे कई बार ऐसा महसूस करवाते थे कि मुझे कुछ नही आता और मैं किसी लायक ही नही हूँ ।वह इस तरह से बात करते थे कि शक्ल देखी है अपनी कभी …..। इससे मेरे अन्दर का आत्मविश्वास डगमगा गया ।मेरी जो सैलेरी मिलती थी उसके ऐक ऐक पैसे का राहुल हिसाब मॉगता थे , और अपनी सैलेरी आज तक कभी बताई भी नही ।इतना सब होने के बाद भी मैं घर मे नही बता पायी और राहुल शक करते थे कि कहीं मैने कोई बात अपने घर तो नही बता दी ।

हर दिन ऐसा ही चलता था मैं इतनी डिप्रेशन मे चली गयी की मुझे बुरे ख़्याल आने लग गये । मैं किसी से शेयर नही कर पाती थी । मुझे कई बार आत्महत्या के ख्याल आये । लेकिन खुद को रोक देती थी । ऐक दिन मैं इन सब चीज़ों से इतना परेशान हो गयी कि मैने हाथ काट दिया ।राहुल भागा भागा मुझे हॉस्पिटल ले गया । वह रोने लग गया और उसने कहा की मेरे वगैर कैसे जियेगा , उसने मेरा हाथ थामकर एहसास कराया कि वह मुझसे कितनी मोहब्बत करता है । रात भर प्यार से बात की । अगले दिन घर वापिस आ गये । राहुल का व्यवहार ऐक दम बदला हुआ था । उसने मुझे इतने प्यार से ट्रीट किया कि मुझे लगा कि अब सब ठीक हो जायेगा । फिर चार पॉच दिन बाद उसने कहा कि हम कुछ दिनों के लिये देहरादून चलते है । मैं 5 अगस्त 2017 को उसके साथ देहरादून आ गयी । उसने मुझे अपने घर की बजाय मेरे घर छेड़ा और खुद यह कहकर वापस आ गया कि वह 2-3 दिन मे वापस आ जायेगा । 7 अगस्त को मॉ ने राखी के दिन मेरे हाथो की पट्टीयॉ देख ली लेकिन मैने कहा गेट मे लग गयी ।

लेकिन उनको शक हुआ तो उन्होंने राहुल को कॉल किया , राहुल ने सब बताकर यह कह दिया की अब वापस मत भेजना । उसके मॉ बाप ने भी यही कहा ।

7-8 महीने बाद वह डिवोर्स पेपर के साथ आया । पापा ने उससे कारण जानना चाहा तो उसने मेरे चरित्र को लेकर सवाल उठाये वग़ैरह वग़ैरह ।मेरे पिता ने क़ानूनी कार्यवाही करनी चाही लेकिन मैने मना तर दिया ।मैं सिर्फ़ ऐक जोड़ी कपड़े के साथ वापस आयी । मैं अन्दर से इतना टूट गयी की मुझे कोई उम्मीद नज़र नही आती । आज मेरी उम्र 30 साल है और 5 अगस्त को हमे अलग हुये ऐक साल हो गया है । मैने इस ऐक साल मे अपनी आत्मग्लानि को महसूस किया कि मैं सब कुछ भूल कर ऐक कायरतापूर्ण क़दम उठा रही थी वो भी उस आदमी के लिये जो मुझे डिजर्व ही नही करता ।

मैने ऐक क्लीनिक मे काम करना शुरू किया और पडाई फिर से जारी करनी शुरू कर दी । मैने अपने आप को हील किया और मज़बूत बनाने का प्रयास किया ताकि मैं लड़ सकू अपनी बूरी यादों से ।

मैं ये कहानी इसलिये शेयर कर रही हूँ कि जब मैं इतना पड़ लिखकर इस दौर से गुजर चुकी हूँ तो सोचिये भारत मे रहने वाली उन दूरदराज़ की महिलाओं के साथ क्या क्या नही होता होगा ।मैं वापस अपनी दुनिया मे लौट गयी कितनी धारा ऐसी होगी जो कभी उबर नही पाती होगी !

