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ईवा

(Chapter -1)

कितना ख़ूबसूरत नाम है ना !

जितना ख़ूबसूरत है उससे कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत तो मतलब है शायद ।

ईवा ! (Life)

जब भी पूछे मुड़कर देखता हूँ तो कहीं ना कहीं याद आ जाती है । आज सालो बाद लिखना शुरू किया सोचा कि आप सभी भी जान लो उस ईवा को जिसे मैं भी जानता था ।

मेरा नाम अहमद है । दिल्ली की ऐक मिडिल क्लास फ़ैमिली से हूँ , अब्बू की कपड़ों की दुकान है चाँदनी चौक मे । बचपन से कोई कमी नही रही जो मॉगा मिल गया और फिर अपनी भी कोई ज़्यादा ऐम्बीशन थी ही नही लाईफ़ मे ।

मेरे मोहल्ले मे दो मकान छोड़ के शर्मा निवास है । उनका लौण्डा है रौनी , मुझसे ऐक क्लास सीनीयर है लेकिन रोज क्रिकेट खेलने आता है I mean देखने आता है खेलता नही । इसी की क्लास मे पड़ती है ईवा । देखने मे सुन्दर , राजकुमारी की तरह लेकिन सब डरते है उससे ।स्कूल की सबसे शैतान लड़की है ।

और रौनी स्कूल का सबसे अच्छा लड़का । मैं तो कहता हूँ रौनी जैसा लौण्डा होना भी दुनिया मे बहुत बड़ी बात है यार । यही वो शर्मा जी का लोण्डा है जिसके बारे मे आप भी बात करते हो । आगे जा के मालूम पड़ेगा आपको ।

मैं तो ईवा मैम से हमेशा बचकर रहता था उनसे नज़र मिलाना मतलब यमराज से ऐपोण्टमैण्ट ले लेना हो । जब भी स्कूल का कोई भी रिज़ल्ट आता रौनी को ही फ़र्स्ट प्राइज़ मिलता । ईवा को इस बात से कोई प्रोब्लम नही थी लेकिन इस बार के ऐनुवल फ़ंक्शन मे रौनी के पैरेन्टस को सम्मानित किया गया तो घर आकर ईवा के पापा ने ईवा को थोडा सुना दिया ।

“ईवा ! देखो राम ने अपने mom dad को कितना प्राउड फ़ील कराया है और तुम्हारे मार्क्स देखो “

शर्मा जी के लड़के से कुछ सीखो ।

ईवा को ये बात ज़रा अच्छी नही लगी । अगले दिन स्कूल मे बाथरूम के पास मैं , रौनी के साथ जा रहा था । ईवा और उसी चार पॉच फ़्रेण्ड्स आकर हमको धक्का देने लगती है ।

रौनी – I will complain

ईवा – साला ! अंग्रेज़ी मे बोलता है । दो चॉटा मारके लम्बा लिटा दिया । दो फ़्रेण्ड ने पैण्ट पकड़ी और उतार दिया ।

पैण्ट छुड़ा के मेरे पास आयी ऐक खींच के तमाचा मारा , आज भी ऑखो मे बिजली चमकती है । दूसरे की ज़रूरत ही नही पड़ी ! हमने खुद ही पैण्ट उतार के दे दी । ऊपर से धमकी दे गई की अगर किसी को बोला तो अगली बार यंत्र काट दूँगी!

बाप रे ! कहॉ फँस गये यार

ये रौनी साला तुम थोड़े कम नम्बर लाते ना हर समय साला किसी ना किसी के *** लगवाते रहते हो ।

दो घण्टे बाथरूम मे बन्द ।

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ख़ैर ईवा की मेहरबानी हुयी पैण्ट मिल गयी और मैं अपनी क्लास चला गया रौनी अपनी क्लास ।स्कूल मे गेम्स प्रैक्टिस हो रही थी पहली बार हमारी स्कूल इण्टर स्टेट स्कूल गैम्स के लिये जयपुर जाने वाली थी । हमारे स्कूल के मर्यादा पुरूषोत्तम राम यानी रौनी को बैस्ट परफ़ार्मर के नाते एंकरिंग का ज़िम्मा था , साथ मे रौनी ऐथलैटिकस मे हिस्सा ले रहा था ।

अगले दिन ईवा , रौनी से न जाने क्या बात कर रही थी । मुझे तो शक हो गया था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ चल रहा है । ईवा ने उसको जूस पकाडाया और खुद भी ऐक बोतल से पीने लग गई ।

आधे घण्टे बाद , ब्याइज की 400 m रेस होने वाली थी । रौनी भी लाइन मे लगा था । रेस शुरू हुयी कुछ देर दौड़ने के बाद रौनी सीधे हॉस्टल की तरफ़ भागने लगा । सब हैरान थे अचानक क्या हो गया । रौनी हॉस्टल के मैन रूम तक ही पहुँचा था पीछे हमारा कोच और स्टाफ़ भी ।

