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मैं और तू

(When you have love in your heart , you will have peace in your mind ~ thelostmonk )

 

मैं बादल का घेरा हूँ

और तू रिमझिम सी वर्षा है

मैं बिखरा सा ऐक तिनका हूँ

और तू फूलो की छाया है

मैं मिट्टी की मूरत हूँ

तू ख़ुशियों की काया है ।

मैं दीपक का बाती हूँ

तू रौशनी की ज्वाला है ।

(Dedicated to one who once fall in love …..!!) 🌸💫💫

मैं कविता का “मोहन” हूँ

तू जोगन सी “मीरा” है

मैं “ललित” कला का इक राग हूँ

तू सम्पूर्ण संगीत की लीला है ।

मैं पतझड़ की सूखी टहनी हूँ

तू जीवन बसंत की “सतरंगी” है

मैं पनघट का बहता पानी हूँ

और तू झरनो की काया है ।

मैं क़ागज , कलम, किताब हूँ

और तू स्याही का दरिया है ..!

मैं रेत , पानी , मिट्टी हूँ

और तू जीवन का साया हैं ।

मैं बादल का घेरा हूँ

और तू रिमझिम सी वर्षा है ….!!

By ~ thelostmonk

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कौन हूँ मैं ?

(A life of a spy )

मैं सुदृढ़ तो राष्ट्र सुदृढ़ होगा ,

मैं कमजोर तो , राष्ट्र बिखरेगा ।

राष्ट्र सुरक्षा की अलग परिभाषा हूं मैं,

कर्तव्यनिष्ठा की जैसे व्याख्या हूं मैं ,

प्रखर ,प्रचण्ड , चाणक्य का नाम हूं,

तेजस्वी सूरज हूं लेकिन गुमनाम हूं ।

मरू की तेज धूप मे भीे तपता हूं मैं,

बर्फीले तूफानो मे भी चलता हूं मैं,

सदैव काक चेष्टा रखता हूं मैं,

स्वरूप अनुरूप बदलता हूं मैं ।

I’m faceless, I’m anonymous
I’m a beggar & I’m a king 👑

मैने तमगो की कभी चाहत नही की ,

मातृभूमि के इतर कोई मोहब्बत नही की ,

निष्काम भाव से बढ़कर कोई ईमान नही मेरा,

राष्ट्र भक्ति से बढ़कर कोई अभिमान नही मेरा ।

गोलियों से तीखी तो मेरी कलम की धार है,

अग्रगामी आसूचना मेरा ऐटमी वार है ,

बिना रक्त के बूंद से , युद्ध जिता सकता हूं मैं,

बिना भनक के अलग देश बना सकता हूं मैं ,

वितरण के बल पे , मैं काम बदलता रहता हूं ,

रम जाये मिट्टी मे , वो नाम बदलता रहता हूं ।

आतंक की वो हलचले , या देशद्रोही साजिशें ,

अवरोध बन प्रबल खड़ा , विफल करू मैं ख्वाहिशें ।

कभी रंक हूं मैं , कभी राजा हूं मैं

कभी संत हूं मैं, कभी ख्वाजा हूं मैं,

संगीत के धुनों का राग हूं मैं

जल जाये पानी मे वो आग हूं मैं,

मिल जाये हमसफर तो पीता हूं मैं,

मिल जाये कोई लम्हा तो जीता हूं मैं,

कोई नाप ना सके वो गहराई हूं मैं,

कोई देख ना सके वो परछाई हूं मैं,

प्रकृति की भाषा और व्याकरण का स्वर हूं मैं

भेष बदला मानो कोई गुप्तचर हूं मैं ।

ना शर्म ना लिहाज है , वो जुनून मेरे पास है

जैसे तिरंगा मेरा हिजाब है, और एक इन्कलाब है

जय हिन्द , जय हिन्द , जय हिन्द ।

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फ़र्क़

फ़र्क़ अब तेरे समझने का है

वरना मेरा मिलना भी तो

तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!

फ़र्क़ तेरी मोहब्बत का है

वरना कौन से तराज़ू में

वफ़ा का पैमाना होता है …!!

फ़र्क़ इस बात का है कि

तुम कहती थी कि

“सुबह शाम डर लगता है कि

तुम ! चले न जाओ मुझे छोड़कर”

फर्क इस बात का है

कि मुझे रोकते रोकते तुमने

अपने रास्ते बदल दिये और मैं

वहीं मोढ़ पर तुम्हारा इन्तज़ार करता रहा …..!!

फ़र्क़ अब तेरे समझने का है

वरना मेरा मिलना भी तो

तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!

फ़र्क़ इस बात का है कि

कल तक मैं जो तेरी दुनिया था

और आज तुम ही पुछती हो

कि “कौन हूँ मैं”….!!

फ़र्क़ है ! फ़र्क़ सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि

फ़र्क़ रंग का है

कभी सुर्ख़ लाल रंग जो मेरे हर गुलाब में था

अब शायद वो रंग फीका हो चला है

वो बातें और यादें शायद धुंधली हो चली है

और हज़ार आरज़ू दफ्न होने के बावजूद

तुम्हारा ज़िक्र ख़त्म सा हो गया है…..!!

फ़र्क़ इस बात का है कि

कल तक हर पल तू साथ था

और आज बस तेरे कुछ ख़्याल बाकि है …!!

फ़र्क़ अब तेरे समझने का है

वरना मेरा मिलना भी तो

तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!

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बारह आने

(If you find my stories dirty , the society you are living in is dirty ~ Munto )

वक़्त का पहिया भी बड़ा अजीब है ऐसे दौड़ता है कि पता भी नही चलता कि समय कैसे बीत गया । पीछे मुड़कर देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि कल की तो बात है , ऐसा लगता है कि सपना ही तो है कल मैं स्कूल मे पड़ता था , कल ही तो कॉलेज मे दाख़िला लिया था , कल की तो बात है इश्क़ मे पहली बार दिल टूटा था और आज !

आज सुबह सी लगती है , जैसे कल रात का सपना था जो रौशनी की पहली किरण के साथ धूमिल हो गया और फिर ये आज भी ऐक कल बन जायेगा । इस कल मे न जाने कितनी हसीन कहानियॉ छुपी होगी जो आपको हंसाती होगी , कई बार रूलाती भी होगी और कई बार ये अहसास भी कराती होगी कि अगर ऐसा किया होता तो ऐसा होता । ज़िन्दगी का ताना बाना ही तो है ये कहानियाँ जो आपको आप बनाती है और हमको हम बनाती है ।

ऐक दिन सब कुछ यहीं छूट जायेगा , राजा और रंक दोनों ही ख़ाली लौट जायेगे लेकिन वो राजा भी ग़रीब ही होगा जिसकी ऐक भी कहानी उसके बाद याद नही की जायेगी और वो प्रजा का ऐक वो हिस्सा भी है जिसने कहानियों को जिया है और जो हमेशा हमेशा के लिये यहॉ किसी न किसी की यादो मे , किन्हीं हिस्सों मे , किसी ख़ुशबुओं मे , कहीं न कहीं मिलता रहेगा और हमेशा याद किया जाता रहेगा ।