यही सब बातें ज़ेहन मे बार बार मुझे झकझोर देती है । मैंने अभी ऐक दो गॉवर्नमेंट के ऐग्जाम निकाले है इंतज़ार कर रही हूँ कि इण्टरव्यू भी अच्छा हो जाये । शायद किसी की दुआ काम आ जाये और राहुल का फ़ैसला बाद मे डिसाइड करूँगी ।

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पहाड़ों का बचपन

 

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रात भर मीठी बारिश हो रखी है , आज खेतों की जुताई के लिये बडि़या दिन है , सुबह – सुबह राम के पिता ने राग अलापा । राम और श्याम दोनों भाई  सुबह जल्दी उठना पसन्द नहीं करते थे लेकिन उनकी मॉ भोर तले ही गाय दुहने चली जाती थी । गाय दूह कर वापस आकर कुछ दूध को बाल्टी मे डाल देती थी जिसकी दही जमाई जाती थी बाकि दिनचर्या मे आने वाले चायपान इत्यादि के लिये अलग रख देती थी । सुबह के चार साढ़े चार बजे रोज़ मॉ का यही काम था । पॉच बजे के क़रीब पिता जी भी उठ जाया करते थे और चाय बनाने मे लग जाते थे । पिता चाय बनाते थे तथा इतने मे मॉ जमाई गयी दही को लकड़ी की बनी ऐक हाण्डी मे डालकर मठ्ठा बनाने की तैय्यारी शुरू कर देती थी ।

दोनों लोग फिर चाय पीते और पता नहीं सुबह सुबह क्या बातचीत करते रहते , शायद उनके पास हज़ारों बातें थी जो वो हमेशा ऐक दूसरे से कहते रहते थे । इतना प्रेम था दोनों मे । फिर 6 बजे के क़रीब मॉ मठ्ठा बनाना शुरू कर देती , घिघरी की रस्सी बँधीं हुयी और फिर शुरू ….घर्र घर्र घर्र घर्र !

राम को इस आवाज़ से नफ़रत थी क्योंकि उसकी वो सपनों मे खोई हुयी नींद ख़राब हो जाती थी । लेकिन वो बिस्तर मे पड़ा ही रहता था उठता नहीं था और उसे देर तक सोना पंसद था । उसका भाई श्याम भी उतना ही आलसी था । लेकिन 6 बजे के क़रीब सुबह सुबह पिता आवाज़ लगाते है ,

“ओऐ ! उठ जाओ दोनों आज तीन दिन के बाद आसमान साफ़ हुआ है “

श्याम ने तुरन्त आवाज़ लगाई

“पापा जी आज मे डंगर (पशु) छोड़ने जंगल नहीं जाऊँगा , कल भी मैं ही गया था , आज भाई जी जायेगा “

 

और फिर क्या ! इसी बात पर दोनों भाइयों की लड़ाई शुरू ।

“क्यों मैंने नी छोड़े क्या दो दिन लगातार “ मैं नहीं जा रहा – राम बोला ।

पिता ने उसे चुप कराते हुये बोला अरे बेटा तू बड़ा है यहीं तो जाना है छोड़ दे फिर दोपहर तप जायेगी । गाय भूखे मर जायेगी अन्दर । श्याम तब तक बैलों को खेतों मे ले आयेगा आज मौसम अच्छा है ।

राम ने मुँह बनाया और उठकर रसोई मे घुस गया जहॉ उसकी माँ मठ्ठा बना रही थी । राम मुँह सिकोड़ कर बोला

“आमा जी , मैं नहीं जा रहा ….”