ये क्या रौनी ने पूरी पैण्ट ख़राब कर रखी है ।

पैण्ट मे ही हग दिया । बेचारा फीनीश लाइन क्रास ही नही कर पाया ।

उस दिन ऐक बात तो समझ आ गयी की हर शर्मा जी के लौण्डे को ईवा जैसी लड़की ज़रूर मिलती है । पूरे स्कूल मे रौनी के टट्टी वाला मीम चला । ऐड बने लेकिन ऐसे लोगों मे मेहनत करने की जो ठरक होती है ना उसका लेवल ही अलग होता है ।

मेरे ऐग्जाम हो गये रिज़ल्ट आया मैं खुद हैरान की 85 % आ गये । जो लौण्डा नक़ल मारके भी कभी इतने मार्क्स नही ला पाता उसके इतने आ गये । लेकिन अब्बू खुश नही थे ठीक हर टिपीकल इण्डियन डैड के जैसे ।

ख़ैर जैसे तैसे पास हो गया …….!

फिर ज़िन्दगी का नया चैपटर शुरू हो गया !

Continue…………………………..!

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घुमन्तू

“घुमन्तू “

वो अनजाने रास्ते जो चन्द लम्हे चलने पर

ओझल हो जाते है और तुम सिर्फ़

इस बात से कतराते हो की उस पार कि दुनिया

बर्बर और भयानक होगी ………!!

जहॉ हमारी शख़्सियत ओछी सी होगी

जहॉ हमारे स्वाभिमान की तौहीन होगी

जहॉ हमारा मुक़्क़दर खोटा होगा

जहॉ हमारा सम्मान छोटा होगा ……..!!

वो अनजान रास्ते जहॉ तुम तन्हा महसूस करोगे

जहॉ दिन छोटे और रात भयानक काली होंगीं

जहॉ तुम्हारी हल्की सी आवाज़ बड़ी बात होगी

जहॉ हुक्मरानों की फ़ौजदारी चारों ओर तैनात होगी

वहॉ चलने के लिये तुमको थोडा फ़क़ीर होना होगा

तुमको लालच खोना होगा , तुमको धर्म खोना होगा

तुमको खुद ईश्वर का पैग़ाम होना होगा

तुमको खुद बादशाह होना होगा

तुमको खुद आज़ाद होना होगा ………!

तब तुम उन अनजाने रास्तों पर पदचिन्हो की लकीरें छोड़ोगे

तुम घुमन्तु दुनिया के नये रास्ते ढूँढोगे

नये चेहरे ढूँढोगे , नये मुसाफ़िर ढूँढोगे

तब तुम नयी कहानी के किरदार लिखोगे

संगीत लिखोगे , प्रेम के दीदार लिखोगे

तब तुम जानोगे की उस पार की दुनिया

ज़्यादा रंगीन और चमकदार थी

वहॉ तो अवसरों की भरमार थी

वहॉ हर कहानी जीवन्त थी

वहॉ संस्कृति थी , इतिहास था

वहॉ दफ़्न हुये रहस्यों मे कुछ ख़ास था

और तुम जब पीछे मुड़कर देखोगे तो पाओगे कि

जब भी तुमने नयी जगहों मे तलाश की है

तुम पहले से ज़्यादा बेहतर होकर आये हो

या तुम नयी दुनिया को जीतकर आये हो

या नयी दुनिया के होकर आये हो ।

उनका जोखिम तो रोमांच है , जीत -हार तक़दीर

नाम ऐक मुसाफ़िर है और आदत “घुमन्तू” है

घुट घुट कर तो लोग महलों मे भी रहते है

उनकी ज़िन्दगी का सिलसिला जीवन्त है ..!

तुम सीखते रहना ,

दिल बड़ा रखना और चलते रहना

तलाश करते रहना ,

ऐक नया रास्ता और ऐक नया सवेरा ….।!!!!!

और घुमन्तू बनते रहना …!!!!

घुमन्तू बनते रहना ……..!!!!

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बर्फ़बारी (Childhood in mountains ⛰)

“बर्फ़बारी ” ~ Lalit Hinrek

छिप गयी हरियाली सफ़ेद चादरों मे

गुमसूमी है छायी चकोर , वानरों मे

ठण्डी मे क्या खॉये बड़ा सवाल हो गया है !

चाय पकौड़ों मे दिल लपलपाये हो चला है

सुबह से मॉ ने मेरे कान ढक दिये है

ठण्डी की वजह से दस्ताने भी दिये है

लेकिन उदण्डी मैं तो निकल पडूगॉ

अपने झबरू मित्र , कालू के संग चलूँगा

जो बर्फ़ के मैदान मे मेरे लंगोटिया जमे है

गोले बना बना के आपस मे भिड़ चुके है

वो पिठ्ठू ,गुल्ली डण्डा या कहूँ कबड्डी

वो गोटियॉ न खेली तो क्या बचपन जिये तुम !!

आज तो सूरज से भी ,जैसे चाँदनी निकल पड़ी है ,

मोती लिए चादरों मे , हर पहर चमक पड़ी है ।

ठण्डी आ गयी है , बर्फ़ छा गयी है

दिन बिदुक गये है और राते लम्बी सी है !