बारह आने भी साठ के दशक की कहानी है । आज बूढ़ा हो चुका हूँ और कहानी लिखते लिखते अपना वो छुटपन जीना चाहता हूँ । गॉव मे मेरे पिता ऐक छोटे से किसान थे और मॉ बेहद ही धार्मिक गृहिणी । हम चार भाई बहन थे जिनमें सबसे बडी बहन थी , फिर मैं , फिर छोटा भाई और सबसे छोटी बहन थी ।मॉ रोज पूजा पाठ करने वाली महिला थी और हम भी सुबह शाम पूजा मे शामिल हो जाया करते थे । मैं छठी कक्षा मे पड़ता था तथा छोटा भाई पाँचवी कक्षा मे पड़ता था । हम दोनों बहुत ही उद्दण्डी थे तथा ख़ूब लड़ाई किया करते थे । छोटा भाई मुझसे भी ज़्यादा उद्दण्डी था जो कभी कभार किसी गॉव वाले के बादाम तो कभी सन्तरे वग़ैरह अपने दोस्तों के साथ चुराता था । कई बार उसकी शिकायत घर मे भी पहुँच जाती थी तो पिता जी उसे ख़ूब मार लगाते । गॉव मे अन्धविश्वास बहुत ज़्यादा होता था लोग अगर बीमार भी हो जाते तो डॉक्टर के पास कभी नही जाते बल्कि गॉव के देवता या माली (जिस पर देवता अवतरित होता है ) को बुलाकर झाड़ फूँक करवाते थे । आज का दौर बदल गया है लोग ज़्यादा शिक्षित ऐवम जागरूक हो गये है ।

बचपन बेहद नाज़ुक होता है जो आस पास का वातावरण होता है वह आपके चरित्र मे समा जाता है । यह कहीं न कहीं आपके भविष्य मे जीवन पर्यन्त प्रभाव डालता है । हम लोग स्कूल से आने के बाद कन्चे (कॉच की गोलियाँ) खेलते थे । उस वक़्त यह हमारे वक़्त का सबसे पॉपुलर खेल था । आजकल तो लोग पब जी (PUB G) न जाने कैसे कैसे आभासी (virtual) गेम खेलते है लेकिन वो दौर अलग था । हमारे पास संसाधन कम थे लेकिन वक़्त बेहिसाब था । एक आने में दस कन्चे मिलते थे यदि कोई दुकान से लेता था लेकिन ऐक आने के बारह मिलते थे यदि हम साथ के लड़कों से लेते थे । मेरे साथ के कुछ दोस्त और मेरा भाई हम सब मिलकर खेलते थे और बहुत दिलल्गी से खेलते थे । एक बार मैं बुरी तरह हार गया मेरे सारे कन्चे दोस्तों ने जीत लिये । अब मेरे पास न तो पैसे थे कि मैं कुछ कन्चे ख़रीद सकू और न कोई मुझे उधार देना चाहता था । मैं निराश होकर घर चला आया । पिता जी घर पर नहीं थे और मॉ गायों को चारा डालने गोशाला गयी थी । बड़ी बहन रसोई में रोटियॉ बना रही थी और सबसे छोटी रसोई में खेल रही थी । मैं अंदर गया और पता नहीं क्या ख़्याल आया की सीधा पूजा वाले कमरे में गया । वहॉ मैंने देखा की पूजा की थाली में कुछ सिक्के रखे है लेकिन सामने भोलेनाथ की मूर्ति और तस्वीरें थी और मॉ दुर्गा की मूर्ति तो ऐसा लग रहा था कि मुझे ही देख रही हो । कुछ देर सोचा फिर तृष्णा ने आस्था पर हावी होकर कहा , भोले बाबा माफ़ कर देना मुझे पैसों की सख़्त ज़रूरत है और पैसे उठाकर घर के पीछे के खेत में और स्लेट के नीचे रख दिया । मैं कॉप रहा था तो पैसों को गिन भी नहीं पा रहा था यह अक्सर होता है जब भी कोई ग़लत काम करते है । पैसे रखने के बाद बड़ा अच्छा लग रहा था कि अब मैं भोलेनाथ की कृपा से अमीर हो गया हूँ । मैंने किसी को नहीं बताया और बिल्कुल शरीफ़ बच्चा बनकर पडाई करने में जुट गया । मॉ ने शाम की पूजा मे देखा तो उन्होंने पिता जी को बोला ।

पिता जी ने रात का खाना खाते हुये सबसे पूछा कि मंदिर से बारह आने ग़ायब हुये है , किसने लिये है ? ईमानदारी से बताओ की चोर कौन है ?

सबको छोटे भाई पर शक हुआ क्योंकि वह उद्दण्डी काम करता रहता था । छोटा भाई देवते की क़सम खा खाकर अपनी बेगुनाही के सबूत देता रहा लेकिन उसकी बात पर कोई विश्वास ही नहीं कर पा रहा था ।

पिताजी ने सबसे पूछा । बड़ी बहन ने भी कुल देवता की क़सम खाई कि उसने नहीं लिये है । अब मेरी बारी आयी तो मैंने भी क़सम खा ली क्योंकि मैंने तो चोरी करने से पहले एक संवाद कुल देवता के साथ जारी रखा ही था फिर अब एक झूठ पहले झूठ को बचाने के लिये और सही ।कोई भी ये मानने को तैयार नहीं था कि किसने पैसे लिये है हॉलाकि छोटे भाई को सर्वसम्मति से चोर घोषित किया जा चुका था ।

फिर पिताजी ने अगली सुबह सबको बुलाया और बताया की आज वह देवता के माली को बुलायेंगे और देवता यह बता देगा की चोर कौन है । अभी भी बता दो चोर कौन है वरना पूरे गॉव में बड़ी बेइज़्ज़ती होगी । अब मुझे डर लगने लग गया की अगर देवता ने सही में मुझे पकड़ लिया तो फिर क्या होगा ?

मैंने पिताजी को कहा की हम लोग ढूँढ लेंगे तो पिताजी ने कहा की ठीक है ढूँढो वरना दोपहर में फिर देवता के माली को बुला लूँगा । इसके बाद बहने घर के अन्दर ढूँढने लग गयी कि कहीं इधर उधर न गिर गये हो । मैं बड़े चालाकि से घर के पीछे चला गया और छोटे भाई को भी लेकर गया । मैंने स्लेट को नीचे पैसे छिपाये थे और क्योंकि वहम खेत में काफ़ी स्लेटे थी तो मैंने एक जानवर की हड्डी उसके ऊपर निशानी के तौर पर रखी थी । अब हम ढूँढने लग गये लेकिन दुविधा ये थी कि मैं कैसे निकालू यह पैसे तो मैंने छोटे भाई को बड़े मासूमीयत के साथ बोला

“भाई कई बार चोर कुछ निशानी छोड़ देते है , ढंग से ढूँढना उधर जैसे कई बार हड्डी वग़ैरह वे निशानी के तौर पर छोड़ देते है “

छोटा भाई मेरे वास्तविक इरादों से बिल्कुल अनभिज्ञ और धीरे धीरे उस स्लेट के पास जा पहुँचॉ जहाँ बारह आने रखे थे । जैसे ही उसने स्लेट हटाई बारह आने दिखाई दिये ।

वह चिल्लाया “भाईजी पैसे मिल गये “

जैसे ही वह चिल्लाया मैं घर की तरफ़ भागा और चिल्लाता हुआ पिता जी के पास गया और बोला पिताजी पैसे छोटू ने ही लिये थे उसी को मिले है वो ही चोर है ।