मॉ ने दुलारा और बोला कि

“बेटा चला जा , देख तेरे लिये मे ताज़ा मक्खन भी रखूँगी फिर “

बस राम यही तो चाहता था की उसको कुछ काम के बदले कुछ खास मिले ।वह भागा गोशाला की ओर , किवाड़ों को खोला और फिर 3-4 गाय 3-4 बछड़े , 2-4 जवान बैल जो अभी हल चलाने को तैयार नहीं थे । ऐक बैल की जोड़ी उसने नहीं खोली जो आज खेतों की जुताई करने वाली थी । श्याम और उसके पिता भी पहुँचे और दोनों बैलों को खोला खेतों की ओर ।

पिता बोले

“जल्दी जा बेटा और वापस आजा जल्दी , देखो लोगों ने तो दो दो बार खेतों की जुताई कर भी ली “

आज मौसम अच्छा था , स्वच्छ नीला गगन ऐवम पहाड़ों की चोटियों मे बर्फ़बारी पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी ऐकदम स्वर्णिम ! बेहद खुबसूरत दृश्य !

गॉव के सभी लोगों ने सुबह सुबह अपने बैलों की जोड़ियाँ खेतों मे पहुँचा दी थी और लाल , काले , सफ़ेद मज़बूत कन्धों वाले बैलों ने ऐक अलग समा बॉध दिया था ।

उधर राम अपने डंगर (पशु) लेकर चल पड़ा उनको जंगल की ओर छोड़ने । 7 बजे का वक़्त हो गया होगा , राम वापस आ गया आज वो पशुओं को ज़्यादा दूर नहीं छोड़कर गया बल्की नज़दीक ही छोड़कर भाग आया था । पशुओं को  उनको रास्ते  याद थे वो रोज़ एक ही रास्ते से जाते और शाम तक स्वयं ही वापस भी आ जाते थे बस कभी कभार नहीं आते थे तो उनको लेने भी जाना पड़ता था । फिर कई बार वो जल्दी भी वापस आ जाते थे और फिर दूसरों की फ़सलो को नुक़सान भी पहुँचाते थे , इसका भी ध्यान रखना पड़ता था । कई बार पशुओं के नुक़सान की बजे से लड़ाइयाँ तक हो जाती थी ।राम भागा भागा वापस आया , श्याम और उसके पिता ने तब तक बैलों को जोत के लिये तैयार कर रखा था । जैसे ही राम पहुँचा मॉ ने आवाज़ लगाई

“आजा बेटा ! पहले रोटी खा ले ठण्डी हो गयी फिर चले जाना “

श्याम और उसके पिता खा चुके थे । राम भागकर जल्दी से वापस आया क्योंकि उसे अपनी रिश्वत मक्खन का भी इंतज़ार था । वो रसोई मे घुसा मॉ ने कटोरी मे उसके लिये ताज़ा मक्खन रखा था और मक्का की रोटी बनी थी । ऐक दूध का गिलास और मक्खन लगी मक्के की रोटी ! वाह !

राम ख़ुश था उसे लगा की सिर्फ़ उसकी ख़ातिरदारी हो रही है लेकिन मॉ तो मॉ है , उसने श्याम के लिये भी उतना ही मक्खन रखा था लेकिन श्याम को बोला था कि वो राम को ना बताये वरना राम रूठ जायेगा  ।जल्दी से खाना खा कर फिर राम भी खेतों की ओर भाग गया । पिता ने ऐक खेत मे हल चला दिया था अब खरपतवार वग़ैरह के लिये वह जोल लगवाने के लिये तैयार थे । जोड़ लकड़ी का बना (सरावन /सरण जुते हुए खेत की मिट्टी बराबर करने का पाटा) ऐक यंत्र है जिसमे ऐक पकड़ने के लिये हैण्डल रहता है जो बीचों बीच रहता है । राम और श्याम दोनों बेहद ख़ुश थे की उनको मौक़ा मिलेगा बैठने का , जोल के ऊपर । यह किसी झूले झूलने से कम नहीं था ! हीरा और मोती बैलों की वो जोड़ी और जोल को खींचते हुये आगे बड़ते जाते , उस पर पिता ने अचानक उनको रोक दिया और बोले

