Categories
poetry

प्रकृति की पुकार

बर्फ़ से ढकी चादरों से सुसज्जित पहाड़

ग्लेशियरों से निकलती स्वच्छ नदियाँ

घनें जंगलों में गूंजती परिंदों की ध्वनियॉ

हरे हरे खेतों में झुकी हुयी धान की बालियॉ

गौशालों में छोटे छोटे बछड़े और मेमने की पुकार

तुम्हे बुला रही है

आ अब लौट चलें

ऐक कुल्हाड़ी और लकड़ियों के बंडल

पीठ पर बंधा घास और पत्तियों का बोझा

भेड़ बकरियों के चरते झुण्ड

पत्थर की स्लेटी छतें और गारे से लीपी दिवारे

घनघोर बादलों से ओझल होता सुरज

तुम्हे बुला रहा है

आ अब लौट चलें

उल्लास त्योहारों का और मृदु बोली

टोपी , बूट और ऊनों की चोली

कड़क ठंड में सुखाया मॉस और मदिरा

काली मडंवे की रोटी और लाल चावल

दूर दूर तक फैले देवदार की ख़ुशबू

विचरते काकढ और घोरल

खेतों में गिराये गये गोबरों के ढाँचें

घरों में भरे गये अनाजों के साँचे

तुम्हे बुला रहे हैं

आ अब लौट चलें

प्रकृति पहाड़ों की

सूने ऑगन , सूने खेत खलियान

भड़कती जंगल की आग और विलाप करती प्रकृति

कहती मातृ भावना तन्हाई में

आ अब लौट चलें

जिन्दा कर दे उन सब गडरियों की उम्मीदें

जिन्होंने जंगल और ज़मीन को पूजा

और जिन्दा रखा हर आने वाली विपदा मे भी

तुम्हें बुला रही है

आ अब लौट चलें ।

Advertisement
Categories
poetry

मन के भीतर

दुख: की काली घटाएँ बहुत घनघोर हुयी है

हे रक्षक ! तुम जागो अब तो भोर हुयी है

मन के भीतर भाव भँवर क्यों अभिभूत हुऐ है

किस वेदना की पीड़ाओं मे ये क्षीण हुऐ है

दुख: की काली घटाएँ बहुत घनघोर हुयी है

हे रक्षक ! तुम जागो अब तो भोर हुयी है

तुम कुम्हार बनो अपनी क़िस्मत की मिट्टी के

तुम जौहरी बनो रत्नों के पारख बन कर

हे रक्षक ! श्रम की ऑच में जल भुनकर

तुम रौशनी बनो राहगीरों की मशाल बनकर

मन के भीतर भाव भँवर क्यों अभिभूत हुऐ है

किस वेदना की पीड़ाओं मे ये क्षीण हुऐ है

हे रक्षक ! अब तो जागो भोर हुयी है

हे रक्षक ! कुछ बीज बनो करूणा के तुम

जिसके अंकुर पनपे तो फूटे प्रेम हरियाली

जो तृप्त करे सूखती धरा की उर्वरता

जो असंगत कोटी मे समता का स्वर फूंके

मन के भीतर भाव भँवर क्यों अभिभूत हुऐ है

किस वेदना की पीड़ाओं मे ये क्षीण हुऐ है

हे रक्षक !