पोष का महीना अपने ऊफान पे है

भूत प्रेत गॉव के सब तूफ़ान पे है !

खूब सर्द रात अब आराम कर लिया है ,

थोड़ी मस्ती के लिये मन, बस तरस रहा है

बर्फ़ पड़ गयी है , स्कूल बन्द पड़े है

ना ख़ुशी सँभल रही , ना हँसी सभंल रही है ।

पहाड़ के बचपनों मे तो , ये आम बात हो गयी है

जो बर्फ़ ये पड़ी है , मस्ती उमड. पड़ी है ।

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मुखौटे ~ Lalit Hinrek

वक़्त ठहरता नही है और तुम्हारे सारे आवरण , मुखौटे धरे के धरे रह जाते है । इस तालाब के किनारे क्या ढूँढ रहे हो ? ये उजाले ??

ये परछाईं ही तो है , लौ जो जल रही है वो तो दिल मे है ।

आज वापस जाकर आइने के सामने खड़े हो जाना और देखते रहना जब तक तुमको तुम्हारा मुखौटा न मिल जाऐ ।

मिल गया तो ऐतबार करना कि क्यों इतनी मासूमियत से तू घर कर गया ।

ऐक शेर अर्ज करता हूँ तुम्हारे लिये

“तुम तो जमाने को बदलने निकले थे “ललित”

लेकिन कमबख़्त जमाने ने तुमको बदल डाला ”

ज़्यादा बड़ा शायर नही लेकिन बात इतनी गहरी कह गया है।

वैसे भी खुश कौन है आज ?

कोई भी नही , सबने तो यहॉ मुखौटे पहन रखे है ।रोने वाले हँसने की ऐक्टिंग कर रहे है । हँसने वाले बेवजह रो रहे है । कोई पड़ोसी की तरक़्क़ी से दुखी है तो कोई परिवार की तरक़्क़ी से । कोई तो बिना बात के दुखी है । ये ज़माना मुखौटों का ज़माना है , यहॉ तुम फ़क़ीर हो तो ये कौन जानता है!

“मुखौटे “ ~ a poem by Lalit Hinrek

शहद सरीखे प्याले जो जिव्ह्वा मे ले के चलते थे ,

डंक मारते उनको ही , अक्सर मैने देखा है ।

कॉन्धो मे शाबाशी के थपके देने वालों को भी ,

ईर्ष्या के दामन मे अक्सर जलते भुनते देखा है ।

आदर्शो पर चलने वाले मन के सच्चे यारों को भी

अपनो का ही अक्सर उपहास उड़ाते देखा है ………..।

आवरण के खौलो मे , चरित्र छुपाने वालों को

भौला भाला सज्जन जैसा , मुखौटा लगाने वालों को

ख़ूब तरक़्क़ी करने से , इक़बाल तुम्हारा ऊँचा हो

शौहरत हो , दौलत हो और नाम तुम्हारा ऊँचा हो ।

भयभीत हुआ हूँ , बदल रहा हूँ

कि मैं भी ऐसा हो जाऊँ

ज़हर रगो मे भर जाये

और ईर्ष्या का दामन हो जाऊँ ।

मन के सच्चे कुछ मानव से

उम्मीद जगाना चाहता हूँ

मुखौटों के संसार से अब

बस ध्यान हटाना चाहता हूँ ।

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चार सिपाही और चार कहानी

आज सुबह से कुछ मूड सा ख़राब था तो निर्णय लिया कि कुछ युवा लड़कों को बुलवाकर गॉव मे पास की नदी मे जाकर यात्राऐ करेंगे और कुछ जीवन के अनुभवो को साझा करेंगे । चार लोग और हमारी चार कहानियॉ इस प्रकार से है उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगी

कहानी १.

इन यात्राओं के दौरान मैंने भी अपने अपने अनुभव साझा किये । ऐक छोटा सा यादगार पल जो हमेशा मेरे ज़ेहन मे आता रहता है । 2004 की बात है मैं दसवीं कक्षा मे पढ़ता था । उत्तराखण्ड बोर्ड के ऐग्जाम थे तो हम सब लोग मेहनत तो करते ही थे । गर्मियो मे ऐग्जाम होने के बाद रिज़ल्ट आने तक 2-3 माह का समय रहता है । पारिवारिक स्थिति अच्छी नही थी और हम पूरा परिवार पिताजी के साथ मिलकर टमाटर की खेती करते थे । जून के प्रथम सप्ताह मे रिज़ल्ट आता था और यह वो दौर था जब मेरे गॉव मे नेटवर्क भी नही होते थे । मैं अपने स्कूलमोट्स के साथ पैदल तीन चार किलोमीटर तक ऐक छोटे से गॉव फेडिज तक गया । वहॉ पहुँचते पहुँचते हिमाचल के फ़ोन टावर्स आते थे । हम लोग बहुत उत्तेजित थे अपने रिज़ल्ट को ले के और डर भी लग कहा था क्योंकि ये वो वक़्त था जब गॉव मे फ़र्स्ट डिवीज़न को भी तीसमार ख़ॉ समझा जाता था ।