“आ जाओ जल्दी ! बैठो “

राम व श्याम भागे और ऐक बॉयी ओर और ऐक दिया ओर । दोनों ने बैलों की पूँछ पकड़ी ओर बैल दनादन आगे बड़ते चले गये । राम और श्याम दोनों ख़ुशी से चिल्ला रहे थे , दोनों ज़ोर ज़ोर से हँस रहे थे और जब तक पूरा खेत समतल नंही हुआ दोनों ने ख़ूब मज़े किये । 8:30  बज गये थे , धूप लग चुकी थी और मॉ ने आवाज़ लगायी ।

“ओऐ ! आ जाओ अब , स्कूल के लिये देर हो जायेगी , पानी गरम कर रखा है नहा लो “

राम भागकर आया , नहाने चला गया । बहुत ख़ुश था क्योंकि आज उसने ख़ूब मस्ती की । 9:00  बज गयी , स्कूल की पहली घण्टी बज गयी । दोनों जल्दी से तैयार हो गये ताकि दूसरी घण्टी 9:30  से पहले स्कूल पहुँच जाये ।

कुछ ऐसा था वो पहाड़ों का बचपन , मैंने भी जिया है !जहॉ खिलौने रोबोट नहीं हमारे जीवन से जुड़े पहलू थे । खेतों की हरियाली और मिट्टी की सुगन्ध । जीवन मे सच्चाई , निर्मलता और बचपन का भोलापन सब बेहद हृदय स्पर्शी है । आज भी कभी ऑंखें बन्द करता हूँ तो याद आती है कि कैसे जीवन ज़्यादा सरल ऐवम खुबसूरत था जहॉ सॉसो को शुद्ध हवा , पीने को स्वच्छ जल मुफ़्त मे मिलता था । आज तो हवा भी पैसों से प्यूरीफाई कर रहे है , आरों से पानी ताकि जीवन का क्रम कुछ ज़्यादा दिनों तक बना रहे ! समय का चक्र है और यादों का सहारा , जो लिये जा रहा है ।

वो घाटी का बचपन और वो घाटी के वासी , दोनों मेरे हृदय के सबसे क़रीब पहलू है ।

 

 

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प्रश्न

“ प्रश्न “ – (The Question )

कुछअधुरे ख़्वाब तो होगें ?

कुछ अधुरे सवाल तो होगे ?

क्या है वो पल जिसके लिये तुम

सारा ज़मीं ऑसमा ऐक कर सकते हो ,

क्या है वो पल जिसके लिये तुम

हज़ार बार मर कर भी लड़ सकते हो !

सामने आइने के पुछ लो ये प्रश्न कि

क्या कर रहे और कहॉ जा रहे हो ?

मिल गये जबाब तो नये सवाल लो ,

ख़त्म है ख़्वाब तो नये ख़्वाब लो ..।।।

ग़लतियों मे सुधार की ज़मीं तलाश लो ,

निशब्द ख़्वाब के लिये फिर नयी मशाल लो ,

मैदान मे दृढ़ संकल्प लो इस जंग का ,

नया रंग रक्त का और हृदय उंमग का ,

तप की स्याही से श्रम की लेखनी तक ,

सफल हुये हर ख़्वाब की हर कहानी तक ,

पुछते चलो बस पुछते चलो ,

हर दफ़ा उस आइने से ये प्रश्न पुछते चलो !

क्या है वो पल जिसके लिये तुम

सारा जमी ऑसमा ऐक कर सकते हो …..।

…….हज़ार बार मरकर भी लढ़ सकते हो …।।।

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A White Horse (story of a time)

(यह ऐक छोटी सी कहानी है जो बहुत वर्षों पहले मेरे ऐक दोस्त ने मुझे सुनाई थी । वर्षों तक ज़ेहन मे रहने के बाद इस कहानी को आप सभी तक पहुँचा रहा हूँ । उम्मीद करूँगा की इसका असर आपको इसे और आगे पहुँचाने को मजबूर करेगा )

राम ऐक छोटे से क़सबे में रहता था जो कि देहरादून से लगभग 200km दूर यमुना घाटी के की तलहटी में बसा है । चारों और सुन्दर पर्वत और इसकी घाटी मे बहती निरन्तर दो नदियों कि जलधारा और स्वर्ग सा बसा ये बेहतरीन क़स्बा ।