तुम निश्छल विद्रोही बन कर बिगुल बजा दो

तुम जनसेवक बनकर इंक़लाब कर दो

तुम कलम उठाकर उसे हथियार बना दो

तुम हर ख़्वाब को हक़ीक़त में साकार कर दो

दुख: की काली घटाएँ बहुत घनघोर हुयी है

हे रक्षक ! तुम जागो अब तो भोर हुयी है

Categories
poetry

इंतज़ार

तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ

कभी फूलो की ख़ुशबू बनकर आ

कभी अन्न की मिठास बनकर आ

कभी अंबर में मेघ गर्जना होकर

मेरी ऑखो की बारिश बनकर आ

तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ

मेरे नयनों मे तो प्रेम गुलज़ार है

तू किसी पुष्प का जीवन बनकर आ

ना चाहूँ प्राणों की जुगलबंदी

तू चाहे तो विरह वेदना बन कर आ

अगर तू चाहें उत्कर्ष मेरे जीवन का

तू कोई प्रेरक प्रसंग बन कर के आ

तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ

मेरे नयनो में तो प्रेम गुलज़ार है , तू किसी पुष्प का जीवन बन कर आ 🌸

इस लोभ मैं न जिऊँ जन्म जन्मांतर

तू कोई सहज विचार बन कर के आ

मैं रहूँ परिलक्षित वसुधा से व्योम तक

तू कोई पुलकित स्पर्श बन कर के आ

तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ

तू रोज़ रोज़ मेरे ख़्वाब बनकर आ

Categories
poetry

पप्पू भाई (राजनीती , व्यवस्था ऐवम जनता ) by Lalit Hinrek

इक छोटी सी बस्ती मे रहता था पप्पू भाई

रंग बिरंगा छोटा व मोटा था पप्पू भाई

ना पड़ता था , ना लिखता था

बस लड़ना उसका शौक़ था

बस्ती मे हाहाकार मची थी

पप्पू का ख़ौफ़ था ….।।

बीत गया पप्पू का बचपन

अब वो बड़ा हुआ

निकम्मा बेकार , और निहायती

आवारा पड़ा हुआ ।।

दिन भर पप्पू तास खेलता

ना पॉव पे खड़ा हुआ

गुचडूम खाता , क़ब्ज़ी हो गयी

पादता सड़ा हुआ ।।

बड़ा हो गया पप्पू भाई

अब शादी की बारी आयी

पप्पू डर गया अब उसकी

बर्बादी की बारी आयी

शादी हो गयी पप्पू की

घर आ गयी लाड़ों रानी

ज़ीरो फ़िगर की सुन्दर बाला

शीला की थी जवानी

कुछ दिन तो ऐसे ही चल गये

मस्ती मस्ती मे ही टल गये

पर पप्पू धीरे से ग़रीब हो गया

दुख दर्द उसका नसीब हो गया

क़िस्मत से लाचार हो गया

टुकड़ों मे वह चार गया

पर ये क्या चमत्कार हो गया

पप्पू का बेड़ा पार हो गया

पप्पू के सपने मे लक्ष्मी मॉ आयी

ख़ुशियों की बौछार व रंग हजारो लाई

पप्पू भाई मैदान मे चुनाव लड़ने के इरादे से

बस्ती को चमकाऐंगे और विकास के वादे से

पप्पू घर घर जाने लग गया

लोगों को मनाने लग गया

कुछ जन को बहलाने लग गया

कुछ को वो फुसलाने लग गया

सज्जनों को धमकाने लग गया

सज्जन हारे पप्पू जीता

क्योंकि वो था बस्ती का चीता

आज पप्पू ने शपथ ली

अपने हाथो मे ले कर गीता

वादा कर गये पप्पू भाई कि सबका काम करेंगे

बस्ती को चमकायेगे और देश का नाम करेंगे

किसे पता था पप्पू भाई बस आराम करेंगे

निचोड़ देंगे सिस्टम को व काम तमाम करेंगे

फिर घर से पप्पू जी का बंगला हो गया

आम जन इस खेल मे कँगला हो गया

फिर पप्पू की कार आयी

इटैलियन मार्बल दिवार आयी

छोटा पप्पू आया तो ख़ुशियाँ हज़ार आयी

पप्पू के घर मे तो बेमौसम बहार आयी

कितना खुश है पप्पू आज

अपनी छोटी सी लाईफ से

ऐक ओर घोटालों का राजा

और शीला जैसी वाईफ से

पड़ने वाले बचपन के चिरकुट

आज कितने दुखी है

आपस मे वो बातें करते

पप्पू कितना सुखी है ।

पप्पू और भी मोटा हो गया

खाकर ख़ूब जनता का का पैसा

लूट खसोट मची यहॉ पे

इसमें किसी का विरोध कैसा ?

जब तक ऐसी जनता होगी

और ऐसी सरकार होगी

तब तक ना सिस्टम बदलेगा

हर पप्पू की नैय्या पार होगी

उसके अपने बंगले होगे

BMW कार होगी

पड़ने वाले हर चिरकुट की

इज़्ज़त तार तार होगी ……।।

Categories
poetry

हिसाब

जज़्बात की , फ़िदा की सबात मॉगता हूँ
ख्वाब के शिहाब का हिसाब मॉगता हूँ………!

वो फाजिल तेरी मोहब्बत का है , मेरे मौला
उसकी वफ़ा के इम्तहान का हिसाब मॉगता हूँ ……!

 

सरवत मोहब्बत , रहमत मॉगता हूँ
साक़ी इश्क़ का दीदार मॉगता हूँ……………!

ज़ख़्म की , सितम की , शिफ़ा मॉगता हूँ
दिलग्गी सुखान के जबाब मॉगता हूँ……….!