छोटा भाई चिल्लाता हुआ आया और बोला की पिताजी पैसे मिल गये । मैं तैयार नही था कि मुझ पर बात आये लेकिन जब छोटे भाई ने पूरा वाक्या सुनाया कि कैसे मैंने कहा की चोर निशानी छोड़ देते है तो पिता जी को मालूम पड़ गया कि पैसे मैंने चुराये थे । पिताजी मुस्कारये और बोले की बता दो वरना शाम को देवता बुला लेंगे । मैंने डर से स्वीकार कर लिया क्योंकि मुझे लगता था शाम को अगर देवता आ गये तो मुझे पकड़गें । बाद मे कई सालो तक इस बात को लेकर मेरी ख़ूब खिंचाई होती थी । आज भी ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात है और आज भी मेरे ज़ेहन में ज़िन्दा है । हम आज जब भी कभी इसका ज़िक्र करते है तो बस हँसते है कि कितने मासूम थे वो छुटपन के दिन ।

उसके बाद धीरे धीरे यह भी समझ आया कि देवता तो मन का डर है जो यह अहसास दिलाता है कि बुरा मत करो वरना देवता दण्ड देगा , फिर धीरे धीरे समझ आया कि देवता तो कर्म है जो जीवन का सार है कि बुरा करने से बुरा ही होगा । जैसे जैसे बड़े होते गये वो बारह आने सीख बनते गये कि मुश्किल से मुश्किल वक़्त में भी ग़लत क़दम मत उठाओ ।बारह आने ने मुझे यह भी सिखाया कि हर बच्चा बेहद क्रियेटिव होता है जो बचपन से ही कहानी बुन सकता है 🤠🤠

बारह आने सिर्फ़ कहानी नहीं है बल्कि एक जीवन का अंग है जो ताउम्र साथ रहेगा ।

💕💕💕

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उधडे जूते


मैं ऐक छोटे से क़स्बे मे रहता था । गॉव मे जातपात , छुआ छूत और अंधविश्वास के ढकोसलों का पूरा वातावरण था । गॉव मे सवर्ण (राजपूत ऐवम् ब्राह्मण) तथा हरीजन सब मिलकर रहते थे । मैं छोटी जाती से था । मेरे परिवार मे माता पिता तथा ऐक बडी बहन और मैं , बस चार लोग थे । हमारे पास ज़मीन नही थी क्योंकि जो ज़मीन हमारे पूर्वजों की थी वह अब ऊँची जाती के लोगों के पास थी क्योंकि किसी ना किसी मजबूरी मे उन्होंने इन लोगों को बेच दी थी । पिता जी बंधुआं मज़दूरी करते थे क्योंकि उन पर हमेशा क़र्ज़ रहता था । मेरी मॉ भी ठुकराइनो और पंडिताइनो के यहॉ काम करती थी । मैं दस साल का था और बडी बहन चौदह साल की । वह कक्षा 9 मे पड़ती थी तथा मैं कक्षा 6 में । मैं भले ही दस साल का था लेकिन ऐक आज्ञाकरी बालक था जो हमेशा अपने माता पिता की बात मानता था । सुबह उठ कर अपनी गायों को जंगल की तरफ़ ले जाता था और फिर स्कूल के लिये तैयार होता था । गॉव मे मात्र ऐक सरकारी इण्टर कॉलेज था तथा उसी मे सब पड़ते थे । मैं पडाई मे हमेशा अव्वल आता था तथा हमेशा गुरूजनों का आदर करता था लेकिन गॉव के कुछ स्वर्णों के बच्चे मुझे नापसन्द करते थे । मैं नही जानता था क्यों ? शायद उतनी उम्र ये सब समझने के लिये काफ़ी नही थी ।
ऐक बार की बात है स्कूल मे ऐक वार्षिकोत्सव समारोह आयोजित किया जाना था । मेरे पास नये कपड़े भी नही थे और मेरे जूते भी बिल्कुल फटे हुये थे । जब भी मेरे जूते फट जाते थे तो मेरी मॉ उसमे टॉका लगा देती और मैं वो जूते दस पनंद्रह दिनों तक और चला लेता । फिर मॉ बार बार ऐसा ही करती जब तक जूतों को फेंक देने की कोई वजह ना हो ।
मैं कभी शिकायत नही करता था क्योंकि वो दिन ऐसे थे की जो कुछ भी मिलता था वही सुकून था । वो दिन ऐसे थे की शायद ही किसी से कोई फ़र्क़ पड़ता था और मस्तिष्क मे पवित्रता इतनी थी की समाज मे व्याप्त भ्रष्टाचार ऐवम बुराईयॉ उसे प्रभावित कर सकती थी ।

मैंने पहली बार पिता जी को बोला कि मेरे स्कूल मे वार्षिकोत्सव है और मेरे पास कपड़े नही है । पिताजी मुझसे बेहद प्रेम करते थे क्योंकि मैं हमेशा पडाई मे अच्छा करता था और बस यही ख़ुशी थी जो मैं उनको दे सकता था । पिताजी ने कहा की वो नये कपड़े ख़रीद लेंगे । मैं खुश था और मैने बहन को बोला की मेरे लिये नये कपड़े आने वाले है । मेरी बहन कभी कोई डिमाण्ड नही करती थी शायद थोडा बड़े होने की वजह से वह घर की नाज़ुक हालत समझती थी । मुझे कुछ नही पता थी की घर कैसे चलता है और कैसे पिताजी जी तोड़ मेहनत कर दो जून की रोटी का इन्तज़ाम करते है । पिताजी ने मेरे लिये ब्लू रंग की जीन्स और ऐक जिन्स की शर्ट ख़रीदी और जब पिताजी घर आये तो मैं ख़ुशी से पागल हो गया । ब्लू रंग की जीन्स , मैने जीन्स इससे पहले कभी नही पहनी थी । स्वर्णों के बच्चो को देखा था बस जीन्स पहनते लेकिन मैं तो हमेशा नीलामी के सैकण्ड हैण्ड कपड़े या फिर सवर्णो द्वारा दान किये गये पुराने कपड़े ही पहनता था । आज नयेपन का अहसास था, नयेपन की उम्मीद थी और जीत जाने की उमंग थी ।
मैने विद्यालय के वार्षिकोत्सव मे ऐक भाषण प्रतियोगिता और निबन्ध प्रतियोगिता मे भी हिस्सा लिया था । मैं अच्छा वक़्ता था , अच्छा लेखक था और अच्छा प्रस्तुतकर्ता भी था । जीतने वालों को ईनाम भी दिया जाना था । मैं तो मानो सातवें आसमान मे था । फिर वार्षिकोत्सक का दिन आया , मैने कपड़े पहने , बडी बहन ने दुलराकर आज मुझे तैयार किया । आज वो मुझे गुड्डे के जैसे सजा रही थी । मैने अपने जूते डाले , मेरे पास जूते नये नही थे । वो पुराने जूते जिस पर मॉ ने एक बार टल्ली चस्पाँ चुकी थी लेकिन वो उधड़ कर खा हो चुकी थी । फिर भी मैं होनहार बीरबान मस्त मौला तैयार होकर चल पड़ा स्कूल । स्कूल में मेरे सब दोस्तों ने मुझे मेरी नई जीन्स के लिये बधाई दी । सबने तारीफ़ की वाह आज तो तुम विलायती लग रहे हो । हम भारतीयों में ये बात शायद ग़ुलामी के समय से ही थी की विलायती होना गर्व की बात माना जाता है । पिता ने भी शायद इसी उम्मीद से नई जीन्स ख़रीदी होगी । फिर स्कूल में भी तरह तरह के लोग होते है जैसे समाज में तरह तरह के लोग होते है । कुछ लड़कियों का झुण्ड मेरे सामने स्टेज के रास ही खड़ा था और खिलखिलाखल हस रहा था । मैं दस साल का बालक शायद इस बात से अनभिज्ञ था कि उनकी हँसी का माजरा क्या है । तभी एक सीनियर जो कक्षा दस में पड़ती थी , ने मुझे बुलाया , वह क़स्बे के नामी ब्राह्मण की लड़की थी । मैं चला गया और वो मेरे कपड़ों की तारीफ़ करने लगी । बाक़ी उसकी सहेलियाँ ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी ।