यहॉ के लोग तेज़ तर्रार किन्तु सुविधाओं से वंचित है फिर भी हिम्मत ना हारने वाले मेहनती है । राम ऐक 12 वर्ष का मेधावी ऐवम जिज्ञासु लड़का है जो अपने मासूमियत से भरपूर उड़दंगो से ना केवल अपने माता पिता अपितु गली मोहल्लों को तक को ख़ूब परेशान रखता था ।

ये क़स्बा टौंस नदि की तलहटी मे बसा है तथा राष्ट्रीय राजमार्ग इसको हिमाचल ऐवम उत्तराखण्ड से जोड़ता है । वाहनों की आवाजाही लगी रहती है जिसके चलते छोटी सी मार्केट मे काफ़ी लोगों को रोज़गार भी मिलता है ।

इसी रास्ते के चलते वन गुर्जर अपने मवेशियों के साथ गर्मीयो के शुरू होते ही मैदानों से ऊँचे पहाड़ों की ओर चलते है तथा बर्फ़बारी से पहले ही फिर इसी रास्ते मैदानों की ओर पलायन करते है ।

इनके पशुओं की संख्या काफ़ी होती है तथा इसमें गाय , भैंसे , बकरियाँ और घोड़े प्रमुख होते है । अभी गर्मियाँ शुरू हो चली थी स्कूल अब बन्द थे और राम प्रत्येक दिन अपने मित्रों के साथ नदी मे नहाने चला जाता था । वन गुर्जरों का आना शुरू हो चला था और राम और उसके साथी छोटी नदी मे इन पशुओं को ख़ूब परेशान करते थे । वो कभी बकरियों के बच्चों के पीछे भागते तो कभी पानी मे नहा रही भैंसों को नहलाते । हर दिन इसी तरह मौज मस्ती मे बीत जाता ।

4-5 दिनों के बाद एक वन गुर्जर का झुण्ड आया जिसमें बकरियाँ और घोड़ों की संख्या ज़्यादा थी । राम, मृनल , सत्यानंद और उसके कुछ साथी आज भी घर से खाना खाकर खड़ी धूप मे नदी किनारे पड़ी पानी की छाबर बना कर उसमे लोटपोट आराम फ़रमा रहे थे तभी इस झुण्ड ने उनकी इस अय्याशी मे बाधा डाली । इन गुर्जरों से यहॉ के मूल बाशिन्दें कभी गाय ,भैंस , बकरीयॉ और घोड़े इत्यादि उचित दामों मे ख़रीद लिया करते थे । इस घोड़ों के झुण्ड मे तो ऐक से बड़कर ऐक घोड़े थे और इनमें से सबसे ख़ूबसूरत था ऐक सफ़ेद जवान घोड़ा जो अभी भरपूर जवान भी नहीं हुआ था लेकिन उसके सफ़ेद मखमली बाल उसकी गर्दन से ऐसे लहराते मानो परियों ने मोतियों की मालाओं को ऐक साथ जोड़ दिया हो , उसके खुर्रो मे भी लम्बे बालों का ऐक गुच्छा था तथा इस घोड़े को देखकर राम और उसके साथी मानो ख़ुशियों कि चौकड़ी भर रहे थे ।

सत्यानंद ऐवम मृणाल क़स्बे के काफ़ी अमीर परिवारों से आते थे ऐवम इनके परिवारों मे पहले से घोड़े मौजूद थे ।उन दिनों पशुधन सम्पदा परिवार की शान थी और परिवार की हैसियत दूध-दही-घृत माखन मेवा से ही की जाती थी ।राम तो ऐक ग़रीब परिवार से था हालाँकि राम अपने मित्रों मे सर्वाधिक बुद्धिमान ऐवम तेजस्वी था लेकिन जब भी वो लोग अपने घोड़ों के बारे मे बात करते तो वो चुप हो जाता ।उसकी भी जिज्ञासा जाग जाती की मेरे पास भी ऐक घोड़ा होता तो मैं भी कुछ हेकड़ी दिखा पाता और इतना ख़ूबसूरत घोड़ा तो किसी ने पहले कभी देखा ही नहीं । दिन भर इन लोगों ने नदी के किनारे ख़ूब मस्ती की और दिन भर घोड़ों के नामो पर चर्चा की । कोई चेतक कहता तो कोई कुछ ।