 

जज़्बात की , फ़िदा की सबात मॉगता हूँ
ख्वाब के शिहाब का हिसाब मॉगता हूँ…………!

Categories
poetry

वायरस 🦠virus🦠

समझोगे ये क्या है ?

ये हिन्दू -मुस्लिम से बड़ा है

ये जातिवाद से बड़ा है

ये आज़ादी से बड़ा है

ये शिव शंकर से बड़ा है

अल्लाह , अजान से बड़ा है

मैरी -जीसस से बड़ा है

ये राजनीती से बड़ा है

ये चमचागिरी से बड़ा है

ये धोखाधड़ी से बड़ा है

शाहीनबाग से बड़ा है

आतंकवाद से बड़ा है

समझोगे ये क्या है ?

ये उन कर्मों की सजा है

जब जल में क़ब्ज़ा किया

जलचर के हक़ को छीना

मार मार कर सूना करके

प्रकृति को घायल किया

जब थल में क़ब्ज़ा किया

पत्ती तिनका काट काट कर

जंगल 🌳 को ख़ाली किया

बिल्डिंग का ताना बाना बुनकर

कंक्रीटो का जाल बिछाया

विज्ञान, तरक़्क़ी के नाम – नाम पर

वायु को प्रदूषित किया

जानोगे ये क्या है ?

परिस्थिति भी डर गई

धरती डर गयी

प्रकृति डर गयी

Beware Humans👉 “Mother nature knows very well “The Theory of equilibrium

धर्म डर गया , कर्म डर गया

वायरस 🦠 रूपी दानव से

जैसे हर जीवन डर गया

ये कातिल भी है , भक्षक भी है

ये प्रकृति का संदेशवाहक

और उसकी रक्षक भी है

कहने आया अब बहुत हुआ

छोड़ो – मॉस भक्षण जीवों का

छोड़ो चीर हरण प्रकृति का

छोड़ो प्रदूषण धरती 🌍 का

वक़्त ठहरते समझ जाओगे तो

अगली पीढ़ी बचा पाओगे

ना समझोगे नाज़ुक छण को तो

उजड़ा इतिहास दफ्न हो जाओगे

समझोगे ये क्या है ?

 

 

 

 

 

Categories
poetry

क्या बात है ?

कभी जीत की तमन्ना लिये उठ जाओ

तो क्या बात है ….।।

कभी ठान लो नेकी की राह

तो क्या बात है ……।।

कभी बॉट लो हिस्से की थोड़ी ख़ुशी

तो क्या बात है …….।।

कभी बुझ गये सपनों को नये पंखो से उड़ा दो

तो क्या बात है …… !!

कभी रूठे हुऐ साथी को माफी दो

तो क्या बात है …….।।

कभी दुश्मन को गले से लगा लो

तो क्या बात है ………।।

Continue until you find what makes a difference ~thelostmonk

कभी ईमान से कुछ तमग़े पा लो

तो क्या बात है …..।।

कभी वतन को इंकलाब बना लो

तो क्या बात है ………।।

कभी इक आध सच्चा दोस्त पा लो

तो क्या बात है …….।।

कभी बापू की थपकी पा लो

तो क्या बात है ……।।

कोई छोटा जो मुखौटा जी ले

तो क्या बात है ……. !!

कभी कोई कहानी बना दे

तो क्या बात है ……..!!

कभी जीत की तमन्ना लिये उठ जाओ

तो क्या बात है……..!!

 

Categories
poetry

मैं और तू

(When you have love in your heart , you will have peace in your mind ~ thelostmonk )

 

मैं बादल का घेरा हूँ

और तू रिमझिम सी वर्षा है

मैं बिखरा सा ऐक तिनका हूँ

और तू फूलो की छाया है

मैं मिट्टी की मूरत हूँ

तू ख़ुशियों की काया है ।

मैं दीपक का बाती हूँ

तू रौशनी की ज्वाला है ।

(Dedicated to one who once fall in love …..!!) 🌸💫💫

मैं कविता का “मोहन” हूँ

तू जोगन सी “मीरा” है

मैं “ललित” कला का इक राग हूँ

तू सम्पूर्ण संगीत की लीला है ।

मैं पतझड़ की सूखी टहनी हूँ

तू जीवन बसंत की “सतरंगी” है

मैं पनघट का बहता पानी हूँ

और तू झरनो की काया है ।

मैं क़ागज , कलम, किताब हूँ

और तू स्याही का दरिया है ..!