फिर उसने कहा , “कौन लाया तेरे लिये जीन्स ?”
मैं , “ पिताजी ले के आये है “

फिर वो बोली “ऊपर से तो सब ब्यूटीफ़ुल है और नीचे से फटाहुआ पुल है “

दूसरी बोली जब औखाद नहीं होती तो पहनने नहीं चाहिये ।
तीसरी बोली “किसी से मॉग कर लाये होगें ये तो खाना भी मॉग कर खाते है “
सब लड़कियाँ ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी ।

I cried because I had no shoes until I met a man who had no feetAnonymous

मैं शर्म से लाल हो गया था , ये शायद ज़िन्दगी का पहला अवसर था कि ख़ुद पर हीनता महसूस हुयी । मुझे नहीं पता था वे लोग मुझसे नफ़रत क्यों करती थी या फिर इस प्रकार की सोच उनमें कहा से आयी । मैं तो एक ग़रीब परिवार का बच्चा था जिसका किसी से कभी भी कोई द्वेष नहीं था । मैं कुछ नहीं बोला और वो सब लड़कियाँ हँसती रही । मैं एकदम शान्त कौने में खड़ा हो गया, ज़िन्दगी में पहली बार कुछ न होने का अहसास हुआ । मेरा भाषण भारत की आज़ादी के संघर्ष पर था लेकिन मैं आज़ाद महसूस नहीं कर पा रहा था । ख़ैर यह पहला मौक़ा था मेरे जीवन का जिसने एक पाठ सिखाया की जूते फटे होना समाज व्यक्ति की द्ररिदता समझता है लेकिन मैं तो बेहद अमीर था शायद दिल से सोच से । मेरा भाषण अच्छा नहीं हुआ क्योंकि आज़ाद होने का ख़्याल ही चला गया , मैं तो जकड़ा हुआ महसूस कर रहा था ग़रीबी की ग़ुलामी , जाती की ग़ुलामी और हार की ग़ुलामी । मैं भाषण में तीसरे स्थान पर रहा , यह पहला मौक़ा था मैं हार गया था । मेरा निबन्ध में कोई स्थान ही नहीं आया , यह पहला मौक़ा था मैं सांत्वना पुरस्कार भी न पा सका । बड़ी बहन को कुछ महसूस हुआ कि मैं तो बहुत ख़ुश था आस्वश्त था फिर अच्छा क्यों नहीं परफ़ार्म कर पाया । घर जाकर बड़ी बहन ने पुछा क्या हुआ “सोनू “
अब तो पिताजी ने तुझे नयी जीन्स शर्ट भी ला कर दी लेकिन तू तो बहुत पीछे हो गया ।
मुझे ग़ुस्सा आया और रोना आ गया कि बस जीन्स शर्ट दिये ना , मुझे जूते नहीं लाये नये , ये फटे हुये जूते दिये जिसमें सबने मेरी बेइज़्ज़ती की है ।

मैं गहरी सिसकियाँ लेने लगा , दीदी ने पुछा की बात क्या हो गयी । मैंने पूरा वाक्या बताया । बड़ी बहन ने ग़ुस्सा ज़ाहिर किया और बोला की मैं उन लोगों को बताती हूँ कल ।
हम उनसे मॉग के खा रहे है क्या ??
मेहनत करते है भीख नहीं मंगते ।

शाम को पिताजी आये और दीदी ने पूरा वाक्या पिताजी को बताया । पिताजी को बताते बताते दीदी रोने लगी उसके ऑसू छलकता देख मेरे भी ऑसू निकल गये । पिताजी ने पूरा वाक्या सुना और थोड़े से मुस्कुरा दिये उन्होंने बताया की बेटा बड़े कमज़ोर हो तुम !
सिर्फ़ इस बात पर बुरा मान गये की तुम्हारे जूते फटे होने पर किसी ने तुम्हारा मज़ाक़ बना दिया । हमने तो ज़िन्दगी भर दुख सहे है । राजपूतों की , ब्राह्मणों की , ठेकेदारों की , साहूकारों की सबकी बंधुऑ मज़दूरी की है और इनकी खिल्लीयॉ , ताने और क्रूरता सब हँसते सही है । तुमको इसलिये तो पड़ा रहे है बेटा की ताकी तुम मज़बूत बनो , ताकी तुम वो सब ना सहो जो हमने सहा है । ताकी तुम अव्वल बनो ।
बेटा तुम उनको जबाब दोगे तो क्या होगा ?
कल उनके पिताजी आयेंगे हम लोगों को खरी खोटी सुना के चल देंगे । हम कुछ नहीं कर पायेंगे । जनाब देना है बेटा तो मेहनत कर के दो , तरक़्क़ी कर के दो और उनसे बेहतर बन के दो । ये जबाब तुम्हें हमेशा तरक़्क़ी के रास्ते पे ले जायेगा और एक दिन उन लोगों को अपनी भूल का अहसास होगा ।

मैं उस दिन रात भर नहीं सोया । पिताजी के शब्द मानो कान में गूँज रहे थे । मैंने वो उधड़े हुये जूते तकिये के पास रख दिये थे । शायद प्यार हो गया था उन जूतों से । रात भर ख़्याल करता रहा की बड़ा होकर कुछ बनुगॉ तो नये नये जूते ख़रीदूँगा ।शायद दस साल के बच्चे में जीवन के सत्यार्थ का प्रकाश प्रज्ज्वलित हो रहा था , शायद दस साल के बच्चे में एक गम्भीर मस्तिष्क का जन्म हो रहा था और शायद दस साल के बच्चे में एक बेहतर मानव की रूह का द्वार प्रकट हो रहा था ।

सुबह के वक़्त नींद आ गयी । सात बजे नींद खुली जब मॉ दूध का गिलास ले के आई । मॉ मुस्कुरा रही थी , मेरी तो ऑंख भी अच्छे से नहीं खुली थी तभी मॉ ने कहा की बाहर आ जा तेरे लिये कुछ ख़ास है ।
मैं जैसे ही बाहर गया देखा नये जूतों का डिब्बा रखा हुआ था । मैं चिल्लाया “मेरे लिये है “
मॉ ने कहा , “हॉ कल जो इतना रो रहा था तेरे पिताजी सुबह छ बजे ही लाला से पास गये थे “

मेरे हल्के से ऑसू छलक गये । नये चमचमाते सफ़ेद जूते । मैंने कभी ये भी नहीं पुछा की पिताजी जूते उधार लाये हैं या पैसे देकर । बस पिताजी पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था । फिर कभी ज़िन्दगी में जूतों के लिये ज़िद्द नहीं की , फिर कभी जूतों के लिये नहीं रोया । उन सब लड़कियों को भी दिल से माफ़ कर दिया । बाक़ी ख़ूब संघर्ष किये और पडाई की । फिर बाक़ी की ज़िन्दगी आसान हो गयी । वो उधड़े हुये जूते आज भी संभाल कर रखे है । आज पच्चीस साल हो गये हैं इस वाक्ये को । मेरी बेटी आज दस साल की हो गयी उसी को यह कहानी बता रहा हूँ क्योंकि उसने कभी उधड़े हुये जूते नहीं देखे ।
उसने कभी जाती नहीं देखी । उसे ये जूते दिखा रहा हूँ ताकी वो मेरे मार्मिक जीवन को समझे , ताकी वह हृदय में करुणा बसाये , ताकी वह किसी का हृदय ना तोड़े , ताकी वह किसी उधड़े जूते वाले की खिल्ली न उड़ाये ताकी वह बेहतरीन इंसान बन सके । ताकी वह समझ सके की मेहनत और लगन से सब जबाब दिये जाते है और सफलता से बड़ा कोई ज़बाब ही नहीं है ।

बेटी तुम भी ये जूते संभालना और जब तुम्हारी बिटीया /बेटा दस साल का हो जायेगा तो उसे मेरे महान पिता के बारे में बताना, मेरे बारे में बताना और मेरे उन उधड़े हुये जूतों के बारे में बताना ।

I hope you liked this story. Please do share this story among your friends and spread wisdom and sense of positivity all around. Please follow my blog and share link on whatsapp and Facebook.