राम ने मन ही मन सोचा की क्यों ना इस घोड़े को ख़रीदा जाये । राम जिज्ञासापूर्ण घोड़े के मालिक के लड़के सलीम के पास गया जिसने उस वक़्त घोड़े को पकड़ रखा था । राम ने सलीम को पूछा “भाई कितने का है ये घोड़ा “

सलीम – चार हज़ार का ।

चार हज़ार उन दिनों बड़ी रक़म मानी जाती थी और राम ने चार हज़ार कभी सोचे भी नहीं थे देखना तो बहुत दूर की बात थी और वह हक़ीक़त जानता था यहॉ तक कि राम कभी कभी स्कूल तक नहीं जाता था क्योंकि उसके पिता स्कूल की फ़ीस भी कई बार टाईम से नहीं दे पाते थे जो कि मात्र पचास रूपया प्रति माह होती थी । राम मन ही मन बेहद निराश था लेकिन उसने इस शिकन को चेहरे पर प्रतीत नहीं होने दिया । सब मित्र बेहद ख़ुशी ख़ुशी घर चले गये ।

घर पंहचते ही राम ने अपने पिता से पूछा –

“बाबा घोड़ा घिनी ला , होद्द एसो

बाठकुणा “

(बाबा क्या आप मेरे लिये घोड़ा ख़रीदेंगे बेहद ख़ूबसूरत है )

इस पर पिता मुस्कराहट के साथ पुछते है ।

“कैथा ओसो ऐ , आमारे कैथुके रोआ लागी घोड़ा “

(कहॉ है , और हमारे किस काम का है घोड़ा )

“गुजरो केंई ओसो है , ला बाबा इनी केईं बाद्दे केईं है घोड़ा , आमे भी उण्डा घीनु ले “

(गुर्जर के पास है बाबा , इन सब लोगों के पास घोड़ा है हम भी ख़रीदते है ना बाबा )

“बाबा – केतरे का लाई देई “

(कितने का दे रहे है ?)

राम – चोऊ हजारो का

(चार हज़ार का )

बाबा – बेटा रूपये ने बेटा रूपये ने ओथी ।

(बेटा पैसे नहीं है )

राम – उण्डा घिनुले ला बाबा हद्द ओसो बोडिया घोड़ा ।

(बाबा ख़रीद लो ना बहुत अच्छा घोड़ा है )

बाबा – रूपये ने ओथी बेटा हेभी , हेभी ने घिनीओन्दा ।

(पैसे नहीं है बेटा अभी , अभी हम नहीं ख़रीद पायेंगे )

राम – तुमे बोलो ऐश्नो ही , तुमे ने कोदी ने घिन्दे ।

(आप तो हमेशा ऐसे ही बोलते हो , कभी नहीं ख़रीदते हो )

इन्हीं शब्दों के साथ मानो उसके सपने चूर हो गये हो , ऑसुओ की जलधारा प्रवाहित हो चली लेकिन पिता तो असहाय है कर भी क्या सकते थे सिवाय इसके कि वो बोलते है कि जब पैसे होगे तो ले लेंगे । वह फूट फूट कर रोने लगा जैसे उसके सारे सपने यहीं ख़त्म हो गये हों , जैसे उसका जीवन ही व्यर्थ चला गया हो कि वो आख़िर पैदा ही क्यों हुआ !

