फ़र्क़ अब तेरे समझने का है
वरना मेरा मिलना भी तो
तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!
फ़र्क़ तेरी मोहब्बत का है
वरना कौन से तराज़ू में
वफ़ा का पैमाना होता है …!!
फ़र्क़ इस बात का है कि
तुम कहती थी कि
“सुबह शाम डर लगता है कि
तुम ! चले न जाओ मुझे छोड़कर”
फर्क इस बात का है
कि मुझे रोकते रोकते तुमने
अपने रास्ते बदल दिये और मैं
वहीं मोढ़ पर तुम्हारा इन्तज़ार करता रहा …..!!
फ़र्क़ अब तेरे समझने का है
वरना मेरा मिलना भी तो
तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!
फ़र्क़ इस बात का है कि
कल तक मैं जो तेरी दुनिया था
और आज तुम ही पुछती हो
कि “कौन हूँ मैं”….!!
फ़र्क़ है ! फ़र्क़ सिर्फ़ इतना ही नहीं बल्कि
फ़र्क़ रंग का है
कभी सुर्ख़ लाल रंग जो मेरे हर गुलाब में था
अब शायद वो रंग फीका हो चला है
वो बातें और यादें शायद धुंधली हो चली है
और हज़ार आरज़ू दफ्न होने के बावजूद
तुम्हारा ज़िक्र ख़त्म सा हो गया है…..!!
फ़र्क़ इस बात का है कि
कल तक हर पल तू साथ था
और आज बस तेरे कुछ ख़्याल बाकि है …!!
फ़र्क़ अब तेरे समझने का है
वरना मेरा मिलना भी तो
तेरी दुआओं का क़बूल होना ही था …!
4 replies on “फ़र्क़”
nice
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Thanks
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Wah bhai super 😍🥰🥰
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Thanks
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