फेडिज पुल पहुँचते ही देहरादून मे रहने वाले भैय्या लोगों को कॉल आया सबका रिज़ल्ट पता चला । हम सारे दोस्त पास थे और मेरे 74.82 % थे जो कि हमारे ब्लॉक से उस वक़्त सर्वाधिक थे । हम सब लोग बहुत ज़ोर ज़ोर से चिल्लाऐ , पूरी ताक़त के साथ । सारे बचपन के दोस्त इतने खुश थे जितने शायद आज तक कभी नही हुये । हम लोग मार्केट आये सबको बताया और गॉव मे उस वक़्त फिस्ट का चलन था , जो पास हो जाता था वह ख़ुशी से मोहल्ले मे मिठायी बॉटता था ।

मैं भी बहुत खुश था , भागता हुआ घर गया । पिताजी ने तब तक टमाटर की सिंचाई के लिये नल लगा दिया था । मैने अपने पिता को बताया की मैने टॉप किया है और फिस्ट के लिये पचास रूपये भी मॉगे । मेरे पिता बहुत खुश हुये उन्होंने वो पचास रूपये निकाले और बोला

“बेटा हम पूरी साल मेहनत करते है , तुम्हारे पास ऐसा कुछ नही है जो तुम अपने मॉ बाप को दे सकते हो । हमे पूरे साल इस बात का इन्तज़ार रहता है कि ऐक दिन ऐसा आएगा जब मेरे बच्चे मुझे गिफ़्ट देंगे । बस यही तोहफ़ा था जो तुम दे सकते हो और वो आज तुमने दे दिये , शाबाश बेटा “

मेरी ऑंखें शायद आज भी थोड़ी सी नम हो जाती है इन पलो को याद करके ।

शिक्षा – यदि तुम स्टूडेण्ट्स हो तो इस छोटी सी बात को गहराई से समझो और अपने मॉ बाप को तोहफ़ा देने की कोशिश करो।

कहानी २.

आज मेरे छोटे भाई ने मेरे साथ जीवन के कुछ बेहतरीन पलो के बारे मे बताया । वह कहानी मे यहॉ आपके साथ शेयर कर रहा हूँ ।

रमन जब 11th मे पड़ता था तो उसकी तबियत बेहद ख़राब रहा करती थी जिसकी वजह से उसके छमाही इम्तिहान मे काफ़ी कम मार्क्स आये ।

रमन को अपने इस दौर मे बेहद तनाव का सामना करना पड़ा यहॉ तक कि जब वह अपने गुरूजनों से भी अपने बारे मे कुछ नकारात्मक सुनता तो उसका मन और दुखी हो जाता ।

जनवरी का महीना भी निकल गया रमन के पास मात्र अब ऐक माह बचा था फ़रवरी का क्योंकि मार्च से बोर्ड के ऐग्जाम भी आने वाले थे । रमन ने निर्णय लिया कि वह मेहनत करेगा और अपने बारे मे उड़ रही सभी नकारात्मकता को ख़त्म करेगा । रमन ने टाईम टेबल फ़िक्स किया , सिलेबस को टेबल पर लगाया और उन फ़रवरी के 28 दिनों मे 10-12 घण्टे लगातार मेहनत कर 11th की परिक्षा 86% अंकों से प्राप्त की ।

रमन की यह कहानी उसे हमेशा प्रेरणा देती है आगे बडने की । आज यह कहानी उसने हमे शेयर की मैं आप सब लोगों को शेयर कर रहा हूँ ।

शिक्षा – जीवन उतार चडावो का दौर है लेकिन दृढ़ निश्चय और कठिन परिश्रम सदैव विजयी होता है ।

कहानी ३.

प्रियाशूं , मेरा भॉजा जो अभी गॉव के स्कूल मे ही 12th मे अध्धयनरत है । आज उसके साथ भी यात्रा करने का मौक़ा मिला और उसकी कहानी सुनने का भी ।

दो साल पहले की बात है उसके गॉव क्वानू के ही ऐक ड्राइवर राजू का आना जाना अटाल ऐवम सैंज लगा रहता था । प्रियाशूं दसवीं पास कर चूका था तो वह अक्सर राजू के साथ गाड़ी मे लटक जाया करता था । हालाँकि ताऊ जी (उसके नाना जी ) हमेशा उसे डाँटते थे की तुम पड़ने आये हो ना की गाड़ी मे लोफरपंथी करने लेकिन युवा प्रियाशूं को इन बातो से कोई सरोकार ना था ।

ऐक दिन सुबह सुबह राजू गाड़ी मे सवारी भर के सैंज चला गया । राजू की गाड़ी देख प्रियाशूं भी उसमे लटक गया और सवारी को गॉव छोड़ने के बाद जब राजू गाड़ी वापस रिवर्स कर रहा रहा था तो अचानक गाड़ी पलट गयी लेकिन रोड गॉव के पास होने की वजह से खायी मे वही गयी । किसी को कोई नुक़सान नही हुआ लेकिन इस कटू अनुभव ने प्रियांशु की जीवन मे गहरा प्रभाव डाला अब वह बेवजह फ़ालतू नही घूमता है ।

इस शानदार अनुभव को शेयर करने के लिये धन्यवाद भान्जू ।

शिक्षा – जीवन बहुमूल्य है इसकी क़ीमत पहचानिये , व्यर्थ मे जीवन व्यतीत न करे ।

कहानी ४.