लेकिन पिता ने उसे रोने दिया वो जानते थे कि दर्द क्या है क्योंकि उनके संघर्षों ने , जीवन के कटु अनुभवो ने उन्हें ज़ख़्मों के अलावा कभी कुछ दिया ही नहीं ।

ऐक नयी सुबह होती है लेकिन राम अभी भी नाराज़ है रात का खाना भी नहीं खाया है हालाँकि सलीम और उसका जादुई खुर्रो वाला घोड़ा भोर कि पहली पहर मे ही कूच कर गये है ऊचें पहाड़ों की ओर जहॉ उसको अपने मवेशियों के लिये हरी हरी घास पर्याप्त मात्रा मे मिलेगी । राम बहुत नाराज़ है उसके बाबा उसको मनाने का प्रयत्न करते रहते है । 1-2 दिन बाद फिर उसकी बंदमाशियो भरी ज़िन्दगी होती है अब वह सब कुछ भूल गया है। मानो कोई घोड़ा उसकी ज़िन्दगी मे था ही नहीं ।

इस साल राम मेधावी होने के चलते नवोदय विद्यालय के प्रवेश परिक्षा मे सलेक्ट हो जाता है और अब वह 6-12 तक की पडाई वही करेगा ।उसके साथ साथ सत्यानंद व मृणाल भी चयनित होते है ।सब के सब गॉव से बेहद दूर उत्तरकाशी चले जाते है ।

चार साल बाद उसकी दसवीं की परिक्षाऐ सम्पन्न होती है उसके परिणाम आने तक वह अपने मित्रों के साथ गॉव वापस आया है । दसवीं का परिणाम आता है वह प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण हुआ है और उसके सब मित्रों मे सबसे अधिक अंक है ।

मई माह का प्रथम सप्ताह है वन गुर्जरो का आना जाना फिर से शुरू हो चला है । बचपन की भॉती अभी भी सब दोस्त दिन मे खाना खाने के बाद नदी मे नहाने चले जाते है । और वो लोग देखते है सलीम और उसके मवेशियों का झुण्ड फिर से आया है । वही घोड़ा जो चार साल पहले उन्होंने देखा था आज भी है लेकिन ज़्यादा मज़बूत , ज़्यादा जवान और ज़्यादा ख़ूबसूरत । किसी दोस्त को ये नहीं मालूम था की राम उस घोड़े को कितना चाहता था । सलीम भी अब काफ़ी जवान दिख रहा था लेकिन सलीम के दो बच्चे भी हो गये थे हालाँकि वह राम से 3-4 साल ही बड़ा होगा । राम जिज्ञासा से पुछता है कि क्या उसने उसे पहचाना ।

सलीम मना करता है और कहता है कि उसे याद नहीं है । राम फिर भी उसको सारी बात बताता है और कहता है कि चार साल पहले तुमने इस घोड़े की किन्तु चार हज़ार बोली थी ।

राम फिर क़ीमत पुछता है ?

सलीम जो पहले से ही थका हारा है थोड़ा झल्लाकर अब क़ीमत चालीस हज़ार कहता है । ख़ैर सायंकाल होते ही सब वापस घर की ओर चल देते है । घूमफिर कर रात को घर मे खाना खाते वह पिता को कहता है |

राम – जुणजा सैजा घोड़ा ओसो था ने मुऐ तोदी ला था बोली ! ऐबे ओसो चालीश हज़ारों का और तोदी ओसो था चोऊ हज़ारों का ।

(बाबा जो मैं वो घोड़ा कह रहा था ना , वो अब चालीस हज़ार का है और उस वक़्त चार हज़ार का था )

बाबा ने कुछ नहीं कहा । राम की आवाज़ मे वो मर्म सुनाई पड़ा जो इतने वर्षों तक भी उसके हृदय मे कही ना कही दफ़्न था । कुछ देर तक ख़ामोशी छायी रही

उसके बाबा रात को खाना खाने के बाद ही सलीम से मिलने चले गये और उनको बोल दिया कि सुबह थोड़ा रूक कर जाना ।

राम ख़ुशी से उठता है और बाबा चालीस हज़ार रूपये उसके हाथ मे थमा देते है और दोनों घोड़ा लेने बाज़ार जाते है । लोगों की भीड़ जमा होती है सब लोग घोड़े की तारीफ़ कर रहे है । राम बेहद ख़ुश था । उसके बाबा चाहते तो कुछ पैसे कम भी करवा सकते थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा ।

इसकी मन मे सदैव जिज्ञासा बनी रहेगी कि बाबा ने ऐसा क्यों किया ?