Regards- The Lost Monk.

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बुद्ध का धम्म् और अंगूलीमाल

2500 साल पहले मगध राज्य मे ऐक बालक जिसका नाम अंहिसक था वह तक्षशिला मे अपनी शिक्षा दिक्षा ग्रहण कर रहा था । वह अपने सभी मित्रों मे सबसे अव्वल था जिससे जल्द ही वह समस्त आचार्यों का प्रिय हो गया । कुछ छात्र उसकी तरक़्क़ी से इतने दुखी हुये की उन्होंने बालक के प्रति षड्यन्त्र रचा और गुरूजनों को गुमराह कर बालक के ख़िलाफ़ भड़का दिया । गुरूजनों ने उसे दक्षिणा मे ऐक हज़ार मानव अंगुलियों को ऐकत्र करने की दक्षिणी मॉगी जिसके लिये उसे ऐक हज़ार मानव की हत्या करनी थी । वह गुरूकुल से शिक्षा छोड़ कर चला गया और ऐक ऐक करके मानवों की हत्या करता गया । मानव संख्या याद रखने के लिये वह मानव की ऐक अंगुली काट देता था और गले मे माला पहनने लग गया । धीरे धीरे सम्पूर्ण मगध /श्रावस्ती मे उसका ख़ौफ़ फैल गया और कालान्तर मे वह अंगूलीमाल के नाम से कुख्यात हुआ ।

वह हत्याऐं करता गया और करते करते नौ सौ निन्यान्वे हत्याऐ कर गया । अब उसका आख़िरी मानव बचा था और ऐक दिन ऐक बुढ़िया और ऐक सन्यासी जंगल के रास्ते मे उसके सामने आ गये । यह सन्यासी गौतम बुद्ध थे तथा बुढ़िया उसकी अपनी माता थी लेकिन मोह मे अंधा व्यक्ति अंगुलीमाल अपनी मॉ को भी नही पहचान पाया । वह हँसते हुये कहता है “हाहाहा , मेरे रास्ते मे दो लोग ऐक साथ आ गये अब मैं इस बुढ़िया की जान लूँ या इस संन्यासी की “

गौतम बुद्ध मुस्कुराते रहे और बोले , “ इस बूढ़ी औरत की हत्या मत करना , तुम मेरी जान ले सकते हो “

उनके आत्मविश्वास और तेज़ को देखकर अंगुलीमाल अंचभित था और ग़ुस्से मे आकर बोला , “ ऐ संन्यासी , पूरा इलाक़ा मेरे नाम से थरथराता है और तुम्हारी इतनी हिम्मत “

वह ग़ुस्से से उनकी और लपका लेकिन गौतम बुद्ध बिल्कुल निश्चितं खड़े रहे । उन्होंने अपना हाथ आगे किया और बोले , आओ ! और मुस्कुराते रहे ।

बुद्ध के इतने आत्मविश्वास और करूणा देख वह ऐक दम पिघल गया और उसे अपने अस्तित्व का ऐहसास हो गया । बुद्ध ने उसे गले से लगा लिया और धम्म् की शिक्षा दी । वर्षों तक वह बुद्ध के साथ रहा फिर गौतम बुद्ध ने उसे धम्म् की शिक्षा का प्रसार करने के लिये भेज दिया जिससे वह भी दुखियों की सेवा कर सके और उन्हें भी धम्म् का मार्ग प्रशस्त कर सके । वर्षों बाद वह गॉव , शहर की ओर निकला लेकिन लोग क्रोध मे इतने अंधे थे कि वह अंगुलीमाल अपन नही सके और जब भी वह निकलता उस पर पत्थर फेंकते । अंगूलीमाल का सिर फूट जाता लेकिन वह मुस्कुराता रहता क्योंकि वह जानता था ये लोग सब दुखियन है बिल्कुल उसके जैसे है जैसे वह था , इसलिये वह उन्हें सह्रदय अपना लेता बिना किसी अपेक्षा के । लोगों ने उसे अब तक क्षमा नही किया था , गौतम बुद्ध जानते थे वह तैयार था इसलिये उन्होंने उसे वापस भेजा । फिर ऐक दिन किसी गर्भवती महिला की असहाय पीढ़ा को अंगूलीमाल ने अपने तेज़ से , ज्ञान से , करूणा से और धम्म् से ठीक कर दिया । यह बात पूरे शहर मे फैल गयी और लोगों ने अंगूलीमाल को अपनाना शुरू कर दिया ।

बाद मे अंगूलीमाल बेहद प्रसिद्ध बौद्ध हुये और उन्होंने सम्पूर्ण जीवन दुखियन की सेवा की और धम्म् का प्रसार किया ।

शिक्षा – प्रत्येक मनुष्य हजारो कमियाँ और ग़लतियाँ करता है लेकिन यह भी सत्य है कि प्रत्येक मनुष्य मे ऐक सुप्त अवस्था मे बोधी का भी निवास है । प्रत्येक मनुष्य ऐक बुद्ध है जिस दिन उसकी बोधी का उसे अहसास होता है । जब ऐक कुख्यात हत्यारा भी महान संत बन सकता है तो आप और हम तो अच्छे मानव बन ही सकते है । धम्म् के मार्ग पर चले और दुखियन की सेवा करे ।

Ps – All human beings are rolling into the misery just because of ignorance but their is a way out. Dhamma is the way to understand and experience your own being and real happiness. Everyone is a Buddha and everyone has Boddhi (knowledge) in dormant state. The moment you realise that Boddhi you start feeling compassion for all being and spreading positive vibration all around.

The moment you change your mentality , very next moment you start changing your state. Buddha said , ” All the Buddha before me , all the Buddha contemporary to me and all the Buddha to future , I pay my refuge upon them ”

Buddha is not a name , it is a state of one’s own realisation or ultimate truth . I can be a Buddha, you can be a Buddha and everyone can be a Buddha. Spread positivity and happiness and it will intensify your happiness ten times more back to you. Everyone can change their fate and come out of ignorance. Dhamma is a truth , Dhamma is a law of nature . Be a part of Dhamma and spread Dhamma to serve humanity.

धम्म् शरणम् गच्छामी

संघम शरणम् गच्छामी

बुद्धम् शरणम् गच्छामी ।

🧘‍♂️🧘‍♂️😇😇

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life philosophy sprituality

अनिच्चा. Impermanence

“ऐक छोटी सी कहानी”

There was a beautiful couple in the village . Husband was so much fascinated of his wife’s beauty. He used to praise her beautiful golden hair and her shining teeth. He used to compare her hair to cascade of gold and her teeth to the ocean of pearls. One day this man invited me for a dinner. I knew his affection for his wife and I was happy to see that.