अनिकेत राणा , जो कि रिश्ते मे मेरे चाचा लगते है ।आज उनके साथ यात्रा करने का अवसर मिला । उन्होंने अपने कुछ बेहतरीन पलो को साधा किया । पिछली साल गर्मियो का मौसम था । अनीकेत दो चार अन्य लोगों के साथ डायनामेंट लेकर मछली मारने के लिये गॉवो मे बहने छोटी नदी पर चला गया । गर्मियो के दिनों मे अक्सर लोग नदी मे मछली मारने जाया करते है । अनिकेत और तीन अन्य लोग नदी पहुँच कर डायनामेंट तैयार करने मे लग गये । डायनामेंट फोड़ा गया और ख़ूब मछलियाँ भी मील रही थी । अचानक अनीकेत को ऐक बड़ी सी मछली दिखायी दि , अनिकेत ने तुरन्त ही गोता लगाया और मछली की तरफ़ झपटा किन्तु मछली दो छोटे पत्थरों के अन्दर फँसी हुयी थी । अनिकेत ने हाथ डाला , काई वग़ैरह होने की वजह से हाथ अन्दर तो चला गया किन्तु वापस निकलते हुये फस गया , उसने बहुत कोशिश की लेकिन हाथ नही छूटा । थोड़े समय बाद पानी उसके मुँह मे चला गया और वह छटपटाने लगा उसको लगा जैसे यह उसका आख़िरी दिन हो जैसे लेकिन उसने आख़िरी झटका दिया और हाथ छिटक गया । बाहर निकलते ही उसे उल्टीयॉ हुयी लेकिन साथ वालों को किसी को पता नही चला क्योंकि वो लोग मछली पकड़ने मे व्यस्त थे । इसके बाद अनिकेत ने यह समझ लिया की ज़िन्दगी का कुछ भी भरोसा नही है और वह हमेशा सकारात्मक सोच रखने लग गया ।

इस बेहतरीन अनुभव को साझा करने के लिये शुक्रिया अनिकेत चाचा जी ❣️😊

शिक्षा – धैर्य जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है , कठिन से कठिन समय मे भी ऐक अन्तिम प्रयास अवश्य करना चाहिये ।

…………………………………धन्यवाद ……………………………………………………………………

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कर्म (a moral story)

(यह ऐक छोटी सी कहानी है जो बचपन की उन बेहतरीन कहानियों मे से ऐक है जिसने मेरे जीवन को बेहद प्रभावित किया है , इसको रचनात्मकता देने के लिये ऐक ताना बाना बुना गया है , उम्मीद है कि यह कहानी सदैव जिन्दा रहेगी – thelostmonk)

सुदूर पहाड़ों की घाटी और यमुना नदी के किंनारे बसा अलीगंज मात्र 50-60 परिवारों का यह गॉव ख़ुशहाली और विकास का यश ऐसे फैला रहा था जैसे यमुना का अविरल जल अपनी निरन्तरता । अलीगंज भी सभी प्रकार के लोगों से मिश्रित गॉव था जो सभी थोड़े ग़रीब , थोड़े अमीर प्रकार की आर्थिक परिस्थितियॉ सम्मिलित किये हुये था। यहॉ मुख्य व्यवसाय कृषि था लेकिन यमुना की तलवार सरीखी धार पहाड़ों को चीरती हुयी जो कण कण अपने साथ लेकर चलती है उसकी मूल्यवान रेत का भी व्यवसाय ज़ोरों पर था ।लेकिन गॉव में ज़्यादातर लोग बेहद ग़रीब थे तो संसाधनों पर केवल , कुछ आर्थिक रूप से मज़बूत परिवारों का ही हाथ था ।रेत का कारोबार व्यक्ति की प्रतिष्ठा से जोड़ा जाता था जिसके पास जितने ज़्यादा घोड़े उसकी उतनी ही ज़्यादा प्रतिष्ठा , हालाँकि गधो को भी प्रयोग में लाया जाता था लेकिन गधो का प्रयोग करने वालों को हेय दृष्टि से देखा जाता था ।

मोहम्मद एक बेहद ग़रीब परिवार से सम्बन्ध रखता था , उसके पॉच बच्चे थे और वह मेहनत मज़दूरी कर ही बच्चो का पेट पालता था । वहीं उसके कच्चे मकान से दस बारह गज पठान रहता था जो आर्थिक और पारिवारिक रूप से बेहद मज़बूत था । पठान के पास चार घोड़े थे जो कि पूरे दिन रेत को ढोने का काम करते रहते थे । पठान का व्यक्तित्व पहले से ही बेहद रूखा था लेकिन पुश्तैनी सम्पत्ति उसके पास थी वह ऊँचे कुल में पैदा हुआ था उसका रूतबा पहले से ही था । वह कई दफ़ा मज़दूरों और कारीगरों से रूखा व्यवहार करता था । वह धार्मिक तो था और नमाज़ पड़ने का भी पाबन्द था ।