लेकिन राम तो इतना ख़ुश पहले कभी नहीं था शायद ये उसकी ज़िन्दगी का सबसे बेहतरीन पल था मानो ज़िन्दगी ने उसके आगे हार मान ली हो और वह उसे सब कुछ देना चाहती हो । राम की ख़ुशी की कल्पना शब्दों मे ब्यॉन नहीं की जा सकेगी कि वह कैसा महसूस कर रहा था लेकिन उसके सपनों का सफ़ेद घोड़ा उसे मिल गया था ।

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उड़ान

उड़ान – ललित हिनरेक

तुम equality कि बात करते हो

तुम revolution कि बात करते हो

तुम देशभक्ति कि बात करते हो

और तुम बदलाव कि बात करते हो

यहॉ तक कि तुम विकास की बात करते हो

वो भी तब जब तुम सब सुविधा से संचित हो ।

मैंने क्या देखा कि तुमने तो बस पाले बदले ,

कपड़े बदले , खोल बदला और बस घोटाले बदले ।

ये वो है जो जिनके मॉ बाप ने दिहाडी मज़दूरी की है ,

ये वो है चन्द पैसों नो जिनकी सारी ख़्वाहिश पूरी की है ।

तुम देखना जब ये बदलेंगे तो वो revolution होगी ,

जिसकी तुमने कपट इरादों से कभी पुरजोर वकालत की थी ।

तुम देखना इनके सपनों से ही ख़ुशहाली आयेगी ,

जो तुम्हारी उस equality की लढियॉ लगाएगी ।

जिसकी रोशनी से जगमग ना सिर्फ़ ऐक घर होगा बल्कि

वो भी होगें जिनके सपनों मे घनघोर अंधेरे नज़र आते है ।

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मैं जाति हूँ (Castiesm )

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मैं जाति हूँ (Castiesm )

मैं ब्राह्मण हूँ , सर्वोच्च ज्ञानी हूँ वेदों का
भिक्षु हूँ लेकिन मालिक हू ईश्वर के निर्देशों का ।

कालान्तर में तुम सब मानव में , सर्वोच्च कहलाऊँगा
देवताओं से सीधे बात बस मैं ही कर पाऊँगा ।

तुम सब बलवानो को राजपाट का , सौभाग्य दिलवाऊँगा
कमज़ोरों से पूर्व जन्म के पापों को धुलवाऊंगा ।

मैं राजपूत हूँ , बस राजयोग ही पॉऊगा
राजा का बेटा हूँ तो बस राजा ही कहलाऊँगा ।

बुद्धी ना भी हो तो , ब्राह्मण मेरे दरबारी होगे
सेना होगी , नौकर होगे और मेरे व्यापारी होगे ।

कालान्तर मैं सदैव , यूं ही बलवान रहूँगा ,
बाहूबली व बलशाली वो राजपूत रहूँगा ।

मैं दलित हूँ , मैं ग़ुलाम हूँ जजमानो का
भोग रहा मैं दण्ड विधी का और पूर्व जन्म के पापों का ।

मैं अछूत हूँ , छाया का अभीशापी हूँ
मैं दलित हूँ , मैं नीच हूँ और सामाजिक पापी हूँ ।

मैं छू लू पत्थर के देवों को तो ,ये उनकी निन्दा है ।
क्योंकि मैं तो मृत हूँ और मेरे देव अभी भी ज़िन्दा है ।

कालान्तर मे मैं सदैव हक़ से वंचित हो जाऊँगा ,
हेय दृष्टि भावना लेकर सदैव अछूत कहलाऊँगॉ ।