Again when I entered to his house he started praising her wife’s beautiful hair,teeth and her smile. I was in a state that I could see his ignorance. I didn’t say even a word and keep smiling. Poor people with full of ignorance, cravings and aversion, do not know their own mind even. So I let him speak with full of his emotions.

He said , “I love her golden hair , it is like a cascade of gold on her head “

“I love her teeth which is just like a ocean of pearls”

I smile and said yes they are beautiful 😊

Then her wife started serving us dinner. We were sitting on the dinning table and our plates were fulfilled with aroma of delicious food. I started eating my food. All of sudden her husband found a long hair in the food. He got irritated and scold his wife

“Wife ,”what’s that , this dirty hair in my food …..!!! Yakkk !!! Move this plate away from here and bring another fresh one.”

The few moments back these were the same hair metaphorically said as a cascade of gold, shining on her head but all of sudden it became dirty and impure. I keep smiling with learning and understanding. Her wife brings him another new plate and then he start eating with me. Now he was not that much happy with the talks as he was before. He was not that much enthusiastic. I tried to normalise the situations and talk him about the Dhamma.

I told him that love is a emotion with compassion , non sectarian , universal sensations without manipulation and without cravings. I was telling him that you can not tell that you love your mother more than your father because if you do so it doesn’t remain non sectarian that means their is a amalgam of cravings either for your father or for mother. You can not say that you love more your best friend or your girlfriend because either you truely love your best friend or your girlfriend. Love is universal and you can not measure it in the form of less or more. It is same for everyone and once you start feeling that you will understand the real meaning of love. Rest is based on our cravings which keeps arising and vanishing, keeps arising and vanishing , deriving us to imbalanced behaviour with full of impurities , keep accumulating layer by layer without even knowing to us and one day which turn out as a aversion, illusion, delusion, empathy, agony, hatred , sympathy and all other thoughts.

In between his wife was bringing water for him and she fell down near the table and one of her front tooth broke down and sprinkled also in his plate which was still half of food.

He stand up and picked up her and he saw that her one tooth which was artificial has sprinkled due to imbalance in his plate , luckily she didn’t had any injuries.

He said , “ wife ! Put this dirty tooth away , take this plate away from here and I won’t have food now. My mood has got spoiled and I won’t eat anything now. “

Wife was embarrassed for unwanted things which had spoiled her husband’s mood. I was smiling. I wanted to spread Dhamma , the truth and law of nature. Because few minutes back these were the teeth which was said to be “the ocean of pearls “ but all of sudden they also became dirty and impure.

I wanted to teach that our mind work according to the objects and we are just a slave of our mind. Without understanding the theory of अनिच्चा , we can not be liberated from ignorance. We will be deriving by the things which is in our favour (cravings) or against (aversion) and our life will be driven just accordingly.

I taught them Dhamma, brings them out of ignorance and fulfilled them with compassion, joy and real happiness. I told them that beauty is beauty when it is integrated but when it is decayed and segregated from the truth it become impurity of mind. Husband and wife followed the path Dhamma and left all the object oriented life behind. They become the happiest couple on village and inspired others to be like them. They spreads Dhamma through out their life to make people realise the reality of their real happiness.

PS – अनिच्चा is a Pali word which means Impermanence. Theory of Impermanence is a special place in Buddhism and play a very important role. To understand the nature of our body and mind we should understand ourselves first. Day by day we are decaying, decaying and decaying towards end without even realising it. We can chose to accumulate impurities or to purify our mind with the time so that one can truly understand the real meaning of love and happiness. When you will understand that you are itself a universe containing mind and matter then you will understand the little thing about yourself. It is a last long process but your one step towards it is like a one drop in the jar and one drop is always better than an empty jar.

And knowing the process of अनिच्चा , slowly you will see that part of the bubble , you have become a wavelet too 🧘‍♂️.

भवतु सब्बा मंगलम Be Happy 😊

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life Motivation

Happiness is a choice 💫

I have always been a explorer , a life experimentalist , a storyteller and a poet. As a learner I have set my boundaries to find out my way to go ahead with clarity. I will find answers for the all the why’s because I intended to and I’m sure of it that life is full of thrill , full of beautiful people and full of adventure.

When I look back at my journey I feel good about me that everything has a purpose in life. I was always surrounded by good people who taught me valuable things. As I’m growing old I feel I’m looking at everything with a different prospective which is making me more enthusiastic and positive.

I don’t want to live a normal life. Insanity is not a bad thing if it brings you happiness. Even pain , sadness or joy has a purpose to serve us. Everything has a unique pattern of sensations when they occur and we never realise it but it has a large impact on our personality. Once you start understanding it you will start understanding everything. You will grow in life, you will be undefeated in life, you will be above the small things and you will attain equilibrium. This equanimous mind will lead you to success. I’m sure I will be on the path of equilibrium. From this day onwards my journey as a wanderer will be on to find the path of equilibrium.

I’m full of energy and I see hope, larger prospective everywhere. Here I had pick one of my list to do before I die from my bucket list.

So here is my first ever “SOLO TRAVELING”

I packed my bag and started my journey from delhi to Dhramshala. I had enrolled myself for the 10 days Vipasana course in Himachal Vipasana centre Dhramkot which 4-5 km from Dhramshala. I reached here 2 days before the course started and they didn’t let me enter into the campus. So I started looking for reasonable hotels near Dhramkot. I found a good hotel which has very good cafe as well. When you have a day off and you have lot of things to do so this goes like this👇🏿

1. I started my day with a beautiful Israelian breakfast 🥞 and read some my fantasy about the universe, shared by the Stephen hawking.

2. I met a beautiful 🇳🇴 Norway 🇳🇴 lady Marthe Aurora who has been a solo traveler for last 15 years and she had amazing personality with lot of experience. She is learning Yoga here in India . We were having breakfast in a same restaurant and I break the ice and start conversation with her. She told me about her previous journey and just showed me the picture of that restaurant when she was here in India first time around 8 years back. Such a happy day indeed.

3. After meeting her she went to her Yoga classes and I had nothing to do so I thought I would go for “Triund Trek “ on my own . Because of heavy snow fall trek was closed til 30 March. There was an accident as well , a group of 8-10 youths from Dehli went on trek on 15th March and some of them gone missing. They were lucky that rescue teams found them alive after two days. Rumours were all around here and some whatsapp videos were also spreading about the missing group. But on 31 March 2019, DC opened the trek for tourist on the condition of hiring a trained tourist guide with every group. Early morning I started my journey for trek and on the way to Golu temple I met two partners Alex and Brendon from USA . They were really eager to go for trek and we asked the security person for permission. Security person told us to hire the local guide. We hired sachin, a local guide and start out trek for Triund.

4. We were the first three traveler to open the route at the early 0939 Hrs . It was a long journey so we start sharing thing to each other.

Alex and Brendon are together since four years and they love each other. They met in the college and Alex is two year elder than Brendon. After completing their college they joined community farming for two years back. They have good understanding and they love each other . I clicked many pictures on the way and I was kind of their photographer today 💕

5. Alex is a painter 👩‍🎨 and she is more into spirituality. Alex also shared with me about her ex boyfriend even in front of Brendon with comfort. She shared how they had differences and they could not keep it continue. Brendon is a commerce graduate and managing the work of community farming.

I asked Alex about love. She shared with me valuable things. She told “love is a beautiful feeling, it is no more or no less , it is just love. Love makes us happy , humble and strengthen to achieve our dreams.” This was something which should be learn in life. All for all being must be our goal in life. No one is infallible and everyone deserves a chance to correct themselves. We must have compassion in our heart. That is a learning for life. I will remember this definitely that love is just love with the feeling of no more and no less. Even theory of “Metta” says it is unconditional love for all being.