मोहम्मद बेहद ग़रीबी में जी रहा था लेकिन उसके चेहरे पर कभी भी निराशा नज़र नहीं आती थी । उसने मज़दूरी कर कर के चन्द पैसों का इन्तज़ाम किया और ऐक छोटा गधा ख़रीदा। वह पठान के यहॉ मज़दूरी करता था तो पठान को बताता की कुछ वक़्त मे जब उसका गधा भी काम लायक हो जायेगा तो वह भी रेत का काम शुरू करेगा । पठान को यह सब अच्छा नही लगता था और वह मोहम्मद को नीचा दिखाने के लिये अन्य मज़दूरों के सामने रूखा व्यवहार करता था , तरह तरह के ताने मारता था लेकिन मोहम्मद हँसते हँसते फिर अपने काम मे लग जाता । थका हारा मोहम्मद घर लौटता तो अच्छे चारे वगैरह से अपने गधे का ख़याल रखता व पालन पोषण करता । महीनों दो महीनों में उसका असर दिखने लग गया वह गधा तगड़ा होने लग गया और तेज़ी से बड़ता हुआ दिखाई देने लग गया । पठान भी यह देखता तो उससे रहा नहीं गया , मन ही मन उसे ईर्ष्या हो जाती । वह सोचता की कहीं यह भी उसकी बराबरी ना कर बैठे , उसके जैसे रोबदार ना बन जाये तो वह बस परेशान हो जाता । उधर मोहम्मद बेहद शान्त ऐवम सरल क़िस्म का व्यक्ति जो सिर्फ़ पठान के जैसे बनने की चाहत रखता था वह भी चाहता था की वह भी पठान के जैसे तरक़्क़ी करे ।

वह हमेशा पठान से चीज़ें पूछता और जानने की कोशिश करता । मोहम्मद उसे अपने सपने भी बताता तो उसका यह महत्वाकांक्षी होना भी पठान को बुरा लगता । फिर जैसे जैसे मोहम्मद का गधा भी सालभर में तैयार हो गया तो मोहम्मद ने उसे काम पर लगाना शुरू कर दिया । मोहम्मद बेहद प्रेम से देखभाल करता , दिन भर की थकान के बाद हरा हरा चारा और पानी देता । इस तरह उसका जीवन भी पटरी पर उतर गया और वह अपने जीवन को और बेहतर बनाने के लिये हर सम्भव कोशिश करने लग गया । उसने कमायी का कुछ प्रतिशत बचाना शुरू किया और जब पर्याप्त धन हो गया तो ऐक और गधा भी ले लिया ।

पठान तो नमाज़ , मज़ार , दान पुण्य सब चीज़ें करता था ताकि उसकी छवि उसके व्यापार को बढ़ावा दे सके लेकिन चरित्र मे उसके जो ईर्ष्या का दामन था वो तो मानो उसकी आत्मा से लिपटा था । वह सदैव मन मे अल्लाह ताला से दुआ करता कि मोहम्मद के गधे मर जाये तो वह उसकी बराबरी कभी नही कर पायेगा । लेकिन मोहम्मद अपने आप मे ही व्यस्त , सब चीज़ों से अनभिज्ञ था कि पठान उसकी तरक़्क़ी से इतना आहत है ।

मोहम्मद का काम तो चल पड़ा , अब पठान के व्यापार पे भी असर तो पड़ा ही था धीरे धीरे मोहम्मद का नाम और काम सबको पसंद आ गया और मोहम्मद की मेहनत व लगन और उसका निष्पक्ष , निश्छल रवैये ने उसके और तरक़्क़ी प्रदान की । उसका कच्चा मकान , अब पक्का व रंगीन हो गया । उसके बच्चे उन स्कूलों मे दाख़िल हो गये जिनमें पठान के बच्चे थे । पठान रोज की नमाज़ मे दुआ फ़रमाता की मोहम्मद के गधे मर जाये तो उसकी हर फ़रियाद पूरी हो जायेगी ।

ऐक दिन तेज़ मूसलाधार बारिश हुयी और पठान के अस्तबल मे बिजली गिरी , उसके चारों घोड़े मारे गये , उसका बहुत नुक़सान हुआ । पठान तो मानो टूट गया और आज उसको मानो बदन मे कम्पकंपी की तंरगे दौड़ रही हो । वह आज की नमाज़ अदा करने के लिये मस्जिद पंहुचा ।शान्ति से ऐक गहरी सॉस ली दुआओं के हाथ पसारे और बोला

“या खुदा ! बहुत की दिल से खुदा-ई

लेकिन तुझे गधे घोड़े की पहचान न आयी “

जब वापस पंहुचा मोहम्मद उसके घर के आगे था और उसने पठान से कहा ,

पठान भाई ये पॉच हज़ार रख लो और नया घोड़ा ले लेना , मैने भी घोड़े के लिये रखे थे कि कभी नये घोड़े ख़रीद पॉऊगॉ लेकिन आपके साथ वक़्त ने अनहोनी कर दी । आप इसे रख लीजिये तब वापस दे देना जब आप को सही लगे ।