मैं रेत , पानी , मिट्टी हूँ

और तू जीवन का साया हैं ।

मैं बादल का घेरा हूँ

और तू रिमझिम सी वर्षा है ….!!

By ~ thelostmonk

Categories
poetry

कौन हूँ मैं ?

(A life of a spy )

मैं सुदृढ़ तो राष्ट्र सुदृढ़ होगा ,

मैं कमजोर तो , राष्ट्र बिखरेगा ।

राष्ट्र सुरक्षा की अलग परिभाषा हूं मैं,

कर्तव्यनिष्ठा की जैसे व्याख्या हूं मैं ,

प्रखर ,प्रचण्ड , चाणक्य का नाम हूं,

तेजस्वी सूरज हूं लेकिन गुमनाम हूं ।

मरू की तेज धूप मे भीे तपता हूं मैं,

बर्फीले तूफानो मे भी चलता हूं मैं,

सदैव काक चेष्टा रखता हूं मैं,

स्वरूप अनुरूप बदलता हूं मैं ।

I’m faceless, I’m anonymous
I’m a beggar & I’m a king 👑

मैने तमगो की कभी चाहत नही की ,

मातृभूमि के इतर कोई मोहब्बत नही की ,

निष्काम भाव से बढ़कर कोई ईमान नही मेरा,

राष्ट्र भक्ति से बढ़कर कोई अभिमान नही मेरा ।

गोलियों से तीखी तो मेरी कलम की धार है,

अग्रगामी आसूचना मेरा ऐटमी वार है ,

बिना रक्त के बूंद से , युद्ध जिता सकता हूं मैं,

बिना भनक के अलग देश बना सकता हूं मैं ,

वितरण के बल पे , मैं काम बदलता रहता हूं ,

रम जाये मिट्टी मे , वो नाम बदलता रहता हूं ।

आतंक की वो हलचले , या देशद्रोही साजिशें ,

अवरोध बन प्रबल खड़ा , विफल करू मैं ख्वाहिशें ।

कभी रंक हूं मैं , कभी राजा हूं मैं

कभी संत हूं मैं, कभी ख्वाजा हूं मैं,

संगीत के धुनों का राग हूं मैं

जल जाये पानी मे वो आग हूं मैं,

मिल जाये हमसफर तो पीता हूं मैं,

मिल जाये कोई लम्हा तो जीता हूं मैं,

कोई नाप ना सके वो गहराई हूं मैं,

कोई देख ना सके वो परछाई हूं मैं,

प्रकृति की भाषा और व्याकरण का स्वर हूं मैं

भेष बदला मानो कोई गुप्तचर हूं मैं ।

ना शर्म ना लिहाज है , वो जुनून मेरे पास है

जैसे तिरंगा मेरा हिजाब है, और एक इन्कलाब है

जय हिन्द , जय हिन्द , जय हिन्द ।

Categories
poetry

फ़र्क़

फ़र्क़ अब तेरे समझने का है

वरना मेरा मिलना भी तो

तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!

फ़र्क़ तेरी मोहब्बत का है

वरना कौन से तराज़ू में

वफ़ा का पैमाना होता है …!!

फ़र्क़ इस बात का है कि

तुम कहती थी कि

“सुबह शाम डर लगता है कि

तुम ! चले न जाओ मुझे छोड़कर”

फर्क इस बात का है

कि मुझे रोकते रोकते तुमने

अपने रास्ते बदल दिये और मैं

वहीं मोढ़ पर तुम्हारा इन्तज़ार करता रहा …..!!

फ़र्क़ अब तेरे समझने का है

वरना मेरा मिलना भी तो

तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!

फ़र्क़ इस बात का है कि

कल तक मैं जो तेरी दुनिया था

और आज तुम ही पुछती हो

कि “कौन हूँ मैं”….!!

फ़र्क़ है ! फ़र्क़ सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि

फ़र्क़ रंग का है

कभी सुर्ख़ लाल रंग जो मेरे हर गुलाब में था

अब शायद वो रंग फीका हो चला है

वो बातें और यादें शायद धुंधली हो चली है

और हज़ार आरज़ू दफ्न होने के बावजूद

तुम्हारा ज़िक्र ख़त्म सा हो गया है…..!!

फ़र्क़ इस बात का है कि

कल तक हर पल तू साथ था

और आज बस तेरे कुछ ख़्याल बाकि है …!!

फ़र्क़ अब तेरे समझने का है

वरना मेरा मिलना भी तो

तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!