I have come here to attend my “Vipasana Meditation” course and this will be my another wish list.

6. Our journey is more like a juggling trails and it keep going unpredictably. Like small glacier to the big ones, small problems to big one. This trek could not be more joyful with two cheerful people with me. We clicked lot of photographs , made beautiful memories , shared some of our stories and talked about different perspectives of life.

7. It was 10 km trek from Dhramakot to Triund . We were the first four person to open the route for everyone for this season . We were happy to make this trek complete even though it was very slippery, somewhere dangerous and we all fell down almost 5-6 times even Alex got little injured . It is our human nature that we become more durable after crossing all our difficulties, we become more anti- fragile after so much of fragility. But beyond toughness and difficulties of our journey we shared happiness, knowledge and stories to each other. It took us almost three hours to get to the “Triund Top” and feeling was not less than a conqueror.

8. I become their director, guided them to pose and creat unforgettable memories for them . They come together and Alex went down on the knee with a flower 🌷 and make her wish come true. Alex told me that she is gonna make this picture framed. They will always remember me whenever they look at it. This is life with joy and sharing. I wish them love and happiness.

9. I had really a great day with these lovely people. I’m learning that life has always a broader meaning and prospects. I’m learning that world is full of happiness and you need to find your choice. I’m learning that “Happiness is a choice” and my choices are more clear than ever before .

Keep your journey without expecting expecting too much in return. This is the best way to be a selfless traveler. Everything is a joy here. You need to look it differently.

10. Some good photographs to remember . Some good memories to remember. Even this dog came with us. One thing I have learn from Dogs that they are a true companion who truely loves you. You can’t express your gratitude when you get Maggi at the height of 3-4 ft snow fall , believe me nothing is better than that .

Alex and Brendon offered me American nuts and chocolates and that was so kind of them . We had tea , Maggi and cookies 🍪 together . We exchanged our numbers and I’m looking forward to meet them again in future . All the very best to my guide sachin , to Alex and to Brendon.

May this universe brings you more happiness in upcoming adventures . I may had dinner with Aurora so I will look forward to it .

PS : “Happiness is a choice. Keep your journey because life is a journey.

&

“Journey is happiness not the destination” 🌸🌸💫🌸🧘‍♂️🧘‍♂️

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Motivation story

क्रान्ति ( A short story of a thought)

2008 की बात है यशराज और उसका छोटा भाई वीरप्रताप सिंह कॉलेज की छुट्टियाँ ख़त्म करके गॉव से शहर की ओर लौट रहे थे । सुबह सुबह रेलवे स्टेशन पहुँचे । पोष की काली सर्द रात की ठिठुरन मानो इस अंधेरी धुँध के साथ मिलकर प्रकाश के ख़िलाफ़ मानो साज़िशें रच रही हो । अंधेरा कितना ही घना क्यों न हो ऐक छोटी सी प्रकाश की किरण अपने आस पास को ही प्रज्वलित नही करती बल्कि उसकी प्रेरणा तो मानो अनन्त खोयी हुयी भावनाओं को जीवन के खुबसूरत पहलुओं का अहसास कराती है । सुबह के पॉच बजे ट्रेन की छपक – छपक आवाज़ धीमी होती जाती है और धीरे धीरे यह ध्वनि भी मानो प्रकृति की मनोरम ध्वनियो मे खुद को समाहित कर लेती है ।

वीरप्रताप अभी अभी 12 वी पास करके गॉव आया था । यशराज कॉलेज के प्रथम वर्ष मे दार्शनिक विज्ञान की पडाई कर रहा था । यशराज अपने विचारों से प्रभावित करने वाले व्यक्तित्व मे से ऐक था , वह अपने विचारों को सदैव अलग मायनों मे जिन्दा रखना चाहता था । साधारण परिवार मे जन्मे दोनों भाई जीवन के अनुभव को काफ़ी गहराई से समझते थे । उन्हें अहसास था कि ख़ुशियों की क़ीमत क्या है !

उन्हें पता जीवन मे कटुता के अनुभव क्या है !

दोनों भाईयों मे वैचारिक तालमेल ग़ज़ब का था । वे अपने विचारों का आदान प्रदान सहजता से करते थे । पॉच बजे ट्रेन आकर रूकती है तथा क़रीब आधे घण्टे बाहर आकर दोनों टैक्सी का इंतज़ार करते है । सुबह के वक़्त मज़दूरों की बडी भीड़ रहती थी स्टेशन के आसपास । मज़दूरों के झुण्ड ठेकेदारों के इर्द गिर्द मडंराते आसानी से दिखाई देते थे । अभी सुबह के 6 बज गये थे हल्का हल्का उजाला हो गया था । धुँध हट गयी थी , चाय वाले चाय की प्यालियाँ लेकर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहे थे । चार पॉच झुण्ड मज़दूरों के अलग अलग अपने अपने वाक्या सुलझाने मे लगे थे । तभी पास ही मैं ऐक ठेकेदार , जो कि छ: फ़ुट लम्बा व चमकदार सफ़ेद कुर्ता पहने हुये अपने अग़ल बग़ल अठारह बीस मज़दूरों को धमका रहा था ।

मज़दूर जो की संख्या मे ज़्यादा थे लेकिन मोटे तगड़े ठेकेदार के सामने असहाय महसूस कर रहे थे । मज़दूर हाथ जोड़े कुछ विनती कर रहे थे जबकि ठेकेदार ने हाथ के स्लीव फ़ोल्ड करके कुछ बड़बड़ाये जा रहा था ।

यशराज और वीरप्रताप ने बैग साइड मे रखे और उत्सुकता से दोनों जानने के लिये पास मे पहुँच गये । तभी यशराज ने ऐक मज़दूर से पुछा

यशराज – क्या हुआ भैय्या ? मामला क्या है ?

मज़दूर – अरे बाबू जी ,

ये मालिक हमारा पूरा दिहाडी नही देता है । आधा पैमेण्ट हमेशा रोक देता है । अभी हम सब लोग छुट्टी जाना चाहते है घर को , लेकिन मालिक पूरा पैमेण्ट नही दे रहा है । ऐक महीने का पैमेण्ट रोक रखा है ।

यशराज के हाथो के रौगटे खड़े हो गये । मानो उसके अंदर हलचल हो चली । उसने जो किताबें पड़ी थी , उसने जो उनसे अर्जित किया था वह मानो उसे अन्दर से झकझोरने लगा । उसने लेनिन, चाणक्य और हिटलर के विचारों के पड़ा था। वह जानता था कि हिटलर ऐक ऐसा वक़्ता था कि जब वो बोलने लगता था तो अधमरे घायल सैनिक भी जिन्दा हो उठते थे । वह जानता था कि यह महज़ ऐक विचार मात्र नही है यह विचारो का साम्राज्य है जो आने वाले सहस्र वर्षों तक जिन्दा रहेगा । वह जानता था कैसे विचार व्यक्तित्व परिवर्तित करते है । वह जानता था विचार कैसे चरित्र परिवर्तित करते है ।

यशराज ने चार मज़दूरों को पास बुलाकर कहा

“आप लोग इतने दूर क्यों आये हो , क्या कभी आपने सोचा है ?

क्योंकि आपके पास कुछ नही है तो आप खोने से क्यों डरते है ? आप के पास पहले भी कुछ नही था और आज भी कुछ नही होगा लेकिन बदल सकते हो तो आज दिखा दो कि तुम ताक़तवर हो और तुम जिन्दा हो ।

मिलकर आओ और अपना हक़ छिन लो !