पठान निशब्द था , ऑसुओं की धारा ऐसे फूट पड़ी मानो कोई झरना अपनी ताक़त का प्रदर्शन करना चाहता हो । वह मोहम्मद से लिपट गया और कुछ नही बोला । शायद बहुत कुछ था अन्दर लेकिन ये उसका ऐसा अहसास था मानो उसको कोई खुदा मिल गया हो ।

(Moral – You can create reputation but to built character you need a kind heart )

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शायर मेरी नज़र से

“शायर मेरी नज़र से”

१. बहक जाने दे ऐ वतन तेरी मोहब्बत मे
बस यही वो नशा है जो उतरता नही ।

२.   छुपा लेता है मुस्कुराकर हजारो गुप्तगू
ना जाने कितना मर्म दफ़ॉ है सीने मे ।

३.    उसकी निगाहों मे डूबे हो लाखों सवाल जैसे
न जाने किसे ढूँढती है , किसे चाहती है ।

४.      उनको शिकायत है हम बदलते नही
और हमको शिकायत उनके बदलने से है ।

५.    जिन्दा है लौ वो , कि सुलगती नही है
जलती है तन्हाई तो बुझती नही है ।

६.    लूट ले मेरे यार इस वक़्त की महफ़िल को
थम जाते है तूफॉ यहॉ , ज़िन्दगी की रफ्तार नही थमती ।

७.     बंदिशें ख़त्म कर दी , और आज़ाद हो गये
कभी इधर उड़ चले , कभी उधर उड़ चले
जिधर मन चला हम उधर चल पड़े ।!!।

८.      कल को आज बदलते हुऐ देखा है
कोयलों को भी हीरा बनते देखा है
वक़्त की बात है मेरे दोस्त
कि मजबूर भी मज़बूत हुआ करते है ,
शिद्दत से देख ऑसमॉ को ज़रा
सबसे बड़े अंधेरों से ही
सबसे बड़े उजाले हुआ करते है !!

९.     इस तरह वो मोहब्बत के अल्फ़ाज़ ढूँढते है
निगाहों मे वफ़ा की फ़िराक़ ढूँढते है
हम तो फ़क़ीर है जज़्बात की ज़मीन के
जो रेत मे भी वफ़ा की सैलाब ढूँढते है ।

१०.      कहीं दरिया बदल जाता है
कहीं दलदल बदल जाता है
तेरी मोहब्बत बदल जाती है
तेरा दिल बदल जाता है
मेरा क्या है ! मैं तो पानी हूँ
रेत हूँ और मिट्टी हूँ
जहॉ गिरता हूँ , मौसम बदल जाता है
मौसम बदल जाता है ।
११.    फ़रियादो से मंज़िले कहॉ मिलती है
हमने भी दुऑऐ हज़ार की थी ।

१२.     अब फ़ितरत की नब्ज़ पहचान ली है
कुछ कर गुज़रने की ठान ली है ।
१३.   यहॉ जीना है तो जी भर के जी ले
ग़ुजरे हुऐ ज़माने यहॉ वापस नही आते ।

१४.   हमेशा इसी मिट्टी मे रहना ‘ललित’
आसमा मे उड़ने वालों को ज़मीन नही मिलती ।

१५.  कुछ ऐसे इरादे हो ललित , कि ख्याल बदलते कारवाँ मे हो
निगाहें ज़मीन मे हो हमेशा , और तलाश ऑसमॉ मे हो ।

 