सब मिलकर मारो………..!

अगले ही पल ऐक मज़दूर जूता निकाल के चिल्लाया “मारो”

बस फिर क्या था आवाज़ें गूँजने लगी “मारो साले को “

दो तीन मज़दूर भागे और ठेकेदार को अहसास हो गया की बात हाथ से निकल गयी है । ठेकेदार भाग खड़ा हुआ और उसका जूता पॉव से निकल गया लेकिन पीछे मज़दूरों का झुण्ड भाग रहा था । ठेकेदार गिर पड़ा और मज़दूर उसके ऊपर चड गये । कोई जूता मार रहा था , कोई पॉव घूँसे मार रहा था तभी मज़दूरों मे से ऐक आदमी बीच बचाव करने आ गया । ठेकेदार ने उसके पॉव पकड़ लिये । उसने उसी समय अपने लड़के को फ़ोन किया और सबका पुराना हिसाब चुकता करने का वादा किया ।

यशराज और वीरप्रताप दोनों सब कुछ देख रहे थे तब तक दोनों की टैक्सी आ गयी । दोनों बैठे और चल दिये । यशराज बहुत खुश था इसलिये नही कि उसने कुछ महसूस किया । वह खुश था कि आज उसे अपने पढ़े लिखे होने का अहसास था । आज उसे उन विचारों पर गर्व था जो उसने संग्रहित किये थे । आज उसे अपने हृदय की क्रान्ति पर गर्व था ।

वह रात भर इस वाक्ये को ज़ेहन मे दोहराता रहा । शायद यह अब तक के उसके जीवन का सबसे बेहतरीन वाक्या था । यह सब जो उसने अर्जित किया था , उसका मात्र एक लक्षण भर था । यह उसके विचारों की एक ख़ूबसूरत क्रान्ति थी ।

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A letter to Eve (45 days old puppy)

ईव (Eve) मेरे 45 दिन का जर्मन शेफर्ड Pup पार्वो वायरस का शिकार हुआ है । रोज खेलने वाली ईव ने अचानक खेलना बन्द कर दिया । उसके आसपास जाने से जो काटने को दौड़ती थी उसने चहकना तक बन्द कर दिया । उसको इतनी पीड़ा सहते देख मेरी रूह को रोज़ाना चोट पहुँचती है । काश मैं उसे समझा पाता की मैं उसे कितना चाहता हूँ , काश वो बोल पाती और मैं उसकी तकलीफ़ों से वाक़िफ़ होता , उसके एक एक ऑसू मानो मेरे शरीर का लहू गिरने जैसा है । मुझे नही पता ईव (Eve) तुम इस सब से लड़ पाओगी लेकिन मैं लिखना चाहता हूँ । मैने छोटे छोटे सपने देखे है और तुम उनका ऐक हिस्सा हो । मैं जीवन के बारे मे हो सकता है अलग राय रखता हूँ लेकिन मेरी भावनाएँ बिल्कुल आम है । तुम्हारी तकलीफ़ों को देखकर इतना टूटता हूँ कि मानो मेरे पास कोई जिन्न होता तो मैं तुम्हारे लिये सारी खुशियॉ मॉग लेता ।

पहले दिन तुमको ले कर आया था तो मैने तुम्हें अपने पास सुलाया । ईव (Eve ) यक़ीन मानो मैं रात भर तुमको देखता रहा और जब भी तुमने करवट बदली मैने तुम्हें ओढ़ने के कम्बल परोसा । पहले दिन तुमने 2:39 बजे रात को जगकर आवाज़ें करना शुरू किया । मैने महसूस किया कि तुम कुछ कहना चाहती हो , मैं उठा और लाइट ऑन की । तुमको बालकनी मे ले गया तो तुमने वहॉ पौट्टी की और उसके बाद तुम फिर सोयी ही नही ना मुझे सोने दिया । सुबह रोज पॉच बजे उठ जाना और चूँ चूँ करना मानो ये बताने की कोशिश की उसको भूख लगी है । दस दिन ईव (Eve) तुमने मेरे संग ऐसे बिताये है जैसे तुम उन सबका हिस्सा थी । मैंने तुमको समझना शुरू किया था , कब तुमको भूख लगती है , कब तुमको वाथरूम जाना है सब कुछ समझने लगा हूँ मैं । मैंने दुआएँ कि है ईव (Eve) ब्रह्माण्ड (universe ) से , सृष्टि से की वह तुम्हारी ज़िन्दगी के अंधेरों को ख़त्म कर दे । मैंने दुआएँ कि है कि मैं अपने हिस्से की ख़ुशियाँ तुम्हें बॉट दूँ , ऐ सुदूर बह्रमाण्ड की रहस्यमयी ताक़तों , यदि मेरी फरियादो की गुंजे तुम तक पहुँचती है तो मेरे हिस्से की ख़ुशियाँ बॉट लो और इस नन्ही सी जान को ताक़त दो कि यह लड़ सके , उठ सके , चल सके और जीवन महसूस कर सके ।

ईव (Eve) जीवन बहुत ही अप्रत्याशित है और यहॉ सदैव के लिये जैसा कुछ भी नही । मेरे सपनों मे तुम्हारे साथ पहाड़ों मे घुमना है , यदि मौक़ा मिलेगा तो हम ऐक दिन बर्फ़ वाली जगहों मे जायेंगे और वहॉ मैं तुम्हारे सबसे बेहतरीन फ़ोटो खींचूँगा । ईव (Eve) यदि मौक़ा मिलेगा तो हम साथ में घुमेंगे और मैं तुम्हें बेहतरीन भोजन से रूबरू करवाऊँगा । तुमको कभी अपने हाथो का ब्रेड खिला सकता हूँ मैं और यक़ीन मानो ईव (Eve) मैं अफ़ग़ानी चिकन खिलाऊँगा तो तुम हर दिन डिमाण्ड करोगी लेकिन मैं तुम्हें बिगाड़ूँगॉ नहीं । मैं ऐक छोटा सा बारेबीक्यू लगाऊँगा , कभी कभी रोस्टेड भी ट्राई कर सकते है । अगले साल दिल्ली छोड़ के चलें जायेंगे कही दूर पहाड़ों पर , जहाँ ये भाग दौड़ वाली ज़िन्दगी न हो ।

ईव (Eve ) हम पूरी कोशिश करेंगे कि तुम ठीक हो जाओ । तुम मेरे बेहतरीन सपनों में से एक हो और वह मैं अधूरा नहीं छोड़ना चाहता । मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं रहती , लेकिन तुमसे होगी क्योंकि मैं कहानी लिखना चाहती हूँ , तुम्हारी कहानी । इसलिये तुमको लड़ना होगा , अच्छा होना होगा ताकि हम Bucket list की काफ़ी लम्बी लिस्ट को छोटी करते चले । तुम्हारे साथ के ये दस दिन खुबसूरत है । मैंने बहुत सी विडीयोज बनायी है , बहुत फ़ोटोज खींची है और जब तुम बड़ी हो जाओगी तो मैं दिखाऊँगा कि देखो तुमने ज़िन्दगी की शुरूवात कैसे की है ।

ईव (Eve) मैं दिल से चाहता हूँ कि तुम अच्छी हो जाओ ।मेरे सपने की हिस्सा हो तुम । मुझे ज़रूरत है तुम्हारी और मैं ज़िन्दगी की कुछ बेहतरीन यादें तुम्हारे संग जीना चाहता हूँ । जल्दी अच्छी हो जाओ ईव (Eve ).

Get well soon Eve , I love you with my all heart .