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छोटा सा सपना

“छोटा सा सपना “

वो आकाश उड़ता जहाज़

और तुम्हारा पायलट बनने का सपना

बडे होकर फ़िज़िक्स की उन थ्योरिज

और ज़िन्दगी की कॉम्पलीकेटेड उलझनों मे

कहीं खो सा गया और तुम आगे निकल गये ।

होश आने पर जब सिस्टम समझ आया

तो मन चंचल , कोमल हृदय को बरगलाता गया

कि ज़िन्दगी की रफ्तार तो बस

कलेक्ट्री के काले चमचमाते कोट मे ठहरती है

जहॉ वो सब है जिसकी तुम्हारी ऑत्मा को

तुम्हारे शरीर से ज़्यादा तलाश है ….।

समय बीतता गया , उम्र बड़ती गयी

हाथ मे अब बन्दूक़ की जगह थर्मामीटर

मार्क्सवाद की जगह गॉधीवाद

पेन्टिग्स की जगह संगीत और

साहित्य की जगह इंजीनियरिंग

ऐसे थमा दी गयी और बताया गया

E-mc2 का असल ज़िन्दगी में कोई सरोकार नहीं ।

फिर उम्र के साथ साथ समझ भी बड़ती गयी

की ज़िन्दा रहने के लिये

वो पायलट , वो काले कोट या वो पेन्टिगंस

ज़्यादा ज़रूरी नहीं है क्योंकि

तुम्हारी शिक्षा तुम्हारी ज़रूरतों के हिसाब से है ।

तुम्हारे सपने अब तुम्हारी वरीयताएँ नहीं है ।

क्योंकि तुम्हारे कंधों की चौड़ाई

अब तुम्हारे पिता के बराबर है ।।

समय बीतता गया , और उम्र बड़ते गयी

किताबों की जगह अब ज़िन्दगी सिखाती गयी

कितनी अजीब सी बात है ना ,

हाथ की 20 हज़ार की घड़ी उतनाअच्छा समय नहीं बता पाती ,

जितना वो 20 रूपये वाली घड़ी स्कूल की घण्टी का बताती थी

कितनी तृष्णा थी बड़ा होने की ,

आज पता चला कि छोटा होना हमेशा से बेहतरीन था !

ये शान और शौक़त की पॉलिश

जितनी चमकदार बाहर से है

उतनी ही फीकी भीतर से है ।

अगर तुम बदल सकोगे तो ख़ुद को ज़रूर बदलना

क्योंकि तुम्हारे बाद भी कोई ना कोई

आकाश में उड़ता जहाज़ देखता होगा ।

फीजिक्स ना सही , कैमेस्ट्री पढ़ता होगा ।

वो कोई तो भगतसिंह होगा

कोई तो बारूद होगा

कोई तो फिर लौ होगी

और कोई तो इंक़लाब होगा ।

सपने देखना तो किताबें सिखा देगी

और बाकि सब ज़िन्दगी सिखा देगी ।

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दुविधा

दुविधा — “lalit Hinrek”

किसान गर्व से कहता था कि मैं अन्न दाता हूं ,

इस राष्ट्र की ताकत हूं , और भविष्य निर्माता हूं ।

पर किसान अपने पुत्रों को अब , ‘किसान’ देखना नही चाहता
अपने खेतो की खुशबूओं को ,
लूटते देखना नही चाहता ।

वो बैलों की जोड़ी तो बस ,
छुटपन मे देखी थी ।

जब बकरियॉ थी, गायें थी ,
और लहराती खेती थी ।

ना पशुओं के झुण्ड है ,
ना वो बकरी वाले है ।

खण्डहर जैसे महल बचे है ,
और जंग लगे ताले है ।

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पड़ लिखकर बेटा , बाबू बन जाये
पैसा नाम कमाकर , बस इज्जत दे पाये
खेती को यहॉ मजबूरी माना जाता है ,
दीन हीन की गाथा , मजदूरी माना जाता है ।

नौकरी को सफलता का मानक मोल बैठे है ,
खुशियों को पैसो के तराजू से तौल बैठे है ।

पर ऐक दिन ऐसा होगा , दुविधा ऐसी होगी
ना गेंहू की बलियॉ होगी , भूख आटे की तरसेगी ।

ना गॉव बचे होंगे , ना कोई खेती होगी
मशीन बने मानव की , क्या खूब तरक्की होगी ।

दुविधा मे हूं , फिर क्या सीख दूंगा
ये संस्कृति भी मेरी पीढ़ी तक सीमित है ।

बेटा तू भी पड़ ले , और बाबू बन जा
जब ये भाषा भी इसी जीवन तक जीवित है ।

क्या यही तरक्की की परिभाषा है ,
बस दुविधा मे हूं ।

क्या यही जीवन की अभिलाषा है ,
बस दुविधा मे हूं !!!!

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कुछ तो बदला है !

वो बचपन पहाड़ों का

बाघों की दहाड़ो का

वो बारिश मे काग़ज़ की नावों का

मिट्टी लगाये हर घावों का

वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की

गॉव मे हर जर्जर माले की

याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है ?

जो हर ऑगन सूना सूना है ।

वो लकड़ी के बण्डल , घासों की जोटी

वो छाछ नूण , मक्के की रोटी

बकरी के मेमने की उछल कूद

वो ककड़ी के बेलें , कद्दू के फूल

ऊन कातती चरखों की सॉचे

बॉस की टोकरीयॉ , रस्सी के फॉके

वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की

गॉव मे हर जर्जर माले की

याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है ?

जो हर ऑगन सूना सूना है !!

वो झबरू कुत्ते काले काले

खेतो खलिहानों के रखवाले

वो बैलों की जोड़ी अब

खेत नही जोतती है

और गौशालायें मेरी

बस गायें ही खोजती है

वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की

याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है !

जो हर ऑगन सूना सूना है ।

मशाले जलती थी

तो अंधेरा कम था

बिजली तो आ गयी

बस उजाला कम था ।

मकई , बाजरा , मण्डुआ , चौलाई

कुछ भी देता ना दिखाई

दूध , दही ना , घृत -माखन मेवा

ना पनघट की घाघर सेवा

हर घर है बस ख़ाली ख़ाली

सब तो है बस शहर निवासी ।

वो तस्वीर , घर मे लगे ताले की

याद दिलाती है कि कुछ तो बदला है

जो हर ऑगन सूना सूना है !